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    Home»Jharkhand Top News»स्वास्थ्य विभाग के खाली पड़े भवनों के दिन बहुरेंगे
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    स्वास्थ्य विभाग के खाली पड़े भवनों के दिन बहुरेंगे

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 5, 2020No Comments6 Mins Read
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    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा के दौरान सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों की व्यवस्था सुधारने के जो निर्देश दिये हैं, उनसे ऐसा लगने लगा है कि राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं पटरी पर लौटेंगी। मुख्यमंत्री ने सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को आधुनिक सुविधाओं से युक्त बनाने और उन्हें चौबीसों घंटे आम लोगों के लिए उपलब्ध कराने का निर्देश देकर साफ कर दिया है कि वह इस मोर्चे पर अब कोई कोताही बर्दाश्त नहीं करेंगे। हेमंत ने एक बड़ा फैसला स्वास्थ्य विभाग में फिजूलखर्ची को रोकने को लेकर किया है और कहा है कि अब अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों के लिए केवल वही भवन बनेंगे, जो अनिवार्य होंगे। झारखंड में पिछले 10 साल में अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों के लिए 126 इमारतों का निर्माण किया गया है, लेकिन इनमें से महज 45 का ही इस्तेमाल हो रहा है। अकेले रांची सदर अस्पताल के भवन निर्माण पर नौ सौ करोड़ रुपये खर्च हो गये। ऐसे में इन खर्चों की उपयोगिता पर सवालिया निशान तो लगते ही हैं। हेमंत ने इन भवनों का इस्तेमाल शुरू करने का निर्देश देकर बता दिया है कि अब अनाप-शनाप खर्च के लिए झारखंड सरकार में कोई जगह नहीं है। सुधार की उम्मीद के आलोक में जर्जर हो रहे भवनों और झारखंड की स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत बयां करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

     

    झारखंड की राजधानी रांची के बीचों-बीच अवस्थित है सदर अस्पताल। करीब 30 एकड़ भूखंड में फैले इस परिसर में पिछले 10 साल में खूब निर्माण हुए हैं। सदर अस्पताल को अपग्रेड करने के लिए किये गये इस निर्माण पर करीब नौ सौ करोड़ रुपये खर्च किये गये। लेकिन इन भवनों का उपयोग आज तक नहीं हो पाया है। रांची का सदर अस्पताल महज एक रेफरल अस्पताल की भूमिका ही निभा रहा है, जहां से सीरियस मरीजों को केवल रेफर किया जाता है। बेहद गरीब तबके के लोग ही वहां इलाज कराने जाते हैं। ऐसे में नौ सौ करोड़ रुपये के खर्च की उपयोगिता पर सवाल तो खड़े होते ही हैं। इसी तरह राज्य के 24 में से 19 जिलों में सदर अस्पताल के लिए भवनों का निर्माण किया गया, लेकिन कहीं भी इनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है। कई अस्पताल भवन तो जर्जर हो गये हैं। निर्माण के बाद से इनके मेंटेनेंस पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च हो गये हैं, जबकि लोगों को इनका लाभ नहीं मिल रहा है। राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार पिछले 10 साल में झारखंड में स्वास्थ्य विभाग ने अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों के लिए 126 इमारतों का निर्माण कराया, लेकिन उनमें से केवल 45 का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। बाकी के भवन खाली पड़े हैं और उनमें लगाये गये दरवाजे और खिड़की भी खोल लिये गये हैं।
    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान जब अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र के लिए नये भवन बनाने पर रोक लगाने का निर्देश दिया, तब ऐसा लगा कि वह राज्य के स्वास्थ्य महकमे को पटरी पर लाने के लिए कमर कस चुके हैं। झारखंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम तो हुआ है, लेकिन इसके साथ ही यह भी हकीकत है कि आधारभूत संरचनाओं के नाम पर अरबों रुपये फूं्के भी गये। मानव संसाधन और दूसरी सुविधाएं जुटाने की बजाय भवन निर्माण पर अधिक जोर दिया गया, जिसका नतीजा सामने है। पिछले साल स्वास्थ्य विभाग का बजट आवंटन 2965.60 करोड़ रुपये था, जिसे इस साल बढ़ा कर 3022.88 करोड़ रुपये किया गया है। बजटीय आवंटन का कितना हिस्सा भवन निर्माण पर खर्च किया गया और उसकी उपयोगिता कितनी हुई, यह जांच का विषय हो सकता है। यदि इसकी निष्पक्ष जांच करायी जाये, तो सारा खेल सामने आ जायेगा। कई लोगों की गर्दन फंसेगी और कई गड़बड़ियां सामने आयेंगी।
    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने स्वास्थ्य सेवाओं में फिजूलखर्ची पर सख्ती से रोक लगाने के साथ उपलब्ध संसाधनों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने का निर्देश देकर यह बात भी साफ कर दी है कि उनका ध्यान समस्याओं के साथ उसकी जड़ों पर भी है। इसलिए वह केवल समीक्षा कर निर्देश देने में विश्वास नहीं करते, बल्कि उन निर्देशों के अनुपालन पर भी ध्यान देते हैं। यह शासन का नया अवतार है। उन्होंने कहा है कि खर्च में वहां कटौती की जाये, जहां सेवाओं की गुणवत्ता पर कोई असर न हो। यह एक साहसिक पहल है।
    इस बात में कोई संदेह नहीं कि कोरोना काल में झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने अच्छा काम किया। सीमित संसाधनों में भी राज्य में न केवल कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण पाया गया, बल्कि संक्रमितों का इलाज भी किया गया। यही कारण है कि राज्य में कोरोना संक्रमण से मृत्यु की दर राष्ट्रीय औसत से भी कम है। राज्य के छह सरकारी मेडिकल कॉलेज आधी-अधूरी व्यवस्था से चल रहे हैं। जिला अस्पतालों और ग्रामीण इलाकों में स्थित सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की हालत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में हेमंत ने इस स्थिति में सुधार के लिए जो निर्देश दिये हैं, उनसे एक उम्मीद की किरण तो जरूर दिखायी देती है।
    जहां तक राष्ट्रीय फलक पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में झारखंड की स्थिति का सवाल है, तो यह बेहद दयनीय है। विभिन्न मानकों पर झारखंड 23वें स्थान पर है। यहां प्रत्येक 16 हजार की आबादी पर एक सरकारी डॉक्टर और तीन स्वास्थ्यकर्मी उपलब्ध हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 11 हजार की आबादी पर एक डॉक्टर और सात स्वास्थ्यकर्मियों का है। इतना ही नहीं, झारखंड में तीन हजार की आबादी के लिए एक बेड है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इतनी आबादी के लिए 34 बेड उपलब्ध हैं। यह एक कड़वी हकीकत है कि झारखंड की स्वास्थ्य सेवाओं की निर्भरता निजी क्षेत्र पर अधिक है और इस कारण राज्य के गरीब लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
    इस स्थिति को सुधारने के लिए बड़े और ठोस कदमों की जरूरत है। सरकारी स्वास्थ्य सेवा को एक दिशा देने की जरूरत है। इसके लिए प्रबंधकीय कौशल आवश्यक है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसी बात पर जोर दिया है। भवन बनाने की बजाय नये संसाधन जुटाने और उनके बेहतर प्रबंधन से स्थिति सुधर सकती है। इसलिए उनके निर्देशों को सकारात्मक माना जाना चाहिए। दूसरे विभागों को भी इस तरह की फिजूलखर्ची बंद करनी चाहिए, क्योंकि झारखंड अब शाहखर्ची का बोझ वहन नहीं कर सकता।

    The days of buildings lying vacant in the health department will be lost
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