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    Home»Breaking News»फुकुशिमा परमाणु संयंत्र: जापान के रेडियो एक्टिव पानी समुद्र में डालने से मचा बवाल, जताई मनुष्य जाति के डीएनए बदलने की आशंका
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    फुकुशिमा परमाणु संयंत्र: जापान के रेडियो एक्टिव पानी समुद्र में डालने से मचा बवाल, जताई मनुष्य जाति के डीएनए बदलने की आशंका

    sonu kumarBy sonu kumarApril 13, 2021Updated:April 13, 2021No Comments4 Mins Read
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    फुकुशिमा परमाणु प्लांट के दूषित जल को प्रशांत महासागर में बहाने के जापान सरकार के फैसले से इस क्षेत्र के देशों में गहरी चिंता पैदा हो गई है। चीन और दक्षिण कोरिया ने इस पर अपना विरोध खुल कर जताया है। इन देशों को एतराज इस बात पर भी है कि जापान ने ये फैसला एकतरफा ढंग से ले लिया। इस मामले में आसपास के देशों को भरोसे में लिया गया, जबकि इसका बुरा असर उन सभी देशों पर पड़ेगा।

     

     

    2011 में आए भूकंप और सुनामी के कारण फुकुशिमा परमाणु संयंत्र नष्ट हो गया था। परमाणु बिजली बनाने के लिए वहां इस्तेमाल होने वाले विकिरण (रेडियो-एक्टिव) युक्त जल को तब से वहां टैंकरों में संभाल कर रखा गया है। इसकी मात्रा दस से 12 लाख टन तक है। आशंका है कि इस जल के कारण समुद्र का एक बड़ा इलाका खतरनाक बन जा सकता है। दक्षिण कोरिया और चीन जैसे तटीय देशों पर इसका सीधा खराब असर पड़ सकता है।

     

     

    सोमवार को जापान सरकार ने फैसला किया कि इस विकिरण युक्त जल को वह समुद्र में बहाना शुरू करेगी। ये काम दो साल में पूरा किया जाएगा। ये खबर आने के बाद दक्षिण कोरिया सरकार ने आपात बैठक बुलाई। इसके बाद जारी एक बयान में दक्षिण कोरिया ने जापान सरकार के फैसले पर गहरा अफसोस जताया। बैठक में दक्षिण कोरियाई आबादी को रेडियो-एक्टिव जल से सुरक्षित रखने उपायों पर विचार विमर्श हुआ।

     

    चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने मंगलवार को एक बयान जारी कर समुद्र में प्रदूषित जल डालने के जापान के फैसले को बेहद गैर-जिम्मेदाराना बताया। उन्होंने कहा कि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य को क्षति पहुंचेगी। साथ ही आसपास के देशों के जरूरी हितों का नुकसान होगा। चीन सरकार के समर्थक अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपी एक टिप्पणी में भी जापान सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना की गई है। साथ ही इस मामले में पश्चिमी देशों पर दोहरा मानदंड अपनाने के आरोप लगाए गए हैं। इसमें ध्यान दिलाया गया है कि समुद्र में रेडियो एक्टिव जल के फैलने से सारी दुनिया प्रभावित होगी, क्योंकि सभी समुद्र एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

     

    ग्लोबल टाइम्स ने जापान के इस फैसले को ‘दुष्टतापूर्ण’ बताया है और ध्यान दिलाया है कि पश्चिमी देशों ने इसकी निंदा नहीं की है। टिप्पणी में कहा गया है- ‘जब चेर्नोबिल में परमाणु दुर्घटना हुई थी, तब पश्चिमी मीडिया और पश्चिमी सरकारें सोवियत संघ पर बरस पड़े थे। उस हादसे का इस्तेमाल सोवियत-विरोधी भावनाएं भड़काने के लिए किया गया। ग्रीनपीस के मुताबिक अब जो पानी जापान समुद्र में डालने जा रहा है, वह हजारों वर्षों तक खतरनाक बना रह सकता है और संभव है कि उससे इंसान का डीएनए बदल जाए। लेकिन इस बार उल्टा रुख अपनाते हुए पश्चिमी मीडिया चुप है।’

     

    खबरों के मुताबिक जापान के फैसले से आसपास के मछुआरे बेहद नाराज हैं। इस क्षेत्र में रेडियो एक्टिव जल के कारण मछली उद्योग के तबाह हो जाने का अंदेशा है। जापान के मछुआरों के संगठन ने कहा है कि इससे पीढ़ियों में तैयार उनका कारोबार बर्बाद हो जाएगा। लेकिन जापान सरकार ने अपने कदम को सही ठहराया है।

     

    जापानी प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने कहा कि ये फैसला व्यावहारिक है और फुकुशिमा प्लांट को फिर से शुरू करने के लिए अनिवार्य है। इस संयंत्र की संचालक कंपनी टोक्यो इलेक्ट्रिक पॉवर ने कहा है कि रेडियो एक्टिव पदार्थ ट्राइटियम को जल से निकालना संभव नहीं है, लेकिन यह कम मात्रा में हानिकारक नही होता। दूसरे रेडियो एक्टिव पदार्थों को उस सीमा तक घटाया जा सकता है, जिससे वे नुकसानदेह ना रह जाएं।

     

    अमेरिका ने जापान के कदम का समर्थन किया है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा है कि जापान ने ‘पारदर्शी’ प्रक्रिया अपनाई है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने भी कहा है कि ट्रीटमेंट के बाद समुद्र में डाला गया पानी खतरनाक नहीं रहेगा।

     

    लेकिन गैर सरकारी संस्था ग्रीनपीस जापान ने जापान सरकार के इस फैसले की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि ये निर्णय मानव अधिकारों और फुकुशिमा के लोगों के अधिकारों की पूरी अनदेखी करते हुए लिया गया है। इसका खराब असर पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र पर पड़ेगा। ग्रीनपीस की जर्मनी शाखा ने कहा है कि जापान सरकार गलत जानकारियां देकर अपनी जनता और दुनिया क धोखा दे रही है। फुकुशिमा प्लांट का जल अब भी दूषित और खतरनाक है।

     

     

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