सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने शुक्रवार को चीन को स्पष्ट संदेश देते हुए कहा कि पूर्वी लद्दाख के सभी विवादित क्षेत्रों से सैनिकों की पूरी तरह वापसी होने के बाद ही तनाव खत्म हो सकता है। भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर किसी भी तरह का एकतरफा बदलाव नहीं होने देगी और इन क्षेत्रों में हर तरह की चुनौतियां स्वीकार करने के लिए तैयार है। भारत फिलहाल एलएसी पर अपने दावों की शुचिता को ध्यान में रखकर चीन के साथ मजबूती से अपनी ओर से बिना तनाव बढ़ाये वार्ता कर रहा है।
जनरल नरवणे ने शुक्रवार को एक साक्षात्कार में कहा कि भारत की उत्तरी सीमा से लगे इलाके में स्थिति नियंत्रण में है। पूर्वी लद्दाख के महत्वपूर्ण इलाके भारतीय सेना के कब्जे में हैं और किसी भी तरह की आपात स्थिति से निपटने के लिए हमारे पास रिजर्व के रूप में भी पर्याप्त सेना है। भारत एलएसी पर शांति और स्थिरता चाहता है, इसलिए विश्वास बहाली के लिए हर तरह की कोशिश करने के साथ ही सभी आपात स्थितियों का मुकाबला करने के लिए भी तैयार हैं। उन्होंने दोनों सेनाओं को पेशेवर बताते हुए चीन को जल्द से जल्द विश्वास बहाली करके गतिरोध सुलझाने का स्पष्ट सन्देश दिया। उन्होंने कहा कि भारत और चीन ने पहले से कई समझौतों पर हस्ताक्षर कर रखे हैं जिनका चीन की सेना ने पिछले साल से सीमा पर एकतरफा बदलाव करने की कोशिश करके उल्लंघन किया है।
सेना प्रमुख ने कहा कि 05 मई को पूर्वी लद्दाख में दोनों पक्षों के बीच सैन्य गतिरोध का एक साल पूरा हो चुका है। इस दौरान 15/16 जून को एलएसी पर 45 वर्षों में पहली बार हिंसक संघर्ष में दोनों पक्षों की मौत हुई थी। गलवान घाटी की इस घटना पर उन्होंने कहा कि भारतीय सेना दोनों देशों के बीच सभी प्रोटोकॉल और समझौतों को बनाए रखती है, जबकि पीएलए ने अपरंपरागत हथियारों के उपयोग और बड़ी संख्या में सैनिकों को इकट्ठा करके स्थिति को बढ़ा दिया।सेना प्रमुख ने कहा कि गलवान घाटी में घातक झड़प के बाद भारत-चीन के संबंध गंभीर तनाव में आ गए, जिसके बाद दोनों पक्षों ने हजारों अतिरिक्त सैनिकों के साथ-साथ युद्धक टैंकों और अन्य बड़े हथियारों को क्षेत्र में भेज दिया।
जनरल नरवणे ने कहा कि जब दो देशों के बीच एक बड़ा गतिरोध होता है, तो दोनों पक्षों के हताहत होने की स्थिति में विश्वास का स्तर कम होना तय है। हालांकि हमारा हमेशा प्रयास रहा है कि यह विश्वास की कमी बातचीत की प्रक्रिया में बाधा न बने। जनरल नरवणे ने जोर देकर कहा कि चीन से अगली सैन्य वार्ता में अप्रैल, 2020 की पूर्व स्थिति को बहाल करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सैन्य और राजनयिक वार्ता की एक श्रृंखला के बाद एक समझौते के बाद पैन्गोंग झील के दोनों किनारों पर विस्थापन प्रक्रिया में सीमित प्रगति हुई है जबकि अन्य विवादित बिंदुओं पर इसी तरह के कदमों के लिए बातचीत रुकी पड़ी है। यह पूछे जाने पर कि हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और डेप्सांग में कब तक गतिरोध खत्म होने की उम्मीद की जा सकती है तो सेना प्रमुख ने कहा कि समय सीमा की भविष्यवाणी करना मुश्किल है।
थल सेनाध्यक्ष ने यह भी कहा कि वर्तमान में दोनों तरफ के सैनिकों की संख्या पिछले साल की तुलना में कमोबेश पुरानी स्थिति में है।एलएसी से करीब 1,000 किलोमीटर की दूरी पर गहराई वाले इलाकों में स्थित पीएलए के प्रशिक्षण क्षेत्रों पर भी नजर रखी जा रही है। वर्तमान में एलएसी के साथ संवेदनशील क्षेत्रों में दोनों देशों के लगभग 50 से 60 हजार सैनिक तैनात हैं। दोनों पक्षों ने तनाव कम करने के उद्देश्य से 11 दौर की सैन्य वार्ता की है। चीनी पक्ष ने 9 अप्रैल को हुई अंतिम वार्ता में अपने दृष्टिकोण में लचीलापन नहीं दिखाया है। दोनों सेनाएं अब विस्थापन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए बातचीत में लगी हुई हैं। चीनी सेना वर्तमान में अपने प्रशिक्षण क्षेत्रों में एक अभ्यास कर रही है।