Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Monday, June 9
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Breaking News»झारखंड को चाहिए प्रशासनिक तोड़-फोड़ से मुक्ति
    Breaking News

    झारखंड को चाहिए प्रशासनिक तोड़-फोड़ से मुक्ति

    azad sipahiBy azad sipahiOctober 19, 2021No Comments6 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    झारखंड दुनिया का संभवत: अकेला ऐसा प्रदेश है, जहां प्रशासनिक तोड़-फोड़ सबसे अधिक होती है। स्थापना के 21 साल बाद यदि अतिक्रमण हटाने के नाम पर की गयी प्रशासनिक तोड़-फोड़ और नये निर्माण की तुलना की जाये, तो शायद अतिक्रमण हटाने का काम अधिक हुआ है। एक बार फिर अतिक्रमण हटाने के नाम पर रांची समेत दूसरे शहरों में प्रशासनिक तोड़-फोड़ की तैयारी की जाने लगी है। यह कितना अजीब लगता है, जब प्रशासन किसी व्यक्ति को बेघर करता है, जबकि भारत का संविधान देश को लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में परिभाषित करता है। लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं है कि अतिक्रमण को उचित ठहरा दिया जाना चाहिए, जैसा कि अक्सर राजनीतिक कारणों से होता है, पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर बेवजह तोड़-फोड़ करने की जगह किसी विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए। शहरों पर बढ़ते आबादी के दबाव के कारण झारखंड जैसे राज्य में ऐसी योजनाएं बनाये जाने की जरूरत हैं, जिन्हें धरातल पर उतार कर कम से कम अगले 50 साल तक नया शहर विकसित करने की जरूरत नहीं पड़े, लेकिन झारखंड की राजधानी रांची में महज 15 साल का मास्टर प्लान बनाया जा रहा है। यह वास्तव में नौकरशाही का वह जाल है, जिसकी मारक क्षमता का किसी को अंदाजा नहीं है। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से ही यह देखा जा रहा है कि झारखंड के अधिकारी केवल योजनाएं बनाते हैं, उन्हें लागू कराने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं होती। इसलिए यहां शहरों का मास्टर प्लान भी दोषपूर्ण है और उसे लागू करने में दिक्कतें आ रही हैं। झारखंड में शहरों के योजनाबद्ध विकास और आबादी के बढ़ते दबाव की चुनौतियों के बीच प्रशासनिक बेपरवाही को रेखांकित करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह की खास रिपोर्ट।

    21 साल पहले भारतीय गणतंत्र के राजनीतिक नक्शे पर 28वें राज्य के रूप में उदित झारखंड का यह दुर्भाग्य रहा है कि यह विकास की दौड़ में अपने साथ बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के मुकाबले पिछड़ गया है। झारखंड का पिछड़ापन केवल आर्थिक या सामाजिक मोर्चे पर ही नहीं है, बल्कि सामाजिक और शैक्षणिक मोर्चे पर भी यह राज्य अपेक्षित विकास नहीं कर सका है। खास कर शहरीकरण जैसे गंभीर मुद्दे पर झारखंड में कभी कोई प्रभावी विचार ही नहीं किया गया, जबकि हकीकत यह है कि झारखंड समेत पूरे देश में शहरी विकास की रफ्तार बेहद तेज हो गयी है। झारखंड में शहरीकरण की योजना बनानेवाले अधिकारियों की स्थिति यह है कि वे पिछले 21 साल में राजधानी के कांटाटोली और रातू रोड में बननेवाले फ्लाइ ओवर की योजना को अंतिम रूप नहीं दे सके हैं। बिना किसी मास्टर प्लान के झारखंड के शहरों में तोड़-फोड़ की जा रही है, जिससे स्थिति सुधरने की बजाय बिगड़ रही है।

    आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सरकारी आंकड़ों के हिसाब से झारखंड के एक सौ से अधिक गांव पिछले 21 साल में शहर बन गये हैं। 2001 से 2011 के दशक में झारखंड के जिलों में शहरीकरण की दर 32.36 प्रतिशत रही। बाद के दशक में भी झारखंड की शहरी आबादी में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। 2011 की जनगणना में झारखंड की 72.38 प्रतिशत स्लम आबादी अकेले क्लास-वन शहरों में निवास करती दिखायी गयी है। रांची शहर में झुग्गियों में रहनेवाले लोग सबसे अधिक 19.92 प्रतिशत हैं। इसके अलावा झारखंड सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज 109 गांव शहर हो गये हैं। भारत सरकार के जनगणना कार्य निदेशालय ने तय मानकों के आधार पर इनकी पहचान की है। झारखंड सरकार को इसकी रिपोर्ट सौंप दी गयी है। 2021 की जनगणना इन्हें गांव की जगह शहर मान कर होगी। जनगणना कार्य निदेशालय ने शहर का रूप अख्तियार कर चुके ऐसे गांवों को सेंसस टाउन का दर्जा दिया है। पिछली जनगणना की रिपोर्ट आने के बाद इन गांवों ने शहर का रूप धारण किया है। प्रदेश के अधिकतर जिलों में ऐसे गांव चिह्नित किये गये हैं। राज्य सरकार को भी अब ऐसे गांवों के लिए शहरी विकास के पैमाने पर ही पहल करनी होगी। नगर निकाय का दर्जा देने से पहले भी इसके बारे में विचार करना होगा। झारखंड नगरपालिका अधिनियम के तहत नगर निकाय का दर्जा देने के पैमाने अलग हैं।

    लेकिन अफसोस इस बात का है कि नये शहरों की कौन कहे, रांची जैसे क्लास वन शहरों में भी नगरीय विकास का कोई खाका नहीं खींचा जा रहा है। छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और बिहार जैसे राज्य जहां अपने शहरों के विकास की योजना 2050 की आबादी को ध्यान में रख कर बना रहे हैं, झारखंड के अधिकारी 2037 से आगे ही नहीं बढ़ पा रहे हैं। इसका नतीजा यह होता है कि शहरों में अतिक्रमण बढ़ता है और योजना के अभाव में लोगों के सामने समस्याएं बढ़ती हैं। मास्टर प्लान के अभाव में शहरों का विस्तारीकरण नहीं हो रहा है। उदाहरण के लिए रांची को ही लें। नयी राजधानी और स्मार्ट सिटी की योजना तो बन गयी है, लेकिन पुराने शहर में बड़े-बड़े मॉल और आवासीय परिसरों का विकास धड़ल्ले से हो रहा है, जिससे ट्रैफिक आदि की समस्याएं बढ़ रही हैं। अब रांची के सरकुलर रोड को नये सिरे से चौड़ा करने की योजना बन रही है, यानी इस सड़क के आसपास बने मकान तोड़े जायेंगे। इस सड़क को चौड़ा करने की बजाय यदि नये सरकुलर रोड की योजना बनायी जाये, तो उसमें तोड़-फोड़ कम होगी और विरोध भी नहीं होगा। लेकिन झारखंड के अधिकारियों को इस सबसे कोई मतलब नहीं है। वे बस योजना बनाना जानते हैं और यह काम पिछले 21 साल से बदस्तूर जारी है। योजनाओं में खामियों का नतीजा राजनीतिक नेतृत्व को भुगतना पड़ता है, अधिकारी कभी इसकी जिम्मेवारी नहीं लेते।

    जानकार बताते हैं कि अगले दो दशकों में झारखंड की सबसे गंभीर समस्या शहरीकरण को लेकर हो सकती है। विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की तरफ इतनी बड़ी तादाद में लोग पलायन कर रहे हैं कि 2030 तक देश की आधी से ज्यादा आबादी शहरों में रहेगी। इस शहरीकरण के लिए झारखंड की कोई तैयारी नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार इस तरफ इसलिए ध्यान नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि आज भी यह माना जाता है कि यह कृषि प्रधान प्रदेश है। इसलिए यहां ग्रामीण विकास पर अधिक ध्यान दिया जाता है और शहरी समस्याओं की कम। लेकिन अब इससे काम नहीं चलनेवाला है। झारखंड के बड़े शहरों को ऐसे मास्टर प्लान की जरूरत है, जिस पर काम कर शहरों को अगले 50 साल के लिए विकसित किया जा सके। इतना ही नहीं, योजना के अभाव में अतिक्रमण हटाने या सड़क चौड़ीकरण के नाम पर होनेवाली अनावश्यक तोड़-फोड़ से भी मुक्ति जरूरी है।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleराष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने मिलाद-उन-नबी की बधाई दी
    Next Article कोरोना से अनाथ बच्चों को नहीं मिला मां-पिता का मृत्यु प्रमाण पत्र
    azad sipahi

      Related Posts

      एक साथ कई निशाने साध गया मोदी का ‘कूटनीतिक तीर’

      June 8, 2025

      राहुल गांधी का बड़ा ‘ब्लंडर’ साबित होगा ‘सरेंडर’ वाला बयान

      June 7, 2025

      बिहार में तेजस्वी यादव के लिए सिरदर्द बनेंगे चिराग

      June 5, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • भारत ने पिछले 11 वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से परिवर्तन देखा: प्रधानमंत्री मोदी
      • ठाणे में चलती लोकल ट्रेन से गिरकर 6 यात्रियों की मौत, सात घायल
      • प्रधानमंत्री ने भगवान बिरसा मुंडा को उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि दी
      • हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल ने श्री महाकालेश्वर भगवान के दर्शन किए
      • ‘हाउसफुलृ-5’ ने तीसरे दिन भी की जबरदस्त कमाई, तीन दिनों का कलेक्शन 87 करोड़
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version