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    Home»विशेष»भारत में इस्लामी आतंक का फैलता खूनी पंजा
    विशेष

    भारत में इस्लामी आतंक का फैलता खूनी पंजा

    azad sipahiBy azad sipahiJuly 3, 2022No Comments8 Mins Read
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    • धर्मांधता और कट्टरपंथ को कौन और कैसे दे रहा प्रोत्साहन और फलने-फूलने की इजाजत

    दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव तो मना रहा है, लेकिन इन दिनों यहां जो घटनाएं हो रही हैं, उनसे साफ पता चलता है कि यहां सब कुछ ठीक नहीं है। दो कातिल दिनदहाड़े भरे बाजार में एक निरपराध व्यक्ति की केवल इसलिए हत्या कर देते हैं, क्योंकि उसने सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी टिप्पणी कर दी थी, जो उन कातिलों को नागवार गुजरी। राजस्थान के उदयपुर में घटी इस घटना ने भारत के 130 करोड़ लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या 21वीं सदी की सूचना क्रांति के इस दौर में लोग इतने धर्मांध भी हो सकते हैं। लेकिन यह सब सोचने से पहले यह जानना जरूरी है कि इस तरह की धर्मांधता और कट्टरपंथ को कौन और कैसे प्रोत्साहन देता है, फलने-फूलने की इजाजत देता है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस्लामी आतंकवाद ने पूरी दुनिया को सांसत में डाल रखा है। इन आतंकी संगठनों का न कोई धर्म है और न कोई विचारधारा। ये केवल खून बहाना जानते हैं और उदयपुर की घटना के पीछे भी ऐसे ही एक संगठन का नाम सामने आ रहा है, जिसे लोग दावत-ए-इस्लामी के नाम से जानते हैं। तेल और गैस की बेशुमार दौलत के मालिक अरब देशों की भीख पर पल रहे इन कट्टरपंथी आतंकी संगठनों के बारे में दुनिया भर में कई चौंकानेवाले शोध हुए हैं। खास कर 9/11 की घटना के बाद तो तालिबान और आइएसआइएस से लेकर दावत-ए-इस्लामी के बारे में पश्चिमी देशों ने कई खुलासे किये हैं, कई दस्तावेज जारी किये हैं। उदयपुर की घटना के बाद दावत-ए-इस्लामी का नाम सामने आने से इस संगठन के बारे में जानना जरूरी है। आज इस खतरनाक आतंकी संगठन के बारे में विस्तार से जानकारी देती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की खास रिपोर्ट।

    राजस्थान के उदयपुर में कपड़ा सिलने का काम करनेवाले कन्हैया लाल की नृशंस हत्या के बाद कई तरह की बातें कही जा रही हैं। कुछ लोग इसे इस्लामी कट्टरपंथ से जोड़ रहे हैं, तो कुछ लोग इसे एक सोची-समझी साजिश करार दे रहे हैं। जांच एजेंसियां अपने तरीके से काम कर रही हैं और इस हत्याकांड की जांच आतंकी एंगल से भी की जा रही है। हत्याकांड की जांच करने के लिए राजस्थान सरकार ने एसआइटी का गठन किया। एसआइटी टीम उदयपुर में जांच कर रही है। इस हत्याकांड की जांच एनआइए भी कर रही है।

    इस बीच इस हत्याकांड का पाकिस्तान कनेक्शन भी सामने आया है। बताया जा रहा है कि कन्हैया लाल का गला काटने वाले दोनों आरोपी पाकिस्तान के एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन दावत-ए-इस्लामी से जुड़े हुए थे। यह जानकारी सामने आने के बाद इस संगठन के बारे में तरह-तरह की बातें कही जा रही हैं। भारत में अब तक इस संगठन के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की सरकारी और निजी एजेंसियों ने इस संगठन के बारे में समय-समय पर जो दस्तावेज तैयार किये हैं, वे काफी चौंकानेवाले हैं। इन दस्तावेजों के गहन अध्ययन से पता चलता है कि दावत-ए-इस्लामी नौजवानों को जिहादी बनने का बाकायदा प्रशिक्षण देता है और इसके लिए आॅनलाइन कोर्स भी चलाता है। अल-कायदा और आइएसआइएस जैसे खतरनाक आतंकी संगठनों और दावत-ए-इस्लामी में अंतर केवल इतना भर है कि यह संगठन हथियारों का कारोबार नहीं करता है।

    दुनिया के 154 देशों में है सक्रिय
    पश्चिमी देशों द्वारा तैयार दस्तावेज में बताया गया है कि दावत-ए-इस्लामी नामक यह संगठन दुनिया के 154 से ज्यादा देशों में सक्रिय है और इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए कई तरह के आॅनलाइन कोर्स भी चला रहा है। इससे पहले भारत में इस इस्लामी संगठन पर धर्मांतरण के भी आरोप लग चुके हैं। ऐसी भी खबरें आयी हैं कि इस संगठन द्वारा जगह-जगह पर दान पेटियां रखी जाती हैं। आरोप है कि इनके माध्यम से आने वाले धन को गलत गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाता है।

    गैर-राजनीतिक संगठन होने का दावा
    दावत-ए-इस्लामी खुद को गैर राजनीतिक इस्लामी संगठन करार देता है। इसकी स्थापना 1981 में पाकिस्तान के कराची में हुई थी। मौलाना अबू बिलाल मुहम्मद इलियास ने इस इस्लामिक संगठन की स्थापना की थी। भारत में यह संगठन पिछले चार दशकों से सक्रिय है। शरिया कानून का प्रचार-प्रसार करना और उसकी शिक्षा को लागू करना संगठन का उद्देश्य है। इस समय यह संगठन डेढ़ सौ से ज्यादा देशों में अपना नेटवर्क फैला चुका है।

    शरिया कानून का प्रचार-प्रसार है काम
    दावत-ए-इस्लामी की अपनी खुद की वेबसाइट है। वेबसाइट के माध्यम से यह इस्लामिक संगठन कट्टर मुसलमान बनने के लिए शरिया कानून के तहत इस्लामी शिक्षाओं का आॅनलाइन प्रचार-प्रसार कर रहा है। करीब 32 तरह के इस्लामी कोर्स इसकी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए अलग-अलग तरह के कोर्स हैं। इसके अलावा यह संगठन कुरान पढ़ने और मुसलमानों को हर तरीके से शरिया कानून के लिए तैयार करता है।
    दावत-ए-इस्लामी संगठन पर कई बार धर्मांतरण के आरोप भी लगे हैं। यह संगठन अपनी वेबसाइट पर एक न्यू मुस्लिम कोर्स भी संचालित करता है। यह कोर्स भी पूरी तरह से आॅनलाइन है। इसका उद्देश्य धर्मांतरण कर नये-नये मुसलमानों को इस्लामी शिक्षाओं से रूबरू कराना है। इस कोर्स के माध्यम से धर्मांतरण करनेवालों को जिहादी बनने की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है।

    उदयपुर हत्याकांड की जांच में दावा किया जा रहा है कि उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या करने वाले दोनों आरोपी मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद दावत-ए-इस्लामी नाम के संगठन से जुड़े हुए हैं। ये दोनों इस्लामी संस्था के आॅनलाइन कोर्स से जुड़े हुए हैं। हत्या के बाद दोनों आरोपी अजमेर दरगाह जियारत के लिए जाने वाले थे। दरअसल, यह संगठन दुनिया भर में सुन्नी कट्टरपंथ को बढ़ावा देता है।
    दावत-ए-इस्लामी संगठन की शुरूआत भारत में 1989 से हुई थी। तब पाकिस्तान से उलेमा का एक प्रतिनिधिमंडल भारत आया था। इसके बाद यह संगठन धीरे-धीरे भारत में अपनी जड़ें मजबूत करता चला गया। यहां मुंबई और दिल्ली में इस संगठन के मुख्यालय हैं। इसके ज्यादातर सदस्य हरे रंग की पगड़ी बांधते हैं। अपने संदेश को प्रसारित करने के लिए इस संगठन ने मदनी चैनल भी बनाया है।

    अल-कायदा और आइएसआइएस से अलग है
    दावत-ए-इस्लामी के बारे में जो जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार यह संगठन धर्म प्रचार की आड़ में आतंकी गतिविधियों को प्रश्रय देता है। कोरोना महामारी की शुरूआत में जैसे तबलीगी जमात का नाम पूरे देश में चर्चित हुआ था, उसी तरह दावत-ए-इस्लामी भी खुद को पैगंबर मोहम्मद का सिपाही बताता है। पश्चिमी देशों के दस्तावेज बताते हैं कि यह संगठन अल-कायदा और आइएसआइएस से अलग है। दावत-ए-इस्लामी हथियारों और गोला-बारूद का कारोबार नहीं करता है, लेकिन इस तरह के प्रमाण कई बार सामने आये हैं कि यह संगठन इस तरह की गतिविधियों के लिए धन मुहैया कराता है। साथ ही आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों को दूसरी तरह की सुविधाएं भी यह संगठन उपलब्ध कराता है।

    कानपुर हिंसा में भी आया था नाम
    उदयपुर कांड के बाद चर्चा में आये दावत-ए-इस्लामी का नाम कानपुर हिंसा में भी सामने आया था। उस दौरान आरोपियों से पूछताछ में सामने आया था कि तबलीग की आड़ में धर्मांतरण का खेल जारी है और देश में इनका संजाल फैला हुआ है। फिर यह जानकारी मिली कि दावत-ए-इस्लामी तबलीग (मत के प्रचार) की आड़ में धर्मांतरण का कार्य भी करता है। इसके लिए वह अपने सदस्यों को प्रशिक्षित कर समूह के रूप में कस्बों और शहरों में भेजता है। वे ऐसे लोगों की तलाश में रहते हैं, जो उनकी बातें सुन कर उनका अनुसरण कर सकें। ज्यादा से ज्यादा भ्रमण में रहने पर इनका फोकस रहता है। दूसरी ओर सूफी खानकाह एसोसिएशन का भी दावा है कि दावत-ए-इस्लामी के सदस्य धर्मांतरण के कार्य में सक्रिय हैं। अभी तक कितने लोगों का धर्मांतरण कराया है, इसकी जानकारी संगठन के सदस्यों से पूछताछ करने पर ही मिल सकती है। कानपुर में दावत-ए-इस्लामी के सदस्यों की संख्या 10 हजार से ज्यादा बतायी जा रही है। सूफी खानकाह एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौसर हसन मजीदी ने बताया कि दावत-ए-इस्लामी भारत में धर्मांतरण करा रहा है। इसके साक्ष्य भी मिल चुके हैं। अपने मत की अच्छाइयां बता कर वह दूसरों का ब्रेनवाश कर अपने मत में शामिल कराने का प्रयास करते हैं। इसकी शिकायत वह कई बार लिखित रूप में भी कर चुके हैं।

    उदयपुर हत्याकांड के बाद कमिश्नरेट पुलिस ने सूफी खानकाह एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौसर हसन मजीदी की सुरक्षा बढ़ा दी है। मजीदी को पिछले दिनों पाकिस्तानी नंबरों से धमकियां मिल रही थीं। मजीदी की खासियत है कि वह गलत को गलत कहने का माद्दा रखते हैं और साजिशों को उजागर करते रहते हैं। इस कारण आतंकियों ने उन पर अपनी भृकुटि टेढ़ी कर ली है।

    अब तक की पड़ताल में पता चला है कि दावत-ए-इस्लामी के संचालकों में सबसे बड़ा नाम सरताज का है। वह तलाक महल का रहनेवाला है। मुस्लिम क्षेत्रों में संगठन के करीब 50 हजार समर्थक हैं। कानपुर में गंगा पार बड़ा मदरसा बनाया जा रहा है। इसके साथ ही नयी सड़क बवाल में इस संगठन की भूमिका को लेकर भी जांच की जा रही है।

    भारत में सक्रिय इस्लामी आतंकी संगठन, मसलन लश्करे तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद या दूसरे संगठनों की तरह दावत-ए-इस्लामी भी बड़ी तेजी से अपना खूनी पंजा फैलाने में लगा है। इस पर तत्काल नियंत्रण जरूरी हो गया है, क्योंकि जिस तरह के कट्टरपंथ को यह बढ़ावा दे रहा है, उससे भारत की नींव ही कमजोर हो जायेगी।

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