देश को एकता और भाईचारे का संदेश देनेवाला पश्चिम बंगाल आज अजीब सी परिस्थिति में फंसा हुआ है। देश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जानेवाले इस राज्य में आज देशतोड़क शक्तियां सिर उठा रही हैं। भद्रलोक का इलाका अलगाववादियों का गढ़ बनता जा रहा है। ताकतवर वामपंथी दलों के गढ़ को ढाह कर सत्ता तक पहुंची ममता बनर्जी अब संघर्ष का पर्याय नहीं रह गयी हैं, बल्कि उनकी पहचान ऐसी नेता के रूप में बन गयी है, जो अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को दुश्मन समझते हैं। ममता की कार्यशैली और नीतियों ने बंगाल को अशांत कर रखा है। यह प्रदेश पीएफआइ जैसे अलगाववादी संगठन का केंद्र बन गया है, जबकि यहां पहले से ही नक्सलियों ने पैर जमा रखा है। इसके अलावा अवैध तरीके से घुसे बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं ने बंगाल की संस्कृति को ही खतरे में डाल दिया है। लेकिन इन समस्याओं की तरफ ममता का ध्यान नहीं है, क्योंकि इनसे उनकी राजनीति चलती है। हाल के दिनों में बंगाल इतना अधिक परेशान या अशांत कभी नहीं रहा। पश्चिम बंगाल के अशांत होने और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राजनीति पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।