पत्थर को जमीन पर दे मारिये तो वह टूट कर बिखर जाता है, वहीं रबड़ की गेंद के साथ यही कवायद करने पर वह आसानी से उछलती रहती है और उसकी सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता। तो जीवन में जितना महत्वपूर्ण रवैया है उतना ही राजनीति में भी। और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन का अड़ियल रवैया भी उनकी राह में मुसीबतें पैदा कर रहा है। राजद के प्रदेश के नेता जब उनसे सीट शेयरिंग पर बात करने गये तो पहले दिन हेमंत ने उन्हें नजरअंदाज किया। वे यह भूल गये कि झारखंड में राजद टूटी है लालू यादव नहीं टूटे हैं और अब भी किंग मेकर से कुछ कम स्वीकार करने के मूड में लालू यादव नहीं हैं चाहे उनका स्वास्थ्य बेहतर न हो, पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। झाविमो पहले ही झामुमो से किनारा कर चुका है। कांग्रेस आलाकमान भी अलग से हेमंत को बहुत भाव नहीं दे रहा है। माले भी उनके बारे में अपना विचार व्यक्त कर चुका है। हां, सीपीआइ और सीपीएम को छोड़ दिया जाये तो हेमंत के साथ उनकी पार्टी के विधायक और कार्यकर्ता ही साथ खड़े दिखायी दे रहे हैं। झारखंड की राजनीति में खुद को और अपनी पार्टी को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए हेमंत सोरेन को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा। यह जरूरत हाल के दिनों में आत्ममंथन करते समय वे महसूस भी कर रहे होंगे। विधानसभा चुनाव नजदीक आने पर झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी की चुनौतियों को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।