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सुनहरे वर्तमान के लिए अतीत में संघर्षों से कितना जूझना-लड़ना पड़ा है, यह दिशोम गुरु शिबू सोरेन से बेहतर शायद ही कोई जानता होगा। अपने 77वें जन्मदिन पर शुभचिंतकों की बधाइयां लेते और खुद पर लिखी गयी किताबों के पन्ने पलटते अतीत का स्मरण हो आना स्वाभाविक है और यही सोमवार को झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के साथ हुआ। रांची विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार मेें जब उन्होंने महाजनों के खिलाफ संघर्ष की अपनी गाथा सुनानी शुरू की, तो जैसे वे अपने पुराने दिनों में