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    Home»Top Story»मिशन 2019: हेमंत पलामू प्रमंडल में भरेंगे हुंकार
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    मिशन 2019: हेमंत पलामू प्रमंडल में भरेंगे हुंकार

    azad sipahiBy azad sipahiJanuary 11, 2019No Comments5 Mins Read
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    रांची। मिशन 2019 को लेकर झारखंड के सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। झारखंड की प्रमुख विपक्षी पार्टी झामुमो लगातार इसको लेकर जनता के बीच काम कर रही है। संघर्ष यात्रा के माध्यम से नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन जनता को झामुमो के साथ जोड़ने की मुहिम छेड़ चुके हैं। अपने पिता और दिशोम गुरु शिबू सोरेन की विरासत को लगातार वह आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। सितंबर महीने के अंतिम सप्ताह से हेमंत सोरेन ने संघर्ष यात्रा की शुरुआत की।

    पहले चरण में उन्होंने कोल्हान प्रमंडल में संघर्ष यात्रा निकाली और जनता को गोलबंद करने का काम किया। कोल्हान प्रमंडल में यह यात्रा 27 सितंबर से दो अक्तूबर तक चली। इस दौरान हेमंत ने 10 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया। कोल्हान में झामुमो की स्थिति सबसे मजबूत है। हेमंत ने एक रणनीति के तहत संघर्ष यात्रा की शुरुआत कोल्हान प्रमंडल से की थी। हेमंत ने इस दौरान भाजपा के कई नेताओं को अपने पाले में किया। इसके बाद बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलीहातू से हेमंत ने संघर्ष यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत की। 28 अक्टूबर से तीन नवंबर तक चली इस यात्रा में हेमंत ने गुमला, सिमडेगा, खूंटी और लोहरदगा जिले में कार्यक्रम किये।

    इस क्रम में उन्होंने मुख्य रूप से युवाओं को ताड़ने का काम किया। हेमंत ने उन सभी मुद्दों को जनता के बीच रखने का काम किया, जो झारखंड की राजनीति में हॉट केक बने हुए हैं। मसलन सीएनटी-एसपीटी एक्ट, भूमि अधिग्रहण कानून, स्थानीयता, नियोजन नीति, स्कूलों का विलय आदि। पिछले चार साल में सरकार की ओर से लिये गये फैसलों के बारे में उन्होंने लोगों को बताया और उन्हें जनविरोधी करार दिया। हेमंत ने लोगों से कहा कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट, नियोजन और स्थानीय नीति के तहत यहां के आदिवासियों-मूलवासियों को ठगा गया है। आदिवासियों की जमीन लूट, महंगाई, मजदूरों विरोधी काला कानून, मॉब लिंचिंग, किसानों एवं भूख से हो रही मौतों को मुद्दा बनाकर हेमंत ने जनता को आकर्षित करने का प्रयास किया।

    पहले चरण में हेमंत ने जुगसलाई, घाटशिला, पोटका, सरायकेला, खरसावां, चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर एवं चक्रधरपुर में जनसभाएं कीं। दूसरे चरण में झामुमो ने सरकार की नीतियों के खिलाफ बिरसा मुंडा की जन्मभूमि उलीहातू से उलगुलान शुरू किया। संघर्ष यात्रा सिसई (गुमला) में समाप्त हुई। इस दौरान खूंटी, सिमडेगा, गुमला में कार्यक्रम किये गये। जिन मुद्दों को लेकर झामुमो संघर्ष यात्रा कर रहा है, वे सीधे तौर पर जनता से जुड़े हुए हैं। 12 जनवरी से हेमंत पलामू प्रमंडल में संघर्ष यात्रा शुरू करेंगे। हेमंत की संघर्ष यात्रा चंदवा से शुरू होगी। यह यात्रा पांकी विधानसभा क्षेत्र में खत्म होगी। पांच दिनों की यात्रा में हेमंत आधा दर्जन से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में सभाएं करेंगे।

    यहां यह बताना लाजिमी है कि हेमंत सोरेन अपने पिता शिबू सोरेन की विरासत को जीवित रखने के लिए यह मुहिम छेड़े हुए हैं। झारखंड में यदि देखा जाये, तो शिबू सोरेन सर्वमान्य नेता के रूप में जाने जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में यह देखा गया था कि कांग्रेस ने अंतिम समय में महागठबंधन नहीं किया था। लिहाजा झामुमो अकेले चुनावी समर में उतरा था और मोदी लहर के बावजूद अपनी सीट में इजाफा किया था।

    पिछले चुनाव को याद कर हेमंत इस बार हर कदम सोच-समझ कर आगे बढ़ा रहे हैं। यही वजह है कि हेमंत सोरेन ने 17 जनवरी को महागठबंधन को लेकर सभी विपक्षी दलों की बैठक बुलायी है। 17 जनवरी को यह साफ हो जायेगा कि झारखंड में महागठबंधन का स्वरूप क्या होगा। अलबत्ता हेमंत को यह अहसास हो रहा है कि इस बार भी कांग्रेस पार्टी अंतिम समय में पलटी मार सकती है, इसको ध्यान में रखकर ही यह बैठक बुलायी गयी है। जानकारी के अनुसार यदि 17 को महागठबंधन पर विपक्षी दलों की बात नहीं बनती है, तो हेमंत अलग राह अख्तियार कर सकते हैं। तीन राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद जिस तरह से कांग्रेस पार्टी ने अपना रवैया बदल लिया है, उससे झामुमो सचेत है।

    कोलेबिरा उपचुनाव में अपनी राह कांग्रेस से अलग कर हेमंत सोरेन ने यह संकेत दे दिया है कि झामुमो अब वह कांग्रेस पार्टी की पिछलग्गू नहीं बनेगा। साथ ही झामुमो दिल्ली दरबार के इशारे पर काम भी नहीं करेगा। यहां यह बात दीगर है कि राज्यसभा चुनाव के समय कांग्रेस ने झामुमो से यह वादा किया था कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में रहेगा और विधानसभा चुनाव में झामुमो को बड़े भाई का दर्जा दिया जायेगा। समय के साथ कांग्रेस पार्टी इससे अलग काम कर रही है। अब कांग्रेस पार्टी यह कह रही है कि जिसके पास ज्यादा संख्या होगी, वही झारखंड का नेतृत्व करेगा। जाहिर है कि कांग्रेस की मंशा बदल गयी है।

    झामुमो इसको लेकर सचेत हो गया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि विपक्ष में झामुमो सबसे बड़ी पार्टी है। अलग राज्य बनने के बाद से झामुमो की ताकत विधानसभा में बढ़ी ही है, जबकि कांग्रेस के सीटों में कमी आयी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि झारखंड में आज भी झामुमो का जनाधार कायम है, भले ही कांग्रेस इसे नहीं समझे। लेकिन यह भी सत्य है कि बिना झामुमो के समर्थन से कांग्रेस भाजपा के विजय रथ को झारखंड में रोक नहीं पायेगी। अलबत्ता देखनेवाली बात यह होगी कि कांग्रेस का 17 जनवरी को रुख क्या होगा।

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