नई दिल्ली: इतिहास बदलने का दावा ठोकने वाली विराट कोहली की अगुआई वाली भारतीय क्रिकेट टीम ने आखिरकार इतिहास को बदलकर दिखा ही दिया। 71 सालों में पहली बार ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज का कारनामा इन्होंने किया। अब हर महफील में टीम इंडिया का जिक्र आम हुआ है। कोई इस टीम के बल्लेबाजों की बातें कर रहा है तो कोई बोलर्स की। फैब फोर के रिटायरमेंट के बाद टीम इंडिया कभी इतनी मजबूत और संतुलित नजर नहीं आई, जितना आज नजर आ रही है।

फिटनेस का जुनून
ऐथलीट की तरह ट्रेनिंग करो, न्यूट्रिनिस्ट की तरह खाओ, बच्चे की तरह नींद लो और चैंपियन की तरह खेलो – यह वो मंत्र है जिसका अनुसरण कर टीम इंडिया आज सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही है। फिटनेस इस टीम की सबसे बड़ी प्राथमिकता है और इस मामले में भी कप्तान विराट कोहली मोर्चे से अगुआई कर रहे हैं। कभी खाने के शौकिन रहे विराट आज दुनिया के सबसे फिट प्लेयर्स में से एक हैं।

वर्कलोड का बैलेंस
‘ट्रेनिंग को गोली मारो’ ऐडिलेड में टीम इंडिया की जीत के बाद कोच रवि शास्त्री के इस बयान ने सुर्खियां बटोरी थीं। आलोचकों ने कहा कि सिर्फ एक टेस्ट जीत टीम इंडिया आत्ममुग्ध हो गई है। उन्हें ट्रेनिंग को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। लेकिन टीम ने आराम को ही तरजीह दी। इसके बाद पर्थ में उसे हार मिली, जिसके बाद आलोचक भड़क गए। कहा गया कि यह ट्रेनिंग को नजरअंदाज करने का नतीजा है।

फैसले लेने का साहस
ऑस्ट्रेलिया टूर पर लगातार दो टेस्ट में भारतीय ओपनर्स फेल रहे और एक ओपनर पृथ्वी साव चोटिल होने के कारण दौरे से ही बाहर हो गए। तीसरे टेस्ट से पहले दुविधा बड़ी थी कि ओपनर्स की समस्या का क्या हल निकाला जाए। ऐसे में दोनों ही ओपनर्स को ड्रॉप कर नई ओपनिंग जोड़ी के साथ मैदान पर उतरने का साहसिक फैसला लिया गया। और इस फैसले के सकारात्मक परिणाम भी आएं, जिसकी उम्मीद शायद आलोचकों को नहीं थी।

बाहरी दुनिया से बेखबर
साधना में लीन किसी साधु की तरह व्यवहार कर इस टीम ने दुनिया भर में अपने बारे में हो रही बातों और आलोचनाओं को दरकिनार किया। और यह उनकी सफलता की सबसे बड़ी कुंजी रही। दौरे के दौरान जाडेजा और ईशांत की मैदान पर हुई छोटी सी बहस को तड़का लगाकर बाजार में पेश किया गया। कहा गया कि टीम में फूट है और खिलाड़ियों की आपस में नहीं बनती।

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