रांची। झारखंड ने 18 साल की अपनी जीवन यात्रा में कई उतार-चढ़ावों का सामना किया है। स्वाभाविक है, इसकी विधानसभा ने भी कई मुकाम हासिल किये हों, कई कीर्तिमान स्थापित किये हों। राज्य की सबसे बड़ी पंचायत ने एक ऐसा कीर्तिमान भी स्थापित किया है, जिसे शायद कोई भी याद करना नहीं चाहेगा। यह कीर्तिमान है कि इस विधानसभा में पिछले ढाई साल या 10 सत्रों से प्रश्नकाल नहीं चला है, यानी जनता का एक भी सवाल न किसी ने पूछा है और न ही किसी को इसका जवाब देने की जरूरत पड़ी है। ऐसा नहीं है कि इन 10 सत्रों में झारखंड विधानसभा ने कोई काम नहीं किया। विधेयक पारित किये, बजट पारित किये गये, विधायी कार्य निबटाये, विधायकों की तनख्वाह बढ़ी, उन्होंने विधानसभा सत्र के मद में मिलने वाले टीए-डीए उठाये, लेकिन जनता से जुड़े सवालों पर कोई चर्चा नहीं हुई, बहस या वाद-विवाद नहीं हुआ।
गुरुवार से शुरू होनेवाला सत्र राज्य की चौथी विधानसभा का 15वां सत्र होगा। इस विधानसभा के अब तक 14 सत्रों में 107 दिन की कार्यवाही हो चुकी है। विधानसभा के एक दिन के सत्र पर सरकारी खजाने से औसतन तीन लाख रुपये का खर्च आता है। इस तरह कुल 3.21 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। इसमें विधायकों का भत्ता और उनके द्वारा किये गये खर्च शामिल नहीं हैं। यदि उसे भी जोड़ दिया जाये, तो यह रकम कितनी होगी, इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है।
इसलिए झारखंड की जनता अपनी ही विधानसभा के प्रति उदासीन होती जा रही है। लोकतंत्र में जनता का भरोसा किसी संवैधानिक संस्था के प्रति टूटना या खत्म होना खतरनाक संकेत माना जाता है। लेकिन हकीकत यही है कि झारखंड के लोगों के साथ-साथ कार्यपालिका भी विधानसभा के प्रति उदासीन होती जा रही है। इसका खामियाजा भी अंतत: आम लोगों को ही भुगतना होगा। वैसे हर सत्र से पहले स्पीकर सत्र को सुचारु रूप से चलाने के लिए सभी दलों की बैठक बुलाते हैं।
बैठक में सत्र के सुचारु संचालन पर सहमति भी बनती है, लेकिन एक बार सदन की कार्यवाही शुरू होते ही उन तमाम फैसलों को ताक पर रख दिया जाता है। कभी सीएनटी-एसपीटी, तो कभी भूमि अधिग्रहण कानून, कभी एससी-एसटी एक्ट, तो कभी जात-पात के मुद्दे सदन में उठाये जाते हैं और फिर हंगामे में डूब कर सदन का सत्र बेकार चला जाता है। सदन का सत्र बेकार जाने से नुकसान न तो माननीयों का होता है और न कार्यपालिका का। माननीयों का उनका पूरा भत्ता मिल जाता है, कार्यपालिका की सुविधाएं बदस्तूर जारी रहती हैं, लेकिन हर बार जनता ठगी जाती है। यही कारण है कि झारखंड विधानसभा में लंबित सरकारी आश्वासनों की संख्या 1731 तक पहुंच गयी है। इसके अलावा शून्यकाल के दौरान उठाये जानेवाले 873 मामले भी लंबित हैं। माननीयों के 352 निवेदन लंबित हैं और 14 ध्यानाकर्षण पर चर्चा होनी है। जाहिर है, ये सभी आम लोगों से जुड़े मसले हैं और इन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी झारखंड की सबसे बड़ी पंचायत की है।
अब सवाल यह है कि झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान क्या होगा। क्या यह सत्र भी पिछले सत्रों की तरह हंगामे की भेंट चढ़ जायेगा। विधानसभा के पिछले बजट सत्र का अनुभव इस मायने में बेहद कड़वा रहा है। सत्र कुल 23 दिनों का बुलाया गया था, लेकिन भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर विपक्ष के हंगामे के कारण केवल नौ दिन बाद ही इसे स्थगित कर दिया गया था। उस सत्र में बजट जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी कोई वाद-विवाद नहीं हुआ था, बल्कि उसे आनन-फानन में पास करा लिया गया था। इस बार के बजट सत्र में पारा शिक्षकों का मुद्दा जोर-शोर से उठने की पूरी संभावना है, क्योंकि राज्य के ग्रामीण इलाकों में स्कूली शिक्षा की रीढ़ माने जानेवाले करीब 67 हजार पारा शिक्षक पिछले दो महीने से हड़ताल पर हैं।
इससे ग्रामीण इलाकों में शिक्षा व्यवस्था लगभग ठप पड़ गयी है। शीतकालीन सत्र में भी यह मुद्दा उठा था, लेकिन वह महज तीन दिन का सत्र था, इसलिए केवल अनुपूरक बजट पारित किया जा सका था। इसके अलावा इस सत्र में कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार के मामले भी उठाये जायेंगे। विपक्ष की कोशिश जहां सरकार को घेरने की होगी, वहीं सत्ता पक्ष इन मुद्दों पर विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करेगा। ऐसी स्थिति में सदन में हंगामा होगा और जनता के सवाल एक बार फिर पीछे रह जायेंगे।
झारखंड विधानसभा का बजट सत्र आज से
रांची। झारखंड विधानसभा का बजट सत्र गुरुवार से शुरू होगा। यह सत्र आठ फरवरी तक चलेगा। इस दौरान सदन की 15 बैठकें होंगी। 2019-20 का राज्य का बजट 22 जनवरी को पेश किया जायेगा। सत्र के पहले दिन 17 जनवरी को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का अभिभाषण होगा। उसी दिन राज्यपाल द्वारा स्वीकृत अध्यादेश की प्रति सदन पटल पर रखी जायेगी।
इसके बाद शोक प्रकाश लाया जायेगा और दिवंगत नेताओं और अन्य लोगों को श्रद्धांजलि देने के बाद कार्यवाही अगले दिन तक के लिए स्थगित हो जायेगी। सत्र के दूसरे दिन 18 जनवरी को राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव और उस पर चर्चा होगी। उसी दिन वित्तीय वर्ष 2018-19 का तृतीय अनुपूरक बजट पेश किया जायेगा। निधारित कार्यक्रम के अनुसार 19 जनवरी को अनुपूरक बजट पर चर्चा होगी और उसे पारित किया जायेगा। 21 जनवरी को मुख्यमंत्री का प्रश्नकाल का समय निर्धारित है। इसी दिन वित्तीय वर्ष 2018-19 के तृतीय अनुपूरक पर सामान्य वाद विवाद, मतदान तत्संबंधी विनियोग विधेयक का उपस्थापन होगा। 22 जनवरी को अगले वित्तीय वर्ष 2019-20 का बजट पेश होगा। सदन की कार्यवाही 23 से 27 जनवरी तक स्थगित रहेगी। बजट पर 28 और 29 जनवरी को चर्चा होगी। 30 जनवरी से एक फरवरी तक अनुदान मांगों पर चर्चा होगी।
चार फरवरी को मुख्यमंत्री प्रश्नकाल तथा वित्तीय वर्ष 2019-20 के आय-व्यय की अनुदान मांगों पर वाद विवाद, सरकार का उत्तर तथा मतदान होगा। पांच, छह और सात फरवरी को विधायी कार्य लिये जायेंगे। सात फरवरी को राजकीय विधेयक कार्य के लिए समय निर्धारित है। सत्र के अंतिम दिन आठ फरवरी को गैर सरकारी संकल्प लिये जायेंगे।