सरयू राय का टिकट कटना और आजसू के साथ गठबंधन न होना पार्टी की हार की प्रमुख वजह बनी
सवाल तब तक सवाल ही रहते हैं, जब तक उनका जवाब नहीं मिल जाता और झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद पार्टी के नेता और कार्यकर्ता, दोनों यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कोल्हान में भाजपा क्यों हारी और क्षेत्र में पार्टी का सूपड़ा क्यों साफ हो गया। जिस कोल्हान ने भाजपा को तीन प्रदेश अध्यक्ष दिये, दो मुख्यमंत्री दिये, वहां से पार्टी का सफाया होना राजनीतिक पंडितों को भी हैरत में डाल रहा है। कोल्हान में जमशेदपुर पूर्वी को भाजपा का सबसे मजबूत किला माना जाता था और पश्चिम में भी भाजपा मजबूत स्थिति में थी। ये दोनों सीटें तो भाजपा हारी ही, समूचे कोल्हान से पार्टी साफ हो गयी। यह उस पार्टी की स्थिति है, जो 65 प्लस सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही थी, पर चुनाव के नतीजों में 25 सीटों पर सिमट गयी। जमशेदपुर पूर्वी सीट, जहां से बीते विधानसभा चुनाव में रघुवर दास 70 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीते थे, वहां इस चुनाव में वह सरयू राय से 15 हजार से अधिक मतों से परास्त हो गये। जमशेदपुर पश्चिमी सीट, जहां से यदि बन्ना गुप्ता के मुकाबले सरयू उतरते, तो इसकी संभावना अधिक थी कि सरयू राय ही जीतते, पर सरयू राय को पार्टी ने टिकट ही नहीं दिया, जिससे उन्हें रघुवर दास के विरोध में उतरना पड़ा और भाजपा अपना सबसे मजबूत किला जमशेदपुर पूर्वी सीट गंवा बैठी।
वहीं बहरागोड़ा सीट पर पार्टी ने कुणाल षाड़ंगी पर भरोसा किया और समीर मोहंती को उनके हक से वंचित किया। इससे पार्टी को नुकसान हुआ। चक्रधरपुर सीट पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ हार गये, जबकि यहां उन्होंने पूरा जोर लगाया था।
गलती पर गलती करती चली गयी भाजपा
भाजपा ने झारखंड में वर्ष 2014 में 37 सीटों पर विजय हासिल करने के बाद यहां आजसू के सहयोग से पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी और उसने पहली गलती यह की कि एक गैर आदिवासी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। यह राज्य की आदिवासी मुख्यमंत्री की परंपरा के खिलाफ गया और आदिवासी समुदाय इससे भाजपा से खफा होने लगा। भाजपा ने सोचा कि झारखंड के राज्यपाल के तौर पर द्रौपदी मुर्मू का होना और विधानसभा अध्यक्ष के रूप में दिनेश उरांव की उपस्थिति से स्थिति संतुलित रहेगी, पर ऐसा नहीं हुआ। यह भी गौर करने की बात है कि जिस समय भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में बनी, उस समय केंद्र में भी भाजपा की सरकार थी और इस जीत ने भाजपा को अति आत्मविश्वास की उस लहर पर सवार कर दिया था, जहां गलतियां होने की संभावना अधिक होती है। भाजपा ने दूसरी गलती सीएनटी और एसपीटी एक्ट में छेड़छाड़ से की। अर्जुन मुंडा और कड़िया मुंडा पहले ही इसे पार्टी के लिए अहितकारी बता चुके थे, पर भाजपा के केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व ने इसे नजरअंदाज किया।
कोल्हान में सूपड़ा साफ होने का मतलब समझे भाजपा
राजनीति में हर हार और जीत के पीछे एक नहीं, कई वजहें होती हैं। उनमें कुछ प्रमुख होती हैं, तो कुछ सेकेंडरी। पर इनके सम्मिलित प्रभाव से किसी नेता या पार्टी की जीत या हार तय होती है। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार ने पार्टी को इसके पीछे के कारणों पर मंथन के लिए विवश कर दिया है। इस मंथन से पार्टी को कई वजहें भी मिली हैं और कई बाद में भी मिलेंगी। झारखंड में और खासकर कोल्हान में भाजपा का सूपड़ा साफ होने की एक नहीं, कई वजहें थीं। कोल्हान में चुनावी मोर्चे पर पार्टी की दुर्गति के कारणों को खंगालती दयानंद राय की रिपोर्ट।
सरयू राय का टिकट कटना और आजसू के साथ गठबंधन न होना पार्टी की हार की प्रमुख वजह बनी
सवाल तब तक सवाल ही रहते हैं, जब तक उनका जवाब नहीं मिल जाता और झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद पार्टी के नेता और कार्यकर्ता, दोनों यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कोल्हान में भाजपा क्यों हारी और क्षेत्र में पार्टी का सूपड़ा क्यों साफ हो गया। जिस कोल्हान ने भाजपा को तीन प्रदेश अध्यक्ष दिये, दो मुख्यमंत्री दिये, वहां से पार्टी का सफाया होना राजनीतिक पंडितों को भी हैरत में डाल रहा है। कोल्हान में जमशेदपुर पूर्वी को भाजपा का सबसे मजबूत किला माना जाता था और पश्चिम में भी भाजपा मजबूत स्थिति में थी। ये दोनों सीटें तो भाजपा हारी ही, समूचे कोल्हान से पार्टी साफ हो गयी। यह उस पार्टी की स्थिति है, जो 65 प्लस सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही थी, पर चुनाव के नतीजों में 25 सीटों पर सिमट गयी। जमशेदपुर पूर्वी सीट, जहां से बीते विधानसभा चुनाव में रघुवर दास 70 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीते थे, वहां इस चुनाव में वह सरयू राय से 15 हजार से अधिक मतों से परास्त हो गये। जमशेदपुर पश्चिमी सीट, जहां से यदि बन्ना गुप्ता के मुकाबले सरयू उतरते, तो इसकी संभावना अधिक थी कि सरयू राय ही जीतते, पर सरयू राय को पार्टी ने टिकट ही नहीं दिया, जिससे उन्हें रघुवर दास के विरोध में उतरना पड़ा और भाजपा अपना सबसे मजबूत किला जमशेदपुर पूर्वी सीट गंवा बैठी।
वहीं बहरागोड़ा सीट पर पार्टी ने कुणाल षाड़ंगी पर भरोसा किया और समीर मोहंती को उनके हक से वंचित किया। इससे पार्टी को नुकसान हुआ। चक्रधरपुर सीट पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ हार गये, जबकि यहां उन्होंने पूरा जोर लगाया था।
गलती पर गलती करती चली गयी भाजपा
भाजपा ने झारखंड में वर्ष 2014 में 37 सीटों पर विजय हासिल करने के बाद यहां आजसू के सहयोग से पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी और उसने पहली गलती यह की कि एक गैर आदिवासी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। यह राज्य की आदिवासी मुख्यमंत्री की परंपरा के खिलाफ गया और आदिवासी समुदाय इससे भाजपा से खफा होने लगा। भाजपा ने सोचा कि झारखंड के राज्यपाल के तौर पर द्रौपदी मुर्मू का होना और विधानसभा अध्यक्ष के रूप में दिनेश उरांव की उपस्थिति से स्थिति संतुलित रहेगी, पर ऐसा नहीं हुआ। यह भी गौर करने की बात है कि जिस समय भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में बनी, उस समय केंद्र में भी भाजपा की सरकार थी और इस जीत ने भाजपा को अति आत्मविश्वास की उस लहर पर सवार कर दिया था, जहां गलतियां होने की संभावना अधिक होती है। भाजपा ने दूसरी गलती सीएनटी और एसपीटी एक्ट में छेड़छाड़ से की। अर्जुन मुंडा और कड़िया मुंडा पहले ही इसे पार्टी के लिए अहितकारी बता चुके थे, पर भाजपा के केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व ने इसे नजरअंदाज किया।
भाजपा ने चुनाव के समय तीसरी गलती तब की, जब उसने अपने 11 सीटिंग विधायकों का टिकट काट दिया। टिकटों के बंटवारे में सारी निर्णयात्मक शक्तियां एक व्यक्ति में केंद्रित होने दी और इससे नुकसान होने की रिपोर्ट मिलने के बाद भी उस पर कान नहीं दिया। चौथी गलती पार्टी ने सरयू राय का टिकट काट कर की। और पांचवीं आजसू के साथ गठबंधन तोड़कर। इन सबका सामूहिक नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा और पार्टी 25 सीटों पर सिमट गयी। हालांकि जमशेदपुर पूर्वी सीट पर हार के पार्टी के अपने तर्क हैं। इस बाबत पार्टी प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि जमशेदपुर पूर्वी सीट पर विकास पर विपक्षी पार्टियों ने रघुवर दास के खिलाफ जो नकारात्मक माहौल बनाया, वह भारी पड़ गया। यहां कांग्रेस के उम्मीदवार गौरव बल्लभ थे, पर असल में सरयू राय हो गये, क्योंकि समूचे विपक्ष ने उनको ही समर्थन दे दिया।
विपक्षी दलों ने जो नकारात्मक माहौल बनाया, उसका एहसास पार्टी को देर से हुआ और समय रहते उसे हम टैकल नहीं कर सके, नतीजा चुनाव में भाजपा हारी। भाजपा की सरकार ने विकास किया, पर नकारात्मक बातें जिस तेजी से फैलती हैं, उस तेजी से विकास की चर्चा नहीं हो सकी, जो पार्टी की हार का कारण बनी।
सरयू राय का टिकट कटना हार की प्रमुख वजह बनी
भाजपा के जमशेदपुर पूर्वी और पश्चिमी सीट गंवाने की कई वजहों में से प्रमुख वजह रही सरयू राय का टिकट कटना। झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि जमशेदपुर पश्चिमी सीट से टिकट कटने पर सरयू राय को पार्टी की नीतियों और सिद्धांतों के विपरीत जमशेदपुर पूर्वी से रघुवर के खिलाफ उतरना पड़ा। वे सिद्धांतों और उसूलों की राजनीति करनेवाले नेता के रूप में पहचाने जाते हैं। उनका टिकट कटने से जनता की सहानुभूति स्वाभाविक रूप से उनके पक्ष में गयी। विपक्ष, खासकर हेमंत सोरेन और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थन से जनता को यह लगा कि सरयू राय के साथ अन्याय हुआ है। और इस अन्याय का दोषी जनता ने रघुवर दास को माना, क्योंकि पार्टी की ड्राइविंग सीट पर वही थे। इससे सरयू राय हीरो बन गये और जमशेदपुर पूर्वी सीट पर रघुवर के खिलाफ बन रहा एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर उनके खिलाफ मजबूत हो गया। अब तक जनता को रघुवर के विरुद्ध कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं मिल रहा था, पर सरयू राय के मैदान में उतरने से जनता को एक मजबूत विपक्षी उम्मीदवार मिला और सरयू की धारा में रघुवर की विधानसभा सीट डूब गयी।
कोल्हान में भाजपा की हार के अन्य कारण भी रहे, जिसमें भाजपा का कोल्हान में अपेक्षाकृत कम फोकस होना भी है। भाजपा ने चुनाव पूर्व अपना सबसे अधिक फोकस संथाल पर किया। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खुद को संथाल में झोंककर रख दिया और इस कवायद में अनायास ही कोल्हान की उपेक्षा हो गयी। हालांकि सरकार ने कोल्हान पर भी समुचित ध्यान दिया। कई योजनाएं वहां से शुरू की गयीं। पांच साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री एक सौ से अधिक बार कोल्हान गये। विकास योजनाएं भी चलायी गयीं। चुनाव के दौरान पार्टी इस गलतफहमी में रही कि यह तो सबसे मजबूत क्षेत्र है, इस पर कम ध्यान देंगे तो भी चलेगा। पर यह सोच पार्टी पर भारी पड़ गयी। केंद्र ने कोल्हान के चाईबासा में मेडिकल कॉलेज की घोषणा तो की, पर यह जमीन पर नहीं उतरी। एमजीएम मेडिकल कॉलेज की बदतर स्थिति और रांची-टाटा रोड के गड्ढों ने पार्टी के लिए कोल्हान में हार का गड्ढा खोदने की परिस्थितियां निर्मित की।
मंदी के कारण आदित्यपुर और जमशेदपुर में सैकड़ों औद्योगिक इकाइयां बंद हो गयीं और बेरोजगारों का आक्रोश पार्टी के प्रति बढ़ा। कोल्हान आदिवासी बहुल इलाका है और यहां जनता के हित में कोई बड़ा फैसला पार्टी नहीं ले सकी।
चापलूसों-सलाहकारों से घिरना महंगा पड़ा
झारखंड विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक नुकसान यदि किसी राजनेता को हुआ, तो वह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास हैं। रघुवर दास ने पार्टी की ड्राइविंग सीट पर बैठकर जो रणनीति बनायी थी, उसमें पार्टी को सफलता मिलनी तय थी, पर चापलूसों-सलाहकारों से घिरने के कारण उनके पास सही फीडबैक नहीं पहुंचा। अपने सलाहकारों की गैर वाजिब सलाह सुनने और मानने के कारण रघुवर वह काम करने लगे, जो प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारियों को करना था।
वह कमोबेश रोज दिन के साढ़े दस बजे से साढ़े छह बजे तक का समय प्रोजेक्ट बिल्डिंग में बिताने लगे। इस स्थिति ने उन्हें जनता से काटकर रख दिया। यहां वही लोग उनसे मिलते, जो उनके सलाहकार तय करते। बाकियों को तो उस फ्लोर पर, जहां मुख्यमंत्री का कमरा है, फटकने भी नहीं दिया जाता था। उनके साथ हर समय सलाहकार रहते, जिससे यदि किसी को कोई बात भी करनी होती, तो वह उनके सलाहकारों को देख कहने की स्थिति में नहीं होता था। इस स्थिति ने उनके पास नेगेटिव फीडबैक और पार्टी तथा उनके विधानसभा क्षेत्र की वास्तविक स्थिति को पहुंचने नहीं दिया। चुनाव के दौरान पार्टी की ड्राइविंग सीट पर होने के कारण उनके पास जिम्मेदारियों का पहाड़ था। इन जिम्मेदारियों का विक्रेंद्रीकरण न होने और मुख्यमंत्री तथा पार्टी के मुखिया के तौर पर दोहरी जिम्मेवारियों का निर्वहन करने के कारण अपने क्षेत्र में मुख्यमंत्री बहुत ध्यान नहीं दे सके। जब वे दो बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने थे, तो उन्होंने पार्टी को विषम परिस्थितियों से उबारा था, पर अब परिस्थितियां उनके नियंत्रण की हद से बाहर हो चुकी थीं। कई जिम्मेवारियां एक साथ निभाने और कड़ी मेहनत से अपने काम को अंजाम देने के कारण उनसे कई ऐसी भूलें हो गयीं, जो वह कभी करना नहीं चाहते होंगे। इन भूलों का भान उनके सलाहकारों को था, पर उन्होंने इसकी ओर उनका ध्यान आकर्षित करने की बजाय सच्चाई छुपायी और अच्छी-अच्छी बातें ही उन्हें बताते रहे। वरीय अधिकारियों ने ऐसी स्थितियां निर्मित कर दीं, जिससे खरी-खरी बात करनेवाले उनके प्रधान सचिव संजय कुमार को साथ छोड़ने पर बाध्य होना पड़ा। उन्हें गलत और सही की पहचान थी, पर उनके नहीं रहने का नुकसान रघुवर दास को हुआ।
रघुवर में नेतृत्व क्षमता और दक्षता, दोनों कूट-कूटकर भरी हुई थी और पांच दफा जमशेदपुर पूर्वी सीट से जीत हासिल कर उन्होंने इसे साबित भी किया था, पर मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके सलाहकारों ने उन्हें सही फीडबैक नहीं दिया। जिम्मेदारियों से घिरे होने के कारण वे इस दिशा में बहुत अधिक सोच नहीं सके और फिर परिस्थितियों और विपक्ष ने ऐसा चक्रव्यूह रचा, जिसने रघुवर के साथ भाजपा के हार की कहानी लिख दी।