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    Home»Jharkhand Top News»केंद्र और झारखंड के बीच बढ़ रही खाई
    Jharkhand Top News

    केंद्र और झारखंड के बीच बढ़ रही खाई

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJanuary 15, 2021No Comments8 Mins Read
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    झारखंड और केंद्र सरकार के बीच धीरे-धीरे टकराव की स्थिति बन रही है। एक ओर जहां केंद्र सरकार डीवीसी के बकाया मद की राशि की कटौती तो कर ले रही है, वहीं केंद्रीय संस्थानों पर झारखंड का जो 74582 करोड़ रुपये बकाया है, उसे चुकाने में केंद्रीय संथान कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे, केंद्र सरकार भी कोई मदद नहीं कर रही। इसे लेकर झारखंड में महागठबंधन बार-बार केंद्र सरकार से सवाल पूछ रहा है। वह सवाल कर रहा है कि कोरोना काल में राज्यों की क्या स्थिति है, यह किसी से छिपी नहीं है। जहां एक ओर बैंक भी इएमआइ की राशि नहीं ले रहे थे, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार झारखंड को झटका पर झटका दिये जा रही है। झारखंड की महागठबंधन सरकार का धैर्य अब इसलिए चुकने लगा है क्योंकि झारखंड सरकार की ओर से केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय और आरबीआइ को पत्र लिख कर जानकारी दी गयी थी कि मंत्रिपरिषद ने त्रिपक्षीय समझौते से बाहर निकलने का फैसला लिया है। वैसे में राज्य सरकार के खाते से डीवीसी की बकाया राशि की दूसरी किस्त नहीं काटी जाये। अभी झारखंड कोरोना के झंझावातों से निकल कर खुद को संभालने में जुटा है। वहीं दूसरी ओर केंद्र के इस कदम से झटका लगना स्वाभाविक है। इस कटौती के बाद किस तरह केंद्र और झारखंड के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो रही है, इस पर प्रकाश डाल रहे हैं आजाद सिपाही के सिटी एडिटर राजीव।

    केंद्र और राज्य के संबंध जब बेहतर होंगे, तभी सशक्त और समृद्धशाली भारत का सपना पूरा हो सकता है। इसके लिए केंद्र के साथ-साथ राज्यों को भी मजबूत बनाना होगा। लेकिन हाल के दिनों में केंद्र और कुछ राज्यो ंके बीच जिस तरह की तनातनी की स्थिति पैदा हुई है, वह संघीय ढांचे के लिए ठीक नहीं है। हाल में केंद्र ने डीवीसी के बकाया मद में झारखंड के खाते से 714 करोड़ रुपये की कटौती कर ली है, जबकि झारखंड सरकार ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय को यह सूचित किया था कि मंत्रिपरिषद ने त्रिपक्षीय समझौते से बाहर निकलने का फैसला लिया है, अत: बकाया मद की राशि की कटौती झारखंड के खाते से नहीं की जाये। इसमें कोई दो राय नहीं कि डीवीसी का बकाया है, लेकिन कोरोना काल में संकट से जूझ रहे झारखंड के लिए इस बकाये की भरपाई कर पाना आसान नहीं है। वह भी तब, जब झारखंड सरकार ने पत्र लिख कर राशि नहीं काटने का आग्रह किया था, ऐसे में राशि काटे जाने से निश्चित तौर पर केंद्र और राज्य के बीच संबंधों में खटास आनी तय है। नियम-कानून अपनी जगह हंै, लेकिन केंद्र को वर्तमान हालात में बड़े भाई की भूमिका में आकर बड़ा दिल दिखाना चाहिए। तीन मेडिकल कॉलेज में नामांकन को लेकर भी यही हुआ। चुनाव से पहले संसाधन विहीन मेडिकल कॉलेज को मान्यता दे दी गयी। इसके बाद ही कोरोना का संकट आ गया। संसाधन नहीं जुट पाये और मेडिकल काउंसिल ने नामांकन पर रोक लगा दी है। 300 मेडिकल छात्रों का भाग्य ब्लॉक हो गया है। इससे धीरे-धीरे अब महागठबध्ांन के कार्यकर्ताओं के दिल में भी आग सुलगने लगी है। उनका तर्क है कि केंद्र के पास तो धन संग्रह के ज्यादा स्रोत हैं, लेकिन राज्य के पास राजस्व के सीमित स्रोत ही हैं। इस बात को भी केंद्र सरकार को ध्यान में रखना होगा। केंद्रीय उपक्रमों पर झारखंड का 74,582 करोड़ का बकाया है। यह राशि भी दिलाने के लिए केंद्र को पहल करनी चाहिए।
    सवाल है कि राज्य की बकाया रकम का भुगतान कौन करेगा, इसका जवाब केंद्र नहीं दे रहा है। बकाये की बात करें, तो राज्य का केंद्र पर सिर्फ जीएसटी मुआवजा के मद में 2982 करोड़ रुपये बकाया हैं। खान विभाग का विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों पर 38,600 करोड़ रुपये बकाया है, जो एक बड़ी राशि है। दूसरी ओर आज तक इसके भुगतान की दिशा में न तो केंद्र सरकार ने कोई कदम उठाया है और न ही उन कंपनियों ने, जिन पर ये बकाया है। वहीं, विभिन्न कोल कंपनियों द्वारा अधिग्रहित की गयी भूमि के लगान के रूप में 33 हजार करोड़ रुपये बकाया है। इसमें पिछले दिनों केवल 250 करोड़ रुपये कोल इंडिया की तरफ से दिये गये थे।
    27 अप्रैल 2017 को राज्य सरकार, केंद्र सरकार और डीवीसी के बीच त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। समझौते के अनुसार यदि वितरण कंपनी बकाये का भुगतान नहीं करती है, तो राज्य सरकार राशि का भुगतान करने के लिए बाध्य होगी। बिल भेजने के 90 दिनों के अंदर यदि बिल का भुगतान नहीं किया जाता है, तो केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार के खाते से सूद समेत राशि की वसूली की जायेगी। यही वह समझौता है, जिसकी वजह से इतनी बड़ी रकम राज्य के खाते से काट ली गयी। इसे विवाद की जड़ माना जा रहा है। केंद्र ने पहली किस्त के रूप में 1417 करोड़ काटे थे, दूसरी किस्त 714 करोड़ रुपये अभी काट लिये और अभी तीन और किस्त बाकी है।
    राज्य सरकार के अनुसार डीवीसी का बकाया 3919 करोड़ रुपये ही है। इस बाबत सितंबर में ही ऊर्जा सचिव अविनाश कुमार ने केंद्रीय ऊर्जा सचिव को पत्र भेजकर कोविड-19 से पैदा हुई परेशानियों के मद्देनजर राहत देने की मांग की थी। साथ ही डीवीसी द्वारा बताये गये 5608 करोड़ रुपये के बकाये पर असहमति जतायी थी। कहा गया था कि डीवीसी और जेबीवीएनएल के बीच विवादित 1152 करोड़ बकाये की राशि को छोड़ दिया जाये, तो डीवीसी का राज्य सरकार पर 3919 करोड़ रुपये बकाया है। झारखंड के ऊर्जा सचिव की ओर से भेजे गये पत्र में कोविड-19 के दौरान केंद्र सरकार के आदेश से उद्योगों को बंद करने की वजह से जेवीबीएनएल के सामने पैदा हुई आर्थिक परेशानियों का हवाला दिया गया था। केंद्र से पुनर्विचार का आग्रह किया गया था।
    झारखंड से ही बेरुखी क्यों
    केंद्र सरकार का बिजली और अन्य मद में तमिलनाडु, तेलंगाना, कश्मीर, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश पर 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है, लेकिन आंध्रप्रदेश को छोड़ कर अन्य राज्यों के खाते से राशि की कटौती नहीं की गयी। झारखंड के साथ हो रही व्यवहार पर अब सवाल उठने लगे हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि निश्चित तौर पर यह राशि काटी जानी चाहिए थी, लेकिन केंद्र सरकार को झारखंड के बकाये की राशि भी दिलाने की पहल करनी चाहिए, तभी झारखंड प्रगति के पथ पर उड़ान भर सकेगा।
    पहले से है 85 हजार करोड़ ऋण का बोझ
    झारखंड पर पहले से ही 85 हजार करोड़ का कर्ज है, जिस पर सालाना केवल सूद के तौर पर 5645 करोड़ रुपये चुकाये जाते हैं। कोविड में राजस्व कम हुआ है, जिस कारण सरकार ने दिसंबर तक बजट का सिर्फ 25 प्रतिशत ही राशि खर्च करने का आदेश दिया है। महालेखाकार के आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच महीने सरकार की कुल आमदनी 19416.24 करोड़ थी, यानी हर माह औसतन आमदनी 3883.24 करोड़ है, जबकि कर्मचारियों के वेतन और पेंशन मद में ही हर माह 1500 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। अब झारखंड के लोग भी सवाल पूछने लगे हैं कि आखिर हमारा हक हमें कब मिलेगा। आखिर केंद्र सरकार बड़े भाई की भूमिका में कब आकर झारखंड को उसका हक देगी।
    टकराव की सुगबुगाहट
    केंद्र सरकार और झारखंड के बीच टकराव की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। केंद्र द्वारा 714 करोड़ की राशि काटे जाने के तुरंत बाद ही राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने मामले को लेकर अदालत की शरण में जाने की धमकी दे डाली है। कहा कि केंद्र ने एकतरफा कार्रवाई की है। झारखंड का केंद्र सरकार की संस्थाओं पर अरबों रुपये बकाया है। उस संदर्भ में कोई सुनवाई नहीं हो रही और डीवीसी के बकाये के लिए केंद्र सरकार कटौती कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार गरीबों का पैसा काट ले रही है। यह पैसा वृद्धा पेंशन का है, गरीबों की मदद के अन्य मद का है, उसे काट कर परेशान किया जा रहा है। कहा कि महाधिवक्ता से राय लेने के बाद जरूरत पड़ने पर हम सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटायेंगे। इधर, गुरुवार को राज्य के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने भी केंद्र से दो-दो हाथ करने की चुनौती दे डाली। कहा कि केंद्र गलत कर रहा है। परंतु अब समय बदल गया है और हम केंद्र से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। हम हर पहलू पर विचार कर रहे हैं। वहीं, भाजपा केंद्र सरकार के इस कदम को सही ठहरा रही है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि जब डीवीसी की बिजली का उपभोग किया है, तो भुगतान तो करना ही होगा। आखिर कब तक मुफ्त की बिजली जलाते रहेंगे। इस पर इतनी हाय तौबा नहीं मचनी चाहिए। इन सब बातों से स्पष्ट है कि मामला यहीं थमनेवाला नहीं है।

    Gap widening between Center and Jharkhand
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