दो दिन पहले राजधानी रांची के किशोरगंज इलाके में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के काफिले पर हुए हमले ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिये हैं। इस घटना को महज कानून-व्यवस्था का मामला नहीं माना जा सकता है, बल्कि यह राज्य के लिए एक खतरनाक संकेत है। झारखंड के 20 साल के इतिहास में किसी भीड़ के अचानक सामने आने और हमला करने की अपनी तरह की यह पहली वारदात है। इस वारदात ने राज्य के खुफिया तंत्र, जिला पुलिस-प्रशासनिक तंत्र की भूमिका पर तो सवाल खड़े किये ही हैं, साथ ही इलाके के अमनपसंद और जिम्मेदार लोगों की भूमिका को भी कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। रांची का किशोरगंज इलाका घनी आबादी वाला है और यहां समाज के सभी वर्गों के लोग रहते हैं। उनके इलाके में इतनी बड़ी भीड़ जमा हो गयी और उसे समझानेवाला कोई नहीं था। इस वारदात का दूसरा खतरा यह है कि इसकी प्रतिक्रिया भी हो सकती है। इसके साथ ही फ्लैश मॉब की मदद से हमला करने की संस्कृति का पता लोगों को चल गया है, जो अब तक दक्षिण के राज्यों में ही होता था। गुरिल्ला तरीके से किसी जनांदोलन का संचालन लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में किसी भी कीमत पर सफल नहीं हो सकता है। किशोरगंज की वारदात का खामियाजा स्थानीय लोगों को ही भुगतना होगा और इसमें निर्दोष भी लपेटे में आयेंगे, यह बात भी याद रखनी होगी। इस वारदात के पीछे की कहानी और इसके परिणामों का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

सोमवार चार जनवरी को राजधानी रांची के किशोरगंज इलाके में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के काफिले के आगे चल रहे पुलिस वाहन पर भीड़ ने अचानक हमला कर दिया और कई वाहनों में तोड़फोड़ की। एक पुलिस अधिकारी हमले में घायल हो गया। इस वारदात ने जहां राज्य के खुफिया तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं, वहीं इसने विरोध प्रदर्शन की आड़ में गुरिल्ला तरीके के आंदोलन का रास्ता भी लोगों को बता दिया है। इस वारदात को महज कानून-व्यवस्था का मामला मान लेना उचित नहीं है, क्योंकि इसके पीछे की साजिश और इसके संभावित परिणाम पूरे समाज के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं।
किशोरगंज में सीएम के काफिले पर जिस भीड़ ने हमला किया, उसमें केवल स्थानीय लोग शामिल नहीं थे। इस बात का खुलासा पुलिस की अब तक की जांच में हो चुका है। इसका सीधा मतलब है कि इस भीड़ में बाहर से आये लोग शामिल हुए और उन्होंने ही लोगों को हमले के लिए उकसाया। इससे साफ पता चलता है कि यह हमला पूर्व नियोजित था और इसकी तैयारी पहले से ही की जा रही थी। साजिश रचनेवालों ने भीड़-भाड़ वाले इलाके को चुना, जबकि सीएम का काफिला प्रोजेक्ट भवन से निकलने के बाद चेक पोस्ट, सैटेलाइट कॉलोनी, डिबडीह, अरगोड़ा और हरमू कॉलोनी से होकर गुजर चुका था, जहां अपेक्षाकृत कम भीड़ रहती है। ओरमांझी की घटना का विरोध उन इलाकों में भी किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। हमले के लिए किशोरगंज इलाके को केवल इसलिए चुना गया, क्योंकि यहां शाम के वक्त भीड़ अधिक होती है और ऐसे में हमलावरों को जत्थों में सड़क के किनारे जमा होने में आसानी हो सकती है।
इस वारदात का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि अब लोगों को किसी पर भी अचानक हमला करने की रणनीति का पता चल गया है। झारखंड में इससे पहले इस तरह का हमला कभी नहीं हुआ था। किसी मुद्दे को लेकर सड़क जाम करने और उसमें वीआइपी के फंसने की घटना पहले भी हुई है, लेकिन किशोरगंज में भीड़ ने जिस हिंसात्मक रुख का प्रदर्शन किया, उससे लगता है कि उसकी मंशा खतरनाक थी। अब यदि इस तरह की घटना दोहरायी जाती है, तो इसका कसूर किशोरगंज पर ही थोपा जायेगा। एक और खतरा यह है कि इस वारदात की प्रतिक्रिया भी हो सकती है और ऐसे में वीआइपी मूवमेंट को निरापद बनाना बड़ी चुनौती साबित होगी।
किशोरगंज की वारदात ने इलाके के अमनपसंद सामाजिक लोगों की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं। हरमू पुल से लेकर रातू रोड तक बिरसा मुंडा राजपथ के दोनों तरफ घनी आबादी है और यहां अनेक सामाजिक कार्यकर्ता रहते हैं। यह माननेवाली बात ही नहीं है कि बिना उनकी जानकारी के उनके इलाके में इतनी बड़ी भीड़ एकत्र हो गयी और उनके हाथों में पोस्टर भी आ गये। किसी भी इलाके में शांति-व्यवस्था बनाये रखने में वहां के अमनपसंद सामाजिक लोगों की बड़ी भूमिका होती है। स्थानीय पुलिस-प्रशासन भी उन पर बहुत हद तक निर्भर रहता है। लेकिन चार जनवरी की घटना ने साबित कर दिया है कि किशोरगंज इलाके के ऐसे लोग अपने घरों में बंद थे और बाहर से आयी भीड़ ने इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे दिया। वारदात के बाद स्वाभाविक रूप से इसकी जांच होगी और इसके लपेटे में निर्दोष लोग भी फंसेंगे, लेकिन हमले के सूत्रधार अपनी साजिश की कामयाबी पर खुश हो रहे होंगे। इलाके के लोगों के सामने पैदा हुई इस मुसीबत की जिम्मेवारी बहुत हद तक इन अमनपसंद लोगों पर ही आयेगी।
इस वारदात ने पुलिस प्रशासन और खुफिया तंत्र के निष्क्रिय होने का प्रमाण भी दे दिया है। बीच राजधानी में इतनी बड़ी भीड़ एकत्र हो जाये और इसकी भनक किसी को नहीं लगे, यह खुफिया तंत्र की विफलता ही कही जा सकती है। इस वारदात ने पुलिस प्रशासन को एक सीख भी दी है कि उसे अपनी कार्य प्रणाली में सुधार के लिए आत्ममंथन करना जरूरी हो गया है। इस तरह की वारदात भविष्य में नहीं हो, इसकी पूरी जिम्मेवारी पुलिस-प्रशासन पर है। उसे समझना होगा कि खुफिया तंत्र और स्पेशल ब्रांच जैसे संगठनों को आम लोगों के साथ घुल-मिल कर रहना होगा, तभी ऐसी वारदातों को प्रभावी तरीके से रोका जा सकता है।
किशोरगंज की वारदात ने पूरे राज्य पर कलंक का जो टीका लगाया है, उसे मिटाना इतना आसान नहीं होगा। किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी मांग को उठाना पूरी तरह संवैधानिक होता है, लेकिन यदि इसकी आड़ में किसी वीआइपी काफिले पर हमला किया जाये और वाहनों में तोड़फोड़ की जाये, तो इसे कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

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