दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा के दूसरे सबसे बड़े नेता अमित शाह का झारखंड दौरा संपन्न हो गया। राजनीतिक हलकों में इसे भाजपा के ‘मिशन 2024’ और ‘चार सौ प्लस’ अभियान का आगाज बताया जा रहा है, लेकिन कई मायनों में अमित शाह की यह यात्रा जहां उन कारणों की जमीनी हकीकत समझना था, जिनके कारण भाजपा 2019 में पहले सिंहभूम संसदीय सीट और बाद में कोल्हान की सभी विधानसभा सीटें हार गयी थी, वहीं कोल्हान की जनता की आवाज के अनुरूप पार्टी को काम करने का मंत्र देने के लिए थी। अमित शाह इन दोनों मकसदों में न केवल कामयाब रहे, बल्कि उनकी यात्रा ने झारखंड भाजपा को सफलता का वह मंत्र बता दिया, जो वह 2019 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भूलने लगी थी। राज्य में आदिवासियों के लिए सुरक्षित विधानसभा की 28 में से महज दो सीटें जीत पाने का दर्द जितना प्रदेश भाजपा को साल रहा था, उससे कहीं इसकी पीड़ा अमित शाह जैसे ‘चुनावी चाणक्य’ महसूस कर रहे थे। इस यात्रा ने उन्हें जनता की आवाज सुनने का मौका दिया और उन्होंने इसका खूब लाभ उठाया। अमित शाह के इस दौरे के परिप्रेक्ष्य में भाजपा की चुनावी संभावनाओं को टटोल रहे हैं पिछले दो दिनों से चाइबासा में कैंप कर रहे आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
सारंडा के जंगलों से होते हुए, घाटी में गहरी खूबसूरत, मगर भयावह खाइयों को निहारते और साइकिल पर कटी हुई लकड़ी अपनी आजीविका के लिए ले जाते लोगों को देखते हुए जब मैं छह जनवरी को चाइबासा पहुंचा, तो वहां का नजारा कुछ अलग ही था। पूरा शहर विजय संकल्प महारैली के पोस्टर से पटा था। मुझे टाटा कॉलेज ग्राउंड जाना था, क्योंकि वहीं पर सात तारीख की सुबह 11 बजे अमित शाह की महारैली होनी थी। सोचा एक दिन पहले ही पहुंचा जाये। चाइबासा पहुंचते ही मैंने गूगल मैप आॅन किया, लेकिन गूगल भी दिशाहीन होने लगा। लेकिन सड़कों पर लगे नेताओं के पोस्टर दिशाहीन नहीं हो रहे थे। मैंने गूगल छोड़ नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा, बाबूलाल मरांडी, दीपक प्रकाश के लगे पोस्टरों का सहारा लिया। वे बिल्कुल सही दिशा में ले जाकर मुझे लोकेशन पर छोड़ आये। सभास्थल पहुंचते ही देखा कि पुलिस फोर्स रिहर्सल कर रही थी। उनके सीनियर उन्हें दिशा-निर्देश दे रहे थे। मंच बनाया जा रहा था। होर्डिंग-पोस्टर लग रहे थे। गेंदा फूल की माला तैयार हो रही थी। मैंने थोड़ी देर तक वहां पर उपस्थित भाजपा नेताओं से बात की। सुबह होनेवाले कार्यक्रम के बारे में डिटेल लिया। रैली में जाने के लिए अपना पास लिया और चल दिया।
जैसे-जैसे शाम ढल रही थी, अंधेरा होना शुरू हुआ, साथ ही ठंड भी बढ़ने लगी। मन हुआ चाय पी लूं। नेता जी चौक पर रुका। दुकानदार चाय बना रहा था। इसी बीच मन हुआ कि पूछ ही लूं कि अमित शाह आ रहे हैं। क्या उनके आने से कोई फर्क पड़ेगा। उसने कहा, भैया क्यों नहीं फर्क पड़ेगा। मैंने पूछा, क्या फर्क पड़ेगा। उसने कहा, अमित शाह ही वह व्यक्ति हैं, जो यहां नेताओं को टाइट कर सकते हैं। मैंने जानना चाहा कि टाइट करने का उसका मतलब क्या है। चाय वाला बोला, सर देखिये ऐसा है यहां पर कि भाजपा में गुटबाजी बहुत है। इसी गुटबाजी के कारण यहां भाजपा विधानसभा का चुनाव हार गयी। उसे कोल्हान की सभी विधानसभा सीटों से हाथ धोना पड़ा। लोकसभा चुनाव भी इसीलिए हारी। मैं बस चायवाले की राजनीतिक समझ को देख कर दंग था।
खैर मैंने चाय पी और वहां से चला गया। ठंड लग रही थी। तबीयत भी ठीक नहीं थी। सुबह उठना था, क्योंकि चाइबासा की जनता की राजनीतिक समझ ने मुझे चौंका दिया था। मुझे और लोगों से बात करनी थी। सुबह जब उठा, तो नाश्ता करने मैं पोस्ट आॅफिस चौक गया। वहां पर एक ठेलावाला कचौड़ी छान रहा था। बहुत लजीज कचौड़ी और सब्जी थी। कचौड़ी खाते मैंने पूछ लिया कि आज अमित शाह आ रहे हैं। तभी मेरे पीछे खड़े एक व्यक्ति ने कहा, शेर आ रहा है। मैं घूमा, उस व्यक्ति को देखा और पूछा, आपने अमित शाह को शेर क्यों कहा। उस व्यक्ति ने कहा, मुझे वह शेर लगते हैं। अब इससे ज्यादा मुझसे मत पूछिए। मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं। मैं आगे बढ़ा। पेट भी भर गया था। एक और दुकान में गया। यहां मैं यह नहीं बताना चाहता कि वह दुकान किस चीज की थी। वहां लिमिटेड ही दुकान रहती है, सो कुछ लोग अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाह रहे थे। उस दुकान वाले से भी मैंने यही पूछा, अमित शाह आये हैं, क्या कहेंगे। उसने कहा, क्या कहूं। कुछ नहीं होगा। हलके गुस्से में उस दुकानदार ने कहा कि मैं खुद भाजपा का वोटर हूं, लेकिन भाजपा आयेगी नहीं। फिर मैंने सवाल किया, आप भाजपा के वोटर हैं, फिर भी आप ऐसा कह रहे हैं। उसने कहा, सर पहली बात तो अमित शाह बार-बार यहां आने वाले नहीं। उन्हें यह भी पता नहीं लगेगा कि यहां के नेताओं में आपस में ही नहीं बनती। सब एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं। कोई बड़ा नेता यहां आता नहीं। गलती से आ भी गया, तो कब भागे, इसी जुगाड़ में रहता है। ऐसा लगता है कि क्षेत्र उसे काट रहा हो। जब तक भाजपा नेताओं की गुटबाजी खत्म नहीं होगी, कुछ नहीं होनेवाला। अमित शाह जी को भी यह समझ लेना चाहिए। वह तो राजनीतिक चाणक्य हैं, फिर भी उनसे चूक क्यों हो गयी। मैं वहां से निकला। एक ज्योतिष से मुलाकात हो गयी। उन्होंने कहा कि कोल्हान में भाजपा का नक्षत्र खराब था। इसलिए 2019 में हार गयी। मैंने पूछा, अब कैसा है, मतलब 2024 में कैसा रहेगा। उन्होंने कहा, शानदार। वहां से भी मैं आगे बढ़ा। एक मारवाड़ी दुकानदार से मुलाकात हुई। वह भी भाजपा का ही वोटर था। उसने कहा, सर भाजपा का जनाधार यहां बहुत है, लेकिन नेता लोग एक्टिव ही नहीं हैं। जो एक्टिव रहता है, उसकी टांग खींच ली जाती है। उस दुकानदार ने गीता कोड़ा की खूब तारीफ की। उसने कहा, कोड़ा दंपति यहां पूरा एक्टिव हैं। वे अच्छा काम कर रहे हैं। क्षेत्र आते रहते हैं और हाल-चाल भी लेते रहते हैं। फिर उसने पूछा, सर क्या गीता कोड़ा भाजपा में जानेवाली हैं। मैंने कहा, इसकी मुझे जानकारी नहीं। मैंने कहा, आपने कहां से सुनी। उस व्यक्ति ने कहा, सर यहां तो इसकी चर्चा जोरों पर है। चर्चा तो यह भी है कि मधु कोड़ा भी भाजपा में जानेवाले हैं। मैंने कहा, इसकी भी मुझे जानकारी नहीं। ऐसे मैं एक पत्रकार हूं। धुआं कहां से उठा है, किसने उठाया है, उसकी जानकारी है भी, लेकिन कयासों पर बात करना सही नहीं।
खैर, 10 बजे मैं सभास्थल पहुंच गया, जहां अमित शाह का भाषण होना था। अमित शाह का आगमन हुआ। सभागार भीड़ से खचाखच भर गया। चाइबासा में इतनी भीड़ की उम्मीद नहीं थी। अमित शाह हेमंत सरकार पर खूब गरजे। उन्होंने भ्रष्टाचार से लेकर आदिवासी महिलाओं पर अत्याचार, बलात्कार और उनकी निर्मम हत्याओं पर हेमंत सरकार को घेरा। उन्होंने घुसपैठियों पर भी सवाल उठाया। कैसे घुसपैठिये आदिवासी महिलाओं की जमीन हथिया रहे हैं, उस पर भी कहा। कैसे केंद्र सरकार द्वारा जारी फंड में राज्य सरकार गड़बड़ी कर रही है, उस पर भी बोले।
उन्होंने हेमंत सोरेन को चेताया भी कि राज्य की जनता, खासकर आदिवासी समझ चुके हैं कि मौजूदा झारखंड सरकार उनके हित में काम नहीं कर रही है। आने वाले दिनों में जनता हेमंत सोरेन को सबक जरूर सिखायेगी। अमित शाह का आना 2024 का चुनावी बिगुल था। भाजपा 2019 में कोल्हान की सभी विधानसभा सीटें हार गयी थी। अमित शाह कोल्हान फतह करना चाहते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा झारखंड में जिन दो सीटों पर हारी थी, उनमें से चाइबासा भी एक थी। दूसरी सीट राजमहल थी।
अमित शाह एक रणनीति के तहत झारखंड आये थे। उन्होंने अपने विश्वसनीय लोगों को इस काम पर लगा भी दिया है। वह मैदान में कूद भी चुके हैं। अमित शाह को पूरी सूचना है कि कोल्हान में हुआ क्या था। किस नेता ने किसकी टांग खींची और जिसकी क्या भूमिका रही, यह भी वह जान गये हैं। अमित शाह ने भाजपा के शीर्ष नेताओं को टास्क भी दे दिया है। झारखंड में किस नेता को क्या करना है, कहां करना है, कितना करना है, यह भी निर्देश दिया गया है। कुल मिला कर अमित शाह ने झारखंड में चुनावी बिगुल फूंक दिया है। 2024 आते-आते भाजपा उन सभी सीटों को टच कर लेगी, जो उसने 2019 के लोकसभा और विधानसभा में लूज किया था। खैर ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कोल्हान के शहरी इलाके में भाजपा मजबूत है और ग्रामीण में कांग्रेस और झामुमो। भाजपा अगर अपनी खेमेबाजी पर कंट्रोल कर ले और सभी नेता मिल कर काम करें, तो पार्टी के लिए कोल्हान की राह आसान हो जायेगी। अमित शाह के दौरे का लब्बो-लुआब यही है।