झारखंड भाजपा में नयी ऊर्जा का होगा संचार : चाइबासा दौरे से होगा 2024 के अभियान का आगाज
केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के दूसरे सबसे बड़े नेता अमित शाह झारखंड में हैं। वह आखिरी बार फरवरी, 2019 में रांची आये थे। इस बार उनकी झारखंड यात्रा भाजपा की उस दूरगामी रणनीति का हिस्सा है, जिसकी मदद से वह 2024 में ‘चार सौ प्लस’ का लक्ष्य हासिल करना चाहती है। अमित शाह कोल्हान का मुख्यालय कहे जानेवाले चाइबासा की धरती से भाजपा के इस अभियान का आगाज करेंगे। यह वही चाइबासा है, जिसने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त दी थी और यह वही कोल्हान है, जहां से 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि अमित शाह ने अखिर कोल्हान को ही अपने अभियान की शुरूआत के लिए क्यों चुना है। दरअसल इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि भाजपा अपने अभियान के पहले चरण में उन सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जहां 2019 में उसे हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा के ‘मिशन 2024’ का यह प्रमुख हिस्सा है। उस साल चाइबासा के अलावा राजमहल सीट भी भाजपा के खाते में नहीं आयी थी। इन दोनों आदिवासी बहुल सीटों पर अमित शाह के दौरे का सकारात्मक असर पड़ेगा। इसके अलावा उनकी यात्रा से झारखंड भाजपा में नयी ऊर्जा का संचार होगा और वह अधिक दम-खम के साथ मैदान में उतर सकेगी। चाइबासा में आयोजित होनेवाली विजय संकल्प रैली के माध्यम से अमित शाह झारखंड में भाजपा की ताकत का भी आकलन करेंगे। इसलिए उनकी यात्रा का बड़ा सियासी मतलब है। अमित शाह की झारखंड यात्रा के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डाल रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा के दूसरे सबसे बड़े नेता और देश के अब तक के सबसे लोकप्रिय गृह मंत्री अमित शाह झारखंड की धरती पर पधार चुके हैं। इतनी बड़ी राजनीतिक शख्सियत की यात्रा पर राजनीति न हो, यह असंभव है। लेकिन इसके साथ ही इस यात्रा के उद्देश्यों और उसके संभावित असर का आकलन भी जरूरी है। अमित शाह की झारखंड यात्रा के उद्देश्यों को यदि एक वाक्य में कहा जाये, तो कहा जा सकता है कि यह भाजपा के ‘मिशन 2024’ और ‘चार सौ प्लस’ अभियान का आगाज होगा।
मिशन 2024 का हिस्सा है चाइबासा दौरा
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अमित शाह का चाइबासा दौरा भाजपा के मिशन 2024 का हिस्सा है। भाजपा ने देश भर के वैसे चुनाव क्षेत्रों की सूची तैयार की है, जहां पार्टी को 2019 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इनमें से कुछ सीटें वैसी हैं, जहां पार्टी को करीबी अंतर से हार मिली थी या पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी। बता दें कि 2024 में जहां एक ओर लोकसभा चुनाव होना है, तो वहीं झारखंड विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद गठबंधन से हार मिली थी। इतना ही नहीं, कोल्हान प्रमंडल की एक भी सीट भाजपा नहीं जीत सकी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास पूर्वी जमशेदपुर से चुनाव हार गये थे। भाजपा को चाइबासा लोकसभा सीट पर भी करारी हार का सामना करना पड़ा था। पश्चिमी सिंहभूम में विधानसभा की कुल पांच सीटें हैं और सभी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इनमें सरायकेला, चाइबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर और चक्रधरपुर शामिल हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां परखेंगे शाह
अमित शाह का चाइबासा दौरा मुख्य रूप से 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर हो रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को झारखंड की 14 में से 11 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी, जबकि गिरिडीह सीट पर उसकी सहयोगी आजसू पार्टी ने जीत हासिल की थी। भाजपा को राजमहल और चाइबासा सीटों पर हार मिली थी। तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा चाइबासा में कांग्रेस पार्टी की गीता कोड़ा से हार गये थे। राजमहल में भाजपा के हेमलाल मुर्मू को झारखंड मुक्ति मोर्चा के विजय हांसदा ने हराया था। भाजपा का लक्ष्य 2024 के लोकसभा चुनाव में झारखंड की सभी 14 सीटों पर जीत दर्ज करना है।
कार्यकर्ताओं मेें उत्साह फूंकेंगे
अमित शाह 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर चाइबासा में कार्यकर्ताओं में उत्साह फूंकेंगे। चाइबासा लोकसभा कोर कमिटी के सदस्यों के साथ वह अहम बैठक करने वाले हैं, जिसमें कई महत्वपूर्ण निर्देश दिये जायेंगे। इस कमिटी में पार्टी के तमाम स्थानीय नेता भी शामिल हैं। यह कमिटी यहां निरंतर जनता का मूड भांपेगी। अमित शाह चाइबासा स्थित टाटा कॉलेज के मैदान में नेताओं-कार्यकर्ताओं को संबोधित करेेंगे। इसे विजय संकल्प रैली का नाम दिया गया है।
चाइबासा में ही क्यों हो रही शाह की पहली सभा
दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा चाइबासा सीट हार गयी थी। कांग्रेस की गीता कोड़ा ने यह सीट जीती थी। भाजपा ने इस बार हारी हुई सीटों पर ज्यादा फोकस करने की रणनीति बनायी है। इसी क्रम में अमित शाह की सभा सबसे पहले चाइबासा में हो रही है। उसके बाद संथाल परगना के राजमहल में ऐसी ही सभा करने की तैयारी है। भाजपा इस बार हारी हुई सीटों को जीत में बदलने के लिए पूरी कोशिश कर रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 का प्रदर्शन दोहराने में तो भाजपा सफल रही, लेकिन उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 51 फीसदी था। उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में यह 34 प्रतिशत हो गया और झामुमो को सरकार बनाने का मौका मिल गया। उसकी सीटें बढ़ीं। झामुमो के नेतृत्व में बने महागठबंधन के घटक दलों की सीटों में भी इजाफा हुआ।
भाजपा की नजर किन वोटरों पर टिकी है
झारखंड की कुल आबादी में 61.95 प्रतिशत लोगों की आधिकारिक भाषा हिंदी है। इसके अलावा मगही, मैथिली, अंगिका, भोजपुरी और बांग्ला बोलने वालों की तादाद भी खासी है। अपने कार्यकाल में अब तक झामुमो की अगुवाई वाली महागठबंधन की सरकार ने हिंदी, मगही, मैथिली, अंगिका, भोजपुरी बोलने वालों को तीसरी और चौथी श्रेणी की स्थानीय स्तर की नियुक्तियों में शामिल होने से वंचित कर दिया था। हालांकि अब इसे हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया है। इसे लेकर झारखंड की बड़ी आबादी में उबाल है। भाजपा इस असंतोष को इस बार भुनाने का प्रयास करेगी। दूसरा कारण है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी का 67.8 फीसदी हिस्सा हिंदू धर्म को मानता है। 14.5 फीसदी मुस्लिम है। 4.3 फीसदी आबादी इसाई धर्म को मानती है। आमतौर पर हिंदू वोट भाजपा के लिए मुफीद साबित होते हैं। यही वजह रही है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए 12 सीटों पर जीतना आसान रहा। इस बार भाजपा की कोशिश है कि हारी हुई सीटें भी उसके पाले में आयें, इसलिए वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
इन तमाम कारणों से अमित शाह का झारखंड दौरा भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण होनेवाला है। इस यात्रा के बाद जाहिर है कि पार्टी की प्रदेश इकाई में नयी ऊर्जा का संचार होगा और वह अधिक दम-खम के साथ मैदान में उतरेगी।