– एकता के महाकुंभ में भाषा, जाति और मान्यताएं हुईं एकाकार -भारतीय संस्कृति समझने और अनुभव करने उमड़े दुनिया भर के श्रद्धालु – आस्था के संगम में लगाई डुबकी, जन्म-जन्मांतर के बंधन से मुक्ति की कामना
महाकुंभनगर। आस्था और श्रद्धा का अनूठा संगम। फिर भी न कोई हड़बड़ी न आगे बढ़ने की होड़। सभी के मुंह पर ‘हर-हर गंगे’ के जयकारे। हरेक की मंजिल है संगम। भोर के धुंधलका के साथ ही रंग-बिरंगे परिधान में लिपटी महिलाओं, पुरुषों और बच्चों का सैलाब। आस्था के इस महाकुंभ में श्रद्धा भी है, विश्वास भी है, मन में मां गंगा, मां यमुना और माता सरस्वती के पावन संगम में डुबकी लगाकर जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्ति की कामना भी है। सूर्योदय से पहले ही श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। संगमनगरी प्रयागराज में महाकुम्भनगर की ओर आने वाली हर सड़क, हर गली पर सिर्फ और सिर्फ आस्थावान श्रद्धालुओं का शुभागमन हो रहा है। लोग आते जा रहे हैं, पवित्र स्नान करते जा रहे हैं।
आस्था, श्रद्धा और विश्वास के संगम में रविवार को लाखों श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा है। स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने विधिपूर्वक पूजा-अर्चना कर अपने परिवार और समाज की समृद्धि के लिए प्रार्थना की। कई संतों और महात्माओं ने भी संगम में डुबकी लगाकर विश्व शांति और मानव कल्याण का संदेश दिया।
महाकुम्भ इस बार न केवल भारतीय श्रद्धालुओं के लिए,बल्कि विदेशी पर्यटकों और भक्तों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण बन गया है। विभिन्न देशों से आए श्रद्धालु भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और गंगा के महत्व को समझने और अनुभव करने के लिए उमड़ पड़े हैं। महाकुम्भ न केवल भारतीय परंपराओं का प्रतीक है, बल्कि विश्व एकता और आध्यात्मिकता का संगम भी है, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचा है।
महाकुम्भ हजारों वर्ष पहले से चली आ रही हमारे देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक यात्रा का पुण्य और जीवंत प्रतीक है। एक ऐसा आयोजन जहां हर बार धर्म, ज्ञान, भक्ति और कला का दिव्य समागम होता है। हमारे यहां कहा गया है-दश तीर्थ सहस्राणि, तिस्रः कोट्यस्तथा अपराः। सम आगच्छन्ति माघ्यां तु, प्रयागे भरतर्षभ॥ अर्थात् संगम में स्नान से करोड़ों तीर्थ के बराबर पुण्य मिल जाता है। जो व्यक्ति प्रयाग में स्नान करता है वो हर पाप से मुक्त हो जाता है। राजा-महाराजाओं का दौर हो या फिर सैकड़ों वर्षों की गुलामी का कालखंड आस्था का ये प्रवाह कभी नहीं रुका। इसकी एक बड़ी वजह ये रही है कि कुम्भ का कारक कोई वाह्य शक्ति नहीं है। किसी बाहरी व्यवस्था के बजाय कुम्भ, मनुष्य के अंतर्मन की चेतना का नाम है। ये चेतना स्वत: जागृत होती है। यही चेतना भारत के कोने-कोने से लोगों को संगम के तट तक खींच लाती है। गांव, कस्बों, शहरों से लोग प्रयागराज की ओर निकल पड़े हैं। सामूहिकता की ऐसी शक्ति, ऐसा समागम शायद ही कहीं और देखने को मिले। यहां आकर संत-महंत, ऋषि-मुनि, ज्ञानी-विद्वान, सामान्य मानवी सब एक हो जाते हैं, सब एक साथ त्रिवेणी में डुबकी लगा रहे हैं। यहां जातियों का भेद खत्म हो जाता है, संप्रदायों का टकराव मिट जाता है। करोड़ों लोग एक ध्येय, एक विचार से जुड़ जाते हैं। इस बार भी महाकुम्भ के दौरान यहां अलग-अलग राज्यों से करोड़ों लोग जुटे हुए हैं। उनकी भाषा अलग है, जातियां अलग है, मान्यताएं अलग है, लेकिन संगम नगरी में आकर वो सब एक हो गए और इसलिए महाकुम्भ एकता का महायज्ञ है। इसमें हर तरह के भेदभाव की आहुति दे दी जाती है। यहां संगम में डुबकी लगाने वाला हर भारतीय एक भारत-श्रेष्ठ भारत की अद्भुत तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है।
आस्था, सेवा और एकता का प्रतीक
महाकुम्भ न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सेवा और समर्पण का भी आदर्श प्रस्तुत करता है। लाखों लोग इस आयोजन में बिना किसी स्वार्थ के सेवा में जुटे हुए हैं जो यह संदेश दे रहा है कि आस्था,विश्वास और एकता की शक्ति कितनी विशाल हो सकती है।
श्रद्धालुओं के अनुभव
देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु इस अलौकिक अनुभव को जीवन का सौभाग्य मानते हैं। राजस्थान से आए एक श्रद्धालु ने कहा कि महाकुम्भ में स्नान कर आत्मिक शांति की अनुभूति हो रही है। यह अनुभव अनमोल है। महाकुम्भ का यह आयोजन भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा का अद्भुत उदाहरण है, जहां न केवल देश बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु अपनी आस्था प्रकट करने आते हैं।
सुरक्षा और व्यवस्था चाक-चौबंद
महाकुम्भ के दौरान प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं। घाटों पर पुलिस और एनडीआरएफ की टीमें तैनात हैं। स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हुए कचरा प्रबंधन और स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था की गई है।