भीड़ को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी लेनी होगी प्रशासन को, कठोर कदम भी जरूरी
धर्मगुरुओं ने दिखाया सनातन क्या है, पहले लोगों की सुरक्षा, फिर शाही स्नान
अपने परिवार वालों की सुरक्षा की जिम्मेदारी, सरकार या प्रशासन के साथ-साथ खुद की
अमृत कलश की बूंदों का अमृत पान सिर्फ संगम में नहीं, आस-पास के घाटों पर भी वही पुण्य
प्रयागराज के महाकुंभ में जाइये, लेकिन समझदारी और संयम का परिचय भी दीजिए
मंगलवार को अचानक मौनी अमावस्या शुरू होने से पहले, मेरे मन में एक सवाल उठा था। चूंकि प्रयागराज में लगे महाकुंभ मेला में मौनी अमावस्या के दिन माना जा रहा था कि करीब 10 करोड़ लोग अमृत स्नान करने पहुंचेंगे, मन के किसी कोने में सवाल यह उठा कि इस दिन जो भारी भीड़ प्रयागराज पहुंचेगी, उत्तरप्रदेश की सरकार और प्रशासन इसे कैसे मैनेज करेगा। पता नहीं ऐसा आभास क्यों हुआ कि इस विशेष दिन कोई अनहोनी न हो जाये, क्योंकि मौनी अमावस्या शुरू होने से पहले तक महाकुंभ मेला को योगी सरकार और उत्तरप्रदेश प्रशासन ने जिस तरह नियंत्रित किया था, वह मन को सुकून दे रहा था। लेकिन मन के किसी कोने में यह आशंका भी उठ रही थी कि कहीं योगी की इस व्यवस्था पर किसी की नजर न लग जाये। मन डरा भी हुआ हुआ था। महाकुंभ सनातन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। करोड़ों लोगों की आस्था महाकुंभ से जुड़ी है। लेकिन बुधवार ब्रह्म मुहूर्त से पहले, रात पौने दो बजे के आसपास संगम तट पर एक स्थान विशेष पर भगदड़ मच गयी। इस भगदड़ में कई लोग मौत के मुंह में समा गये, तो कई गंभीर रूप से घायल होकर जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। मेरा मन पहले से ही विचलित हुआ पड़ा था। सिक्स्थ सेंस वाली कोई बात होगी। जैसे ही मैं सुबह उठा और मोबाइल फोन देखा, तो पाया कि कुंभ मेला में भगदड़ मच गयी है। मैं अचानक बेड पर उठ बैठा। उस वक्त तक खबरों में बताया जा रहा था कि करीब 10 लोगों के मरने की आशंका है और कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। प्रयागराज में महाकुंभ के अवसर पर मंगलवार की रात मौनी अमावस्या पर स्नान के लिए एक अनुमान के मुताबिक लगभग चार करोड़ श्रद्धालुओं की भीड़ जुट गयी थी। रात करीब पौने दो बजे संगम तट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ ने पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ दी और फिर देखते ही देखते भगदड़ मच गयी। कुछ ही मिनटों में स्थिति इतनी बेकाबू हो गयी कि लोग जमीन पर इधर उधर असहाय होकर चीखने-चिल्लाने लगे। श्रद्धालुओं के सामान जिधर-तिधर बिखर गये, जिससे अव्यवस्था और फैल गयी। लोग एक दूसरे को रौंदते चले गये। मेरे कुछ रिश्तेदार भी इस दौरान प्रयागराज गये हुए थे स्नान करने। मैंने अचानक उन्हें फोन लगाया, उन्होंने फोन नहीं उठाया, लेकिन थोड़ी देर बाद पता चला कि वे सुरक्षित हैं। भारी भीड़ देख उन्होंने कोई पास के घाट पर स्नान कर लिया था। वे काफी बुजुर्ग हैं। उन्हें लगा कि भीड़ में जाने से उनके साथ कोई अनहोनी न हो जाये। वीडियो में मैंने देखा कि लगातार एंबुलेंस घायलों को लेकर चिकित्सालय जा रही थी। इस दौरान योगी सरकार का ग्रीन कॉरिडोर काम आया। तुरंत प्रशासन भी एक्टिव हो गया। कुछ घंटों के भीतर स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया। इलाज करने के साथ ही राहत और बचाव कार्य तेजी से बढ़ाया गया। भोर तक सभी अधिकारी स्थिति को पूरी तरह से नियंत्रित करने के लिए प्रयासरत रहे। कुछ ही घंटों में स्थिति को काफी नियंत्रित कर लिया गया। अधिकारियों ने अपील की कि सभी श्रद्धालु शांति बनाये रखें। प्रशासन ने श्रद्धालुओं से अपील की कि स्नान जल्दी करें। स्नान के बाद जल्दी घाट खाली कर दें, ताकि भीड़ इकट्ठा न होने पाये, ताकि दूसरे श्रद्धालुओं को स्नान करने का मौका मिले। वहां पहुंचे लोगों की स्थिति यह थी कि नहा कर लोग बालू पर लेट जा रहे थे। कपड़े फैला रहे थे। नहाने के तुरंत बाद वे अपने गंतव्य पर जाने के बजाय, वहीं डेरा डाल रहे थे। फिर भीड़ तो बढ़नी तय थी।
जान को जोखिम में मत डालिये, नहाने के लिए इंतजार कीजिए
लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि मेला में आयी भीड़ को संभालने की जिम्मेदारी किसकी है। सरकार की, प्रशासन की। या फिर महामुंभ में जानेवालों की भी कोई जिम्मेदारी होनी चाहिए। अगर मेला में अनियंत्रित भीड़ है, और लगातार आये जा रही है, लोगों को पहले से पता है कि मौनी अमावस्या के दिन भारी भीड़ होगी। प्रयागराज पहुंचे लोगों को दिख भी रहा है कि सामने भारी भीड़ है, बीच-बीच में भीड़ अनियंत्रित हो रही है, तो क्या उस भीड़ का हिस्सा बनना समझदारी है। जब लगातार प्रशासन के लोग, बार-बार अनुरोध कर रहे हैं कि बैरिकेडिंग मत तोड़िये, इससे कोई फायदा नहीं होनेवाला, तो यह बात लोगों को समझ में क्यों नहीं आयी। लोगों को पता है कि मौनी अमावस्या के दिन करोड़ों लोग प्रयागराज पहुंचने वाले हैं, तो क्या लोगों की अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं। जो लोग महाकुंभ नहाने और पुण्य का भागी बनने आ रहे हैं, क्या उनकी अपने परिवार के प्रति, बच्चे-बुजुर्गों के प्रति कोई जवाबदेही है या नहीं। उनकी सुरक्षा की पहली प्राथमिकता किसकी है। खुद परिवार के लोगों की। पुण्य का भागी बनने के लिए क्या परिवार के लोगों की बलि देना सही है। भीड़ है, रुक जाइये, मत जाइये। जान को जोखिम में मत डालिये। सबसे पहले खुद पर भरोसा करिये, फिर किसी सरकार या प्रशासन पर। मेरा भी एक दो साल का बेटा है। मुझे भी प्रयागराज महाकुंभ में जाना है, तो क्या मैं सिर्फ सरकार और प्रशासन के भरोसे कुंभ में चला जाऊं, जहां मुझे पता है कि करोड़ों लोगों की भीड़ आने वाली है और वहां पहले से करोड़ों उपस्थित हैं। मैं अगर खुद की सुरक्षा के प्रति जागरूक नहीं रहूंगा, तो कैसे कोई मेरी सहायता कर पायेगा। ईश्वर ने मानव जीवन क्यों दिया है। इसलिए दिया है कि वह किसी भी प्राणी से बेहतर सोच सकता है। मनुष्य सिर्फ अपनी नहीं दूसरे प्राणियों की सुरक्षा के बारे में भी सोचने की क्षमता रखता है, अगर चाहे तो।
भीड़ अगर बैरिकेडिंग नहीं तोड़ती, तो हादसा नहीं होता
भगदड़ मचने से पहले जिस प्रकार से लोगों द्वारा बैरिकेडिंग तोड़ संगम पहुंचने की होड़ मची हुई थी, क्या उन्हें तनिक भी खयाल नहीं आया कि उनके साथ बच्चे भी हैं, बुजुर्ग भी हैं। जीवन मिला ही है पुण्य करने के लिए, क्या सिर्फ संगम में डुबकी लगा लेने से पुण्य की प्राप्ति हो जायेगी। आप पुण्य के भागी तभी बनेंगे, जब जीवित रहेंगे। जीवन रहेगा आप अपने कर्मों से पुण्य कमाते रहेंगे। ऐसे थोड़े है कि मौनी अमावस्या के दिन त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने से ही पुण्य की प्राप्ति होगी, आप महाकुंभ के आसपास के घाटों में अगर डुबकी लगा लेंगे, तब भी आपको वही लाभ हासिल होगा, जो संगम में डुबकी लगाने से होगा। क्योंकि पानी को अविरल बह रहा है। मान्यता है कि प्रयागराज में समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश की कुछ बूंदें गिरी थीं। बूंदें हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में भी गिरी थीं। लेकिन महाकुंभ प्रयागराज में ही होता है। लेकिन जब हरिद्वार में कुंभ मेला का आयोजन होता है, या नासिक में होता है या उज्जैन में होता है, तो क्या वहां लोग नदियों के संगम स्थल पर जाकर स्नान करते हैं, या वहां मौजूद जो पवित्र नदी है, वहां जाकर वे स्नान करते हैं और पुण्य के भागी बनते हैं। नासिक-त्र्यंबकेश्वर में गोदावरी नदी के तट पर, हरिद्वार में गंगा के तट पर और उज्जैन में क्षिप्रा के तट पर कुंभ मेला का आयोजन होता है। लोग वहां मौजूद नदी के तट पर स्नान करते हैं। प्रयाग में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर महाकुंभ का आयोजन होता है। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या कुंभ के दौरान प्रयागराज में गंगा नदी के तट पर या यमुना नदी के तट पर स्नान करने से कम पुण्य की प्राप्ति होगी। नहीं, ऐसा कतई नहीं है। कहते हैं कि मन चंगा तो कठौती में गंगा, प्रयाग में तो संपूर्ण निर्मल गंगा की धारा बहती है। कहीं भी स्नान कीजिये और महाकुंभ का लाभ लीजिये। खुद भी सुरक्षित रहिये, परिवार को भी सुरक्षित रखिये।
पीएम मोदी ने सीएम योगी से फोन पर की बात
प्रधानमंत्री मोदी ने महाकुंभ मेले की स्थिति के बारे में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से फोन पर बात की। पूरे मामले की समीक्षा की और तत्काल सहायता उपाय करने को कहा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी सीएम योगी से फोन पर बात की। उन्होंने भी घटना की जानकारी ली।
अफवाह पर ध्यान न दें: योगी
सुबह घटना की सूचना मिलने के बाद से ही सीएम योगी लगातार अधिकारियों से अपडेट लेते रहे। मुख्यमंत्री योगी ने अपील की कि श्रद्धालुगण मां गंगा के जिस भी घाट के समीप हैं, वहीं स्नान करें, संगम नोज की ओर जाने का प्रयास न करें। स्नानार्थियों के लिए कई घाट बनाये गये हैं, जहां सुविधाजनक रूप से स्नान किया जा सकता है। उन्होंने सभी से मेला प्रशासन के निर्देशों का पालन करने की अपील की। सीएम योगी ने सभी से अपील की है कि वे किसी भी प्रकार की अफवाहों पर ध्यान न दें। प्रशासन के निर्देश का अनुपालन करें। व्यवस्था बनाने में सहयोग करें। सीएम योगी ने तत्काल सभी अखाड़ों से बात कर तुरंत स्नान नहीं करने के लिए मनाया। इसके बाद एनएसजी कमांडो और ट्रेनी आइपीएस ने मोर्चा संभाला। चेन बना कर भीड़ को बाहर निकाला। बैरिकेडिंग के जरिये भीड़ को नियंत्रित किया। तीन घंटे के भीतर सभी के सहयोग से स्थिति पर पूरी तरह नियंत्रण पाया गया। भय और असमंजस के इस माहौल में साधु, संन्यासी, भक्त, पुलिस, प्रशासन ने मिल कर सामना किया और एक-दूसरे का सहारा बने।
भगदड़ के बाद एनएसजी कमांडो ने मोर्चा संभाला
रात के करीब दो बजे भगदड़ मची। इसके तुरंत बाद संगम तट पर एनएसजी कमांडो ने मोर्चा संभाल लिया। संगम नोज इलाके में आम लोगों की एंट्री बंद कर दी गयी। भीड़ और न बढ़े, इसलिए प्रयागराज शहर में भी श्रद्धालुओं के आने पर रोक लगा दी गयी। इसके लिए शहर की सीमा से सटे जिलों में प्रशासन को मुस्तैद कर दिया गया। भीड़ को नियंत्रित करने और कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए घटनास्थल पर अतिरिक्त पुलिस बल और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया।
पुलिस ने बैरिकेडिंग शुरू कर दी
भीड़ को नियंत्रित करने और एक जगह जमा होने से रोकने के लिए बैरिकेडिंग की गयी। सभी घाटों तक पहुंचने वालों लोगों की आवाजाही को सीमित कर दिया गया। केवल आवश्यक सेवाओं वालों को ही अनुमति दी गयी। इससे भीड़ ठहर सी गयी। हालात सामान्य होने पर बैरिकेडिंग को हटाया गया, इसके बाद आवाजाही शुरू हो सकी।
हेलिकॉप्टर से अधिकारी निरीक्षण करने लगे
लोगों को शांत रहने, भगदड़ न मचाने और प्रशासन का सहयोग करने के लिए लाउडस्पीकर के जरिये अनाउंस किया गया। आपात स्थिति में लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए अतिरिक्त निकास मार्ग खोले गये। इनमें कई पांटून ब्रिज का इस्तेमाल किया गया। 16 नंबर पीपापुल को बंद कर दिया गया। हेलिकॉप्टर से अधिकारी निरीक्षण करने लगे। भगदड़ के बाद महाकुंभ की सुरक्षा और बढ़ा दी गयी।
पुलिस ने हाथ पकड़ कर चेन बनाई
क्राउड को नियंत्रित करने के लिए ह्यूमन चेन टेक्नीक का प्रयोग कर भीड़ की दिशा बदली गयी। ग्राउंड पर भीड़ नियंत्रित करने के लिए ट्रेनी आइपीएस की टीम उतारी गयी। इससे स्नान व्यवस्था सुचारू हो गयी है। महाकुंभ में भगदड़ मचने के बाद पुलिसकर्मियों द्वारा अनाउंस करके भीड़ को रास्ता बताया गया। इससे श्रद्धालुओं को स्नान में आसानी हुई।
हॉस्पिटल में डॉक्टर्स और नर्सों की संख्या बढ़ायी गयी
घायलों को तत्काल चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए अतिरिक्त चिकित्सा शिविर स्थापित किये गये। एंबुलेंस सेवाओं को बढ़ा दिया गया। मौके पर 50 एंबुलेंस लगायी गयी। हॉस्पिटल में अतिरिक्त डॉक्टर्स और नर्सों को लगाया गया। इससे हॉस्पिटल में स्थिति नियंत्रित रही। संगम नोज पर जहां भगदड़ मची, उसके सबसे नजदीक सेक्टर-4 का संगम चिकित्सालय है। डॉक्टरों की टीम अलर्ट थी।
प्रयागराज जाने वाले श्रद्धालुओं को रोका गया
सरकार की ओर से सभी जिलों के डीएम को निर्देश दिया गया कि श्रद्धालुओं को प्रयागराज जाने से अभी रोकें। इससे भगदड़ के हालात को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी। इसके बाद स्पेशल ट्रेनें जहां थीं, वहीं रोक दी गयीं। बसों की आवाजाही भी बंद कर दी गयी। प्रयागराज जाने से जहां-जहां श्रद्धालुओं को रोका गया। वहां पर श्रद्धालुओं को खाने-पीने की समुचित व्यवस्था करायी गयी। प्रशासन ने श्रद्धालुओं को सब्जियां, राशन का सामान, बर्तन और चूल्हा तक उपलब्ध कराया।
संतों के लिए श्रद्धालुओं की सुरक्षा सर्वोपरि
भगदड़ में हुए हादसे को लेकर सभी 13 अखाड़ों के संतों, जगद्गुरु, महामंडलेश्वरों और आचार्यों ने निर्णय लिया कि वे गाजे-बाजे के साथ अमृत स्नान नहीं करेंगे। अमृत स्नान को स्थगित किया जाये। स्नान बसंत पंचमी को होगा। यह लोगों को सुरक्षा और उनके प्रति संवेदना को ध्यान में रख कर संतों ने निर्णय लिया। यही सनातन है। संतों को लगा कि यही करना श्रेयष्कर होगा। लेकिन जैसे सूर्य प्रकट हुए, स्थितियां सामान्य हुईं, लाखों लोगों ने आस्था की डुबकी लगानी शुरू की, तब संतों ने निर्णय लिया कि ठीक वैसा ही स्नान होगा, जैसे होते आया है। उसके बाद अमृत स्नान की शुरूआत करीब 10 घंटे के बाद हुई। सभी 13 अखाड़ों के साधु-संत, संन्यासी और महामंडलेश्वर स्नान करने संगम नोज पर पहुंचे। मौनी अमावस्या स्नान पर्व के मौके पर तीनों शंकराचार्यों ने पवित्र त्रिवेणी में श्रद्धा की डुबकी लगायी। अमृत स्नान के दौरान साधु, संतों पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की गयी।
सनातन की आस्था अपराजेय
महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन पर शाम तक स्नान का कुल आंकड़ा नौ करोड़ तक पहुंच गया। इसमें पिछले 16 दिनों की 20 करोड़ की संख्या को जोड़ा जाये तो यह डाटा 29 करोड़ तक पहुंच गया है। कुंभ मेला में भगदड़ के बावजूद मौनी अमावस्या पर नौ करोड़ लोगों के स्नान ने अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। यह कुंभ मेले के इतिहास में किसी भी एक दिन श्रद्धालुओं के स्नान की सबसे बड़ी संख्या है। इससे पहले मकर संक्रांति को 3.5 करोड़ और मौनी अमावस्या के एक दिन पहले 28 जनवरी को 5 करोड़ लोगों ने संगम स्नान किया था।
1954 के कुंभ में मारे गये थे पांच सौ लोग
अगर कुंभ की बात की जाये, तो साल 1954 में प्रयागराज (उस समय के इलाहाबाद) में सबसे बड़ा हादसा हुआ था। 14 फरवरी 1954 को कुंभ के दौरान भगदड़ मचने से पांच सौ लोगों की मौत हो गयी थी। दूसरी बड़ी घटना भी इलाहाबाद कुंभ की है। साल 2013 में ट्रेन का इंतजार करते हुए श्रद्धालुओं की इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 35 लोगों की मौत हो गयी थी। इस भगदड़ की वजह यह थी कि एक ट्रेन का प्लेटफॉर्म ऐन समय पर बदल दिया गया था, जिसकी वजह से यात्रियों में पैनिक हो गया और वे किसी भी हालत में ट्रेन पकड़ने के लिए भागमभाग करने लगे, जिसकी वजह से भगदड़ मच गयी।