“देश की दिग्गज आईटी कंपनी इन्फोसिस के बड़े अधिकारियों में मतभेद उभरकर सामने आ रहे हैं। संस्‍थापकों और प्रबंधकों के बीच खीचतान उभरकर सामने आ गई है। कुछ दिनों पहले संस्‍थापक नारायणमूर्ति ने कहा था कि वह इस तरह की कार्यप्रणाली से दुखी हैं। इसके बाद भी अब तक स्थिति में सुधार नहीं आया है।”

ताजा घटनाक्रम के तहत कंपनी में फाउंडर्स और मैनेजमेंट के बीच चल रही खींचतान में फर्म के तीसरे सबसे बड़े इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टर ओप्पेनहेमर फंड्स ने अब सीईओ विशाल सिक्का का समर्थन किया है। कंपनी में 2.7

पर्सेंट शेयर रखने वाले इस फंड ने कंपनी एन. नारायणमूर्ति और अन्य संस्थापकों को सलाह दी है कि उन्हें जान लेना चाहिए कि इन्फोसिस पब्लिकली लिस्टेड कंपनी है और अब वह उनकी निजी कंपनी नहीं रही है। यह पहला मौका है

जब कंपनी के किसी इंस्टिट्यूशनल शेयरहोल्डर ने प्रफेशनल सीईओ का समर्थन किया है। टाटा ग्रुप में रतन टाटा और पूर्व सीईओ साइरस मिस्त्री के बीच खींचतान के बाद इन्फोसिस पहली ऐसी दिग्गज कंपनी है

जिसमें विवाद की स्थिति पैदा हुई है। ओप्पेनहेमर ने कहा कि गैर-फाउंडर सीईओ के तौर पर विशाल सिक्का ने अपने कार्यकाल में कई अहम लक्ष्य हासिल किए हैं। कई वर्षों तक आंतरिक अस्थिरता और प्रतिस्पर्धी माहौल में कमजोर प्रदर्शन के बाद विशाल सिक्का ने स्थिरता लाने का काम किया है और इंडस्ट्री में उथल-पुथल के माहौल के बीच उन्होंने लॉन्ग टर्म स्ट्रेटजी तैयार की है।

इन्फोसिस के पूर्व चीफ फाइनैंशल ऑफिसर टीवी मोहनदास पाई ने कंपनी के फाउंडर नारायणमूर्ति पर निशाना साधते हुए कहा कि वह सोचते हैं कि सिर्फ संस्थापकों में से ही किसी को लीडरशिप में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि नारायणमूर्ति की इसी सोच के चलते कई लोगों को कंपनी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।

2000 से 2011 तक पाई कंपनी के बोर्ड मेंबर भी रहे थे।

इंफोसिस के इस संकट के बीच सबसे पहले विशाल सिक्‍का के पैकेज को जिम्‍मेदार माना जा रहा है। पिछले वर्ष इन्‍हे करीब 76 करोड़ का पैकेज दिया गया है। इसके अलावा सीएफओ का का पैकेज भी संस्‍थापकों की नजर में है। स्‍वतंत्र निदेशक पुनीता कुमार की भूमिका, दो पॉवर सेंटर्स और संस्‍थापकों की अलग राय और सोच को भी जिम्‍मेदार माना जा रहा है।

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