झारखंड से राज्यसभा की दो सीटों के लिए चुनाव 26 मार्च को कराये जायेंगे। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा किये जाने के साथ ही राजनीतिक दलों में सुगबुगाहट तेज होने लगी है। झारखंड विधानसभा की वर्तमान स्थिति को देखते हुए एक बात साफ हो गयी है कि राज्यसभा का यह चुनाव बेहद दिलचस्प होनेवाला है। जो दो सीटें खाली हो रही हैं, उनमें से एक राजद के पास है और दूसरा निर्दलीय के पास। झारखंड से राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए प्रथम वरीयता के 27 मतों की जरूरत होगी। इस दृष्टिकोण से इस चुनाव में सत्ताधारी महागठबंधन एक सीट तो जीत सकता है, लेकिन दूसरी सीट जीतने के लिए उसे बहुत पापड़ बेलने होंगे। दूसरी तरफ विपक्षी भाजपा भी एक सीट जीतने की कोशिश करेगी, लेकिन यह उसके लिए बहुत आसान नहीं होगा। इस तरह राज्यसभा का यह चुनाव दोनों पक्षों के रणनीतिक कौशल की अग्नि परीक्षा लेगा। राज्यसभा चुनाव के रोमांचक मुकाबले की तस्वीर उकेरती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
झारखंड में राज्यसभा का चुनाव हमेशा से रोमांचक रहा है। पिछले 20 साल में इस प्रदेश में राज्यसभा के जितने भी चुनाव हुए, उनमें से शायद ही किसी में रोमांच की कमी रही हो। कभी पैसे के लेन-देन और हॉर्स ट्रेडिंग को लेकर, तो कभी उम्मीदवारों के नाम को लेकर राज्यसभा का चुनाव चर्चा में रहा। लेकिन इस बार 26 मार्च को दो सीटों के लिए होनेवाला चुनाव इन सभी से अलग होनेवाला है। चूंकि राज्यसभा चुनाव में विधायक मतदाता होते हैं, इसलिए विधानसभा की दलगत स्थिति इस चुनाव को और भी चर्चित बना देती है।
झारखंड से राज्यसभा के दो सांसद, निर्दलीय परिमल नथवाणी और राजद के प्रेमचंद्र गुप्ता नौ अप्रैल को रिटायर हो रहे हैं। इन दो सीटों पर 26 मार्च को चुनाव कराये जाने की घोषणा चुनाव आयोग ने की है। इस घोषणा के साथ ही राज्य में सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस और राजद के गठबंधन और विपक्षी भाजपा के खेमे में सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। झारखंड की वर्तमान विधानसभा की दलगत स्थिति ऐसी है कि सत्ता पक्ष जहां दोनों सीटें जीतने के प्रति आश्वस्त नहीं हो सकता है, वहीं भाजपा अपने बल पर एक सीट जीतने की स्थिति में नहीं है।
कुल 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में अभी 80 सदस्य हैं। दुमका सीट खाली है। पांचवीं विधानसभा की दलगत स्थिति पर नजर डालें, तो सत्ताधारी गठबंधन के पास 46 सीटें हैं। इसमें झामुमो के पास 29, कांग्रेस के पास 16 और राजद के पास एक सीट है। इस गठबंधन को झाविमो के दो विधायकों के अलावा एनसीपी के कमलेश सिंह और माले के विनोद सिंह का भी समर्थन है। उधर विपक्ष में बाबूलाल मरांडी को लेकर भाजपा के पास 26 सीटें हैं। इसके अलावा आजसू के दो विधायकों और निर्दलीय अमित यादव और सरयू राय का रुख अब तक साफ नहीं है। ऐसी स्थिति में जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को प्रथम वरीयता के 27 वोट चाहिए।
भाजपा को एक सीट जीतने की चुनौती
यदि सामान्य दलगत स्थिति को ध्यान में रखा जाये, तो यह साफ है कि भाजपा एक सीट पर जीतने के प्रति आश्वस्त हो सकती है, क्योंकि उसे बाबूलाल मरांडी और आजसू के दो वोट जरूर मिल जायेंगे। लेकिन मामला इतना आसान नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष ने बाबूलाल मरांडी को अब तक भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता नहीं दी है। जब तक उन्हें यह मान्यता नहीं मिलेगी, वह झाविमो के ही विधायक माने जायेंगे। चूंकि स्पीकर ने झाविमो विधायक दल के नेता के रूप में प्रदीप यादव को मान्यता दे रखी है, इसलिए राज्यसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी के सामने प्रदीप यादव द्वारा जारी ह्विप को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। यदि वह ह्विप को नहीं मानेंगे, तो उनकी सदस्यता ही खतरे में पड़ जायेगी। ऐसे में भाजपा के पास अपना 25 वोट ही रह जायेगा और आजसू के दो वोट पर उसकी जीत निर्भर करेगी। लेकिन दूसरा पेंच यहीं होगा। भाजपा के एक विधायक को किसी तरह वोट देने से रोकने की कोशिश होगी, जैसा कि पिछली बार चमरा लिंडा और बिट्टू सिंह के साथ सत्ता पक्ष ने किया था। यदि भाजपा के किसी एक विधायक को, संभवत: वह ढुल्लू महतो होंगे, रोक दिया गया, तो जीतने के लिए 26 वोट की जरूरत होगी और उस स्थिति में भाजपा का जीतना बेहद मुश्किल हो जायेगा। ऐसे में उसे पूरी तरह आजसू पर निर्भर होना पड़ेगा।
सत्ता पक्ष के सामने दूसरी सीट जीतने की चुनौती
राज्यसभा चुनाव में सत्ता पक्ष के सामने एक सीट जीतने की कोई चुनौती नहीं है, लेकिन दूसरी सीट पर कब्जा जमाने के लिए उसे कई तरह की गोटियां फिट करनी होंगी। सबसे पहले तो उसे अपने सभी वोट को एकजुट रखना होगा। इसके बाद सरयू राय, अमित यादव और माले के विनोद सिंह का वोट हासिल करना होगा।
यदि वह ऐसा करने में सफल हो गया, तो उसके पास 53 वोट हो जायेंगे। आखिरी वोट के लिए वह आजसू से संपर्क कर सकता है। उस स्थिति में आसान उसके लिए यह होगा कि भाजपा के दो वोटरों को वह वोट देने से रोक दे। उस स्थिति में सत्ताधारी गठबंधन को 52 वोट मिल जायेंगे और दोनों सीटें उसके खाते में आ जायेंगी।
कुल मिला कर झारखंड का राज्यसभा चुनाव एक बार फिर से रोचक होनेवाला है। इस चुनाव में सारा खेल केवल एक वोट को लेकर होनेवाला है और जो इस एक वोट को अपने पक्ष में करेगा, जीत उसी की होगी। ऐसी परिस्थिति में सभी लोगों की निगाहें विधानसभाध्यक्ष की तरफ लगी हैं। बाबूलाल मरांडी को लेकर उनका निर्णय बहुत कुछ साफ कर देगा। वह कहते हैं: वही होगा, जो नियमसम्मत होगा। अभी से हम क्या कहें!