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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»बच्चों से पूछिए, ब्रदर्स अकादमी क्या है, जहां बच्चों के सपनों को लगते हैं पंख
    स्पेशल रिपोर्ट

    बच्चों से पूछिए, ब्रदर्स अकादमी क्या है, जहां बच्चों के सपनों को लगते हैं पंख

    adminBy adminFebruary 23, 2023Updated:February 25, 2023No Comments11 Mins Read
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    विशेष
    -कभी खुद ही क्लास में झाड़ू-पोछा लगा बच्चों को पढ़ाया करते थे ब्रदर्स अकादमी के फाउंडर
    -आज हर साल एक सौ से अधिक आइआइटियन दे रहा है संस्थान
    -दो कमरों और चार सौ बच्चों से शुरू हुआ सफर आज दो शाखाओं में ढाई हजार बच्चों तक आ पहुंचा है

    प्रतिभाओं को तराशने और हमारी भावी पीढ़ी के हौसलों को उड़ान देने में केवल संगठित शिक्षण संस्थानों, यानी स्कूल-कॉलेजों का ही हाथ नहीं होता है, बल्कि आज गला काटू प्रतिस्पर्द्धा के दौर में कोचिंग संस्थान अहम भूमिका निभाते हैं। केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में कोचिंग एक ऐसे उद्योग का रूप ले चुका है, जो लगातार आगे बढ़ रहा है और इनके कारण युवा प्रतिभाएं अपने सपने को पूरा कर रही हैं। झारखंड में भी ऐसे कोचिंग संस्थान हैं, जिन्होंने देश-विदेश में अपना परचम लहराया है, क्योंकि उन्होंने बच्चों की कोचिंग के स्थापित तरीकों में तकनीक और आधुनिक शैली का शानदार समन्वय कर उसे उत्कृष्ट बनाया है। रांची में एक ऐसा ही कोचिंग संस्थान है ब्रदर्स अकादमी, जहां से हर साल एक सौ से अधिक बच्चे आइआइटी जैसे संस्थान में प्रवेश पाते हैं। इतना ही नहीं, देश का शायद ही कोई ऐसा इंजीनियरिंग या मेडिकल संस्थान हो, जहां कोई न कोई बच्चा ब्रदर्स अकादमी में नहीं पढ़ा हो। इसी ब्रदर्स अकादमी की खासियतों को रेखांकित करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की खास रिपोर्ट।

    ज्ञान की तिजोरी में ज्ञान रत्न भरना, शुभेंदु का यह सपना बचपन से ही अंगड़ाई लेने लगा था। अपने छात्र जीवन से ही वह इस ज्ञान रत्न को सिर्फ अपने दिमाग के पिटारे में ही नहीं रखना चाहते थे। वह इस खजाने को समाज में भरपूर बांटने के लिए भी आतुर थे। बिहार की राजधानी पटना में जन्मे शुभेंदु शेखर को साल 1989 में रांची की माटी ने बुलावा भेजा। ज्ञान का भंडार अर्जित करने के मकसद से वह रांची आ भी गये और रांची विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की। पढ़ने के दौरान वह कुछ छात्रों को भी पढ़ाते थे, जिससे उनका जेब खर्च निकल जाता। यहीं से पढ़ाने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह कब जु नून बन गया, यह शुभेंदु को भी इल्म न हो पाया। उनके पढ़ाने के इस जुनून ने उन्हें आइआइटी की तैयारी कर रहे बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय बना दिया। 1999 से वह फुल टाइम बच्चों को आइआइटी की तैयारी करवाने में जुट गये। उनका तैयार किया हुआ हर बच्चा सफलता की सीढ़ियां चढ़ने लगा। रांची जैसे छोटे शहर में यह चर्चा आग की तरह फैल गयी कि शुभेंदु नाम का कोई शिक्षक भी है।
    आजाद सिपाही की टीम जब ब्रदर्स अकादमी पहुंची, तो वहां का वातावरण बहुत ही स्वच्छ और पॉजिटिव पाया। वहां के स्टाफ बहुत ही सलीके से पेश आने के साथ-साथ ऊर्जा से भरे नजर आये। वॉल आॅफ फेम से अकादमी की दीवारें सजीं थीं। सजेंगी भी क्यों नहीं, ब्रदर्स अकादमी की उपलब्धियां भी काफी बड़ी हैं। हम जब शुभेंदु शेखर से मिले, तो देखा कि एक नौजवान अपने काम में बहुत ही मशगूल था। बातचीत का दौर जब शुरू हुआ, तब लगा कि एक व्यक्ति में किताबी ज्ञान के साथ-साथ, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और विभिन्न विषयों पर भी पकड़ प्रगाढ़ थी। ऊर्जावान, कॉनफिडेंट और इंटेलीजेंट को अगर एक वाक्य में निचोड़ें तो शुभेंदु सर का नाम लेने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रस्तुत है ब्रदर्स अकादमी के संस्थापक सदस्यों में से एक शुभेंदु शेखर से हुई बातचीत के अंश।
    सवाल: ब्रदर्स अकादमी की स्थापना कब हुई, क्यों हुई और इसके पीछे की कहानी क्या है?
    शुभेंदु शेखर शुरू के दिनों में मैथ्स पढ़ाया करते थे। उनकी कोचिंग इंस्टीट्यूट का नाम हुआ करता था शेखर्स मैथमेटिक्स। उसके बाद 2007 में उन्होंने रांची फिट्जी को ज्वाइन किया, जहां उन्होंने 2009 तक पढ़ाया। उसी दौरान फिट्जी में शुभेंदु को प्रेम प्रसून और पारस अग्रवाल के रूप में दो शिक्षक रूपी भाई मिल गये। फिर दिन आया 14 दिसंबर 2011 का, जब इन तीन लोगों ने मतलब इन तीन शिक्षक रूपी भाइयों ने रांची के बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया और वहीं से शुरूआत हुई ब्रदर्स अकादमी की। शुभेंदु जब दिल्ली में थे, तब वह फिट्जी की आॅल इंडिया टेस्ट सीरिज मैथमेटिक्स के नेशनल हेड भी रहे थे। दो कमरों से शुरू हुआ ब्रदर्स अकादमी नामक संस्थान। शुरू में ये तीन ब्रदर्स खुद ही क्लास रूम की साफ-सफाई और झाड़ू-पोछा तक लगाते थे। फ्रंट डेस्क संभालने से लेकर रूटीन सेट करने तक का काम भी खुद ही किया करते थे। फिर आते थे वे अपने रियल सुपर टीचर के अवतार में, जहां वे अपने ज्ञान के खजाने को बच्चों में बांटने का भरपूर प्रयास करते।
    यात्रा तो तीन ब्रदर्स से शुरू हुई, लेकिन आज ब्रदर्स अकादमी में कुल 40 फैकल्टी मेंबर्स को मिला कर 65 -70 लोगों की टीम है। शुरू के दिनों में ब्रदर्स अकादमी में करीब चार सौ बच्चे थे। शुभेंदु बताते हैं कि बच्चों के मामले में वह काफी भाग्यशाली रहे। चूंकि फिट्जी में शुभेंदु, प्रेम और पारस तीनों काफी लोकप्रिय शिक्षक थे, तो ज्यादातर बच्चों की चाहत इन तीन ब्रदर्स के यहां पढ़ने की ज्यादा रही। ब्रदर्स अकादमी ने भी अपने बच्चों के लगाव को सिर-आंखों पर रखा और उनसे कोई भी फीस नहीं ली। उनका मानना था कि बच्चे कोर्स फीस पहले ही फिट्जी को दे चुके थे, तो फिर से उसी कोर्स के लिए दोबारा फीस कैसे दे पायेंगे। ब्रदर्स अकादमी खोलने के पीछे शुभेंदु का मानना था कि बच्चों को क्या चाहिए, वह उनसे जुड़ा व्यक्ति ही समझ सकता है।
    शुभेंदु कहते हैं, हर शहर का एक अपना स्वभाव होता है। दिल्ली का अपना स्वभाव है और रांची का अपना। लोकल लेवल पर बच्चों के स्वभाव को समझना और उस स्वभाव में पले-बढ़े बच्चों की मनोस्थिति को समझना भी एक समझ है, जो ब्रदर्स अकादमी ने समझा। निर्णय लेने के लिए शिक्षक को दूर बैठे दिल्ली में किसी की अनुमति का इंतजार नहीं करना पड़े और बच्चों के लिए क्या मुनासिब है, वह फैसला आॅन दि स्पॉट हो सके, यही कार्यशैली ब्रदर्स अकादमी ने शुरू के दिनों से रखी। इससे फायदा यह हुआ कि एक तो समय की बचत हुई और दूसरा बच्चों को करीब से समझने और उनकी मनोस्थिति को समझने में आसानी हुई। ब्रदर्स अकादमी के पीछे की सोच यह भी थी कि बच्चों और शिक्षकों में बड़े भाई और छोटे भाई जैसा रिश्ता हो। छोटा भाई बड़े भाई से हर सवाल आसानी से कर सकता है। वही सवाल छोटा भाई अपने पिता से करने में थोड़ा हिचकेगा। बड़े भाई और छोटे भाई में बहुत ज्यादा जेनरेशन गैप नहीं होता, तो बड़े को छोटे को समझने में बहुत परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। वह कदम से कदम मिला कर चल सकता है। ब्रदर्स अकादमी में विद्यार्थियों और शिक्षकों का रिश्ता भाईचारे का ही है।
    सवाल: क्रिएटिंग जॉय इन नॉलेज, यह टैग लाइन कहां से अपने निकली और आप इसे ब्रदर्स अकादमी में कितना इंप्लीमेंट करते हैं ?
    इस सवाल के जवाब में शुभेंदु कहते हैं, सफलता अर्जित करने के लिए बच्चों को पहले यह पता होना चाहिए कि उनका लक्ष्य क्या है। उनका लक्ष्य उनके लिए कितना मायने रखता है। अगर वे उस लक्ष्य को प्राप्त भी कर ले, तो जीवन में उसकी क्या उपलब्धि होगी। शुभेंदु अपने छात्रों को अक्सर कहा करते हैं कि अगर तुमने अपने निर्धारित लक्ष्य को पा लिया है, तो उस पर विचार करना भी जरूरी है कि उस लक्ष्य के हासिल होने से तुम्हारे में क्या बदलाव आया, क्या सुकून मिला और क्या तुमने हासिल कर लिया है। इस कल्पना को जितने गाढ़े मन से मंथन करोगे, तो वहां से जो ऊर्जा का संचार होगा, वह तुम्हें कई और बुलंदियों को हासिल करने का रास्ता बना देगा। लक्ष्य के प्रति ईमानदार सोच ही बच्चों के मन, मस्तिष्क, शरीर और बुद्धि को सफलता के रास्ते पर जाने की ओर प्रबल बना देता है। बच्चों में पेशेंस, मजबूत इरादा, पढ़ने के प्रति ईमानदारी, लक्ष्य के प्रति समर्पण का भाव जागृत कर देता है। पढ़ने के प्रति हर्ष का बढ़ावा मिलना ही ज्ञान को अर्जित करने के सफर को और भी मजेदार बना देता है। बस यही है क्रिएटिंग जॉय इन नॉलेज। जो सफलता की इमानदार चाबी है।
    सवाल: ब्रदर्स अकादमी में किस चीज की तैयारी करायी जाती है?
    शुभेंदु बताते हैं, शुरूआत में ब्रदर्स अकादमी में आइआइटी, जेइइ और क्लास 11-12 की तैयारी करायी जाती थी। टू इयर्स बैच में 10वीं पास बच्चों को प्रतियोगिता की तैयारी अथवा स्कूल लेवल की तैयारी करायी जाती थी। दूसरा बैच था पासआउट बैच, यहां 12वीं पास बच्चे, जो पहले प्रयास में आइआइटी नहीं निकाल पाते, उनके लिए एक साल का कोर्स करवाया जाता था। लेकिन अब जैसे-जैसे ब्रदर्स अकादमी की डिमांड बढ़ रही है, वैसे-वैसे अब जूनियर क्लासेज भी शुरू हो गये हैं। अब कक्षा आठवीं के भी बच्चे ब्रदर्स अकादमी ज्वाइन कर सकते हैं, जहां उन्हें फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी, सोशल साइंस जैसे सब्जेक्ट के साथ-साथ मैथमेटिकल रीजनिंग की तैयारी करवायी जाती है।
    सवाल: ब्रदर्स अकादमी झारखंड में अब ब्रांड बन चुका है। काफी तेजी से इस अकादमी की मांग भी बढ़ रही है। कैसे वे बच्चे, जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं, ब्रदर्स अकादमी से ज्ञान अर्जित कर सकते हैं?
    शुभेंदु कहते हैं, ब्रदर्स अकादमी एक जी-सैट के माध्यम से परीक्षा लेता है। जो बच्चे इस परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, उन्हें शत-प्रतिशत स्कॉलरशिप भी ब्रदर्स अकादमी देता है। हम लोग एडमिशन टेस्ट से पहले सोशल मीडिया, न्यूजपेपर के माध्यम से प्रचार-प्रसार करते हैं। यह बच्चों की काबिलियत ही तय करती है कि हम उन्हें कितना स्कालरशिप दे सकें।
    सवाल: क्या आप मेडिकल की भी तैयारी करवाते हैं?
    ब्रदर्स अकादमी के फाउंडर मेंबर में से एक शुभेंदु बताते हैं कि हम लोगों ने देखा कि झारखंड को मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की काफी जरूरत है। इसी क्रम में हमने पांच साल पहले ही भांप लिया था कि ब्रदर्स अकादमी मेडिकल की भी तैयारी करवाये। हमारा लक्ष्य यही था कि शिक्षा के क्षेत्र में हम क्वालिटी एजुकेशन बच्चों को दें, ताकि लैक आॅफ क्वालिटी एजुकेशन के चलते उन्हें झारखंड छोड़ किसी और शहर का रुख नहीं करना पड़े।
    सवाल: ब्रदर्स अकादमी के बच्चे किस-किस क्षेत्र में और कहां कहां परचम लहरा रहे हैं?
    शुभेंदु बताते हैं कि ब्रदर्स अकादमी के बच्चे पूरे विश्व में झंडा बुलंद किये हुए हैं। कोई एडोबी में है, तो कोई गूगल में, कोई माइक्रोसॉफ्ट में है, तो कोई अमेजन में सफलता की नयी-नयी कहानियां गढ़ रहा है। कई बच्चे सिविल सर्विस में अपनी सेवा दे रहे हैं।
    सवाल: कोरोना काल क्या अवसर लेकर आया?
    शुभेंदु कहते हैं, कोरोना काल से पहले हम जितना बच्चों को मोबाइल से दूर रहने की सलाह देते थे, कोरोना काल में हमें मोबाइल का ही सहारा लेना पड़ा। देखिये कोचिंग का मकसद होता है एक अनुशासित, केंद्रित और लक्ष्य के प्रति ईमानदार परिवेश का मिलना। जब बच्चे इस परिवेश में आते हैं, तो ऊर्जा का असीम भंडार बच्चों के अंदर जागृत होता है। कोचिंग संस्थान में पढ़ते वक्त आइ कांटेक्ट बहुत मायने रखता है। अगर छात्र और शिक्षक में आइ कांटेक्ट ना हो, तो पढ़ाने में जो खुशी होती है, जैसा कि हमारी टैग लाइन भी है क्रिएटिंग जॉय इन नॉलेज, वह फिर धूमिल सी होने लगती है। जब कोरोना काल के दौरान हम आॅनलाइन क्लास के लिए मजबूरन शिफ्ट हुए, तो यही आइ कांटेक्ट मिसिंग थी। बच्चे अपने घर से क्लास किया करते थे। कोई कंबल ओढ़ कर क्लास कर रहा है, तो कोई निकर पहन कर। सब कैजुअल तरीके से आॅनलाइन क्लास को अपने तरीके से ही ले रहे थे। हम लोग हर सुविधा जैसे टेस्ट करवाना, स्टडी मेटेरियल उपलब्ध करना, क्लासेज आॅनलाइन करना तो दे रहे थे, लेकिन टेस्ट में अब बच्चा किताब खोल कर लिख रहा है या नहीं, यह तय कर पाना बहुत मुश्किल था। लेकिन जैसे-जैसे कोरोना का समय खिंचने लगा और बच्चों को लगा कि यह लंबा चलनेवाला है, तब वे लोग भी सीरियस होने लगे। पढ़ाई को सीरियसली लेने लगे। इस दौरान हमने फीस स्ट्रक्चर को लेकर भी काफी समझौते किये। उस वक्त क्या हम, क्या पेरेंट्स, क्या संस्थान सब आर्थिक रूप से टूटे हुए थे। फिर हमने फीस भी 50-60 प्रतिशत कम कर दी थी। कुछ अभिभावकों के अनुरोध पर हमने फीस के लिए किस्त की भी सुविधा दे दी थी। ब्रदर्स अकादमी में फीस भी काफी इकोनॉमिकल है। जब शाम को छुट्टी होती है और बच्चे क्लास रूम से बाहर निकलते हैं, तब वही बच्चे बता देंगे कि ब्रदर्स अकादमी क्या है। ब्रदर्स अकादमी में झारखंड ही नहीं, भारत के कोने-कोने से भी बच्चे कोचिंग करने आ रहे हैं। यहां से ज्ञान प्राप्त कर छात्र झारखंड का नाम विश्व में रोशन कर रहे हैं। ब्रदर्स अकादमी कहता है कि किताब और छात्र का स्टडी टेबल एक छात्र का जीवन होना चाहिए। थकना भी वहीं है और सुकून भी वहीं है। क्रिएटिंग जॉय इन नॉलेज।

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