विशेष
-अपराध नियंत्रण के साथ जनता का भरोसा हासिल करना सबसे जरूरी
-कोयला, बालू और पत्थर की तस्करी पर लगाम लगाना ही होगा
झारखंड के नये डीजीपी के रूप में अजय कुमार सिंह ने पदभार संभाल लिया है। हेमंत सोरेन सरकार ने नीरज सिन्हा के रिटायर होने के बाद उनके स्थान पर अजय कुमार सिंह को पुलिस महकमे का मुखिया नियुक्त किया है। झारखंड की सवा तीन करोड़ आबादी को नये डीजीपी से बहुत उम्मीदें हैं। इसलिए उनके सामने इन उम्मीदों पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती है। अपराध नियंत्रण के साथ आम लोगों का भरोसा हासिल करना झारखंड पुलिस के लिए बड़ा टास्क है। इसके अलावा महिलाओं के खिलाफ अपराध और नक्सल समस्या पर नियंत्रण के लिए नये डीजीपी को नये उत्साह के साथ काम करना होगा। हाल के दिनों में कोयला, बालू और पत्थर की तस्करी के अलावा संगठित अपराध में वृद्धि दर्ज की जा रही है। इससे पार पाना कठिन चुनौती है। कोरोना काल में झारखंड पुलिस ने अपने जिस मानवीय चेहरे को दुनिया के सामने रखा, उसकी चारों तरफ खूब तारीफ हुई थी। उस चेहरे को बरकरार रखने के लिए नये डीजीपी को अपने पूर्ववर्ती के अनुरूप ठोस रणनीति के तहत काम करने की जरूरत होगी। इसके अलावा जमीन और कोयले के कारोबार में लिप्त पुलिसकर्मियों पर नकेल कसना भी उनके लिए बड़ा टास्क हो सकता है। नये डीजीपी के साथ सबसे बड़ी सकारात्मक बात यह है कि वह झारखंड के कई जिलों में तैनात रहे हैं और कड़क के साथ बेहद सुलझे हुए अधिकारी माने जाते हैं। इस कारण यहां की समस्याओं से वह अच्छी तरह परिचित हैं। उनके सामने झारखंड पुलिस का चेहरा बदलने के लिए दो साल से भी अधिक का काफी लंबा वक्त है और उम्मीद की जानी चाहिए कि वह ऐसा करने में सफल होंगे। झारखंड के नये डीजीपी के सामने व्याप्त चुनौतियों की पृष्ठभूमि में उनकी कार्यशैली को रेखांकित कर रहे हैं आजाद सिपाही के राज्य समन्वय संपादक अजय शर्मा।
14 फरवरी, 2023, मंगलवार को जब झारखंड के नये डीजीपी के रूप में 1989 बैच के आइपीएस अजय कुमार सिंह के नाम की अधिसूचना जारी हुई, तो इस पर बहुत कम लोगों को आश्चर्य हुआ, क्योंकि वह राज्य के दो वरिष्ठतम आइपीएस में से एक होने के अलावा इस पद के सर्वथा योग्य हैं। यूपीएससी ने जिन तीन अधिकारियों के नामों का पैनल भेजा था, उसमें भी अजय कुमार सिंह का नाम दूसरे नंबर पर था। अजय कुमार सिंह झारखंड में कई जिलों में पदस्थापित रहे हैं और कई संवेदनशील पदों की जिम्मेवारी भी निभा चुके हैं। वह एक कड़क और इमानदार अधिकारी माने जाते हैं, जो अक्सर अपने मानवीय चेहरे के लिए सुर्खियों में आते रहते हैं।
अब अजय कुमार सिंह ने डीजीपी का पदभार संभाल लिया है और इसके साथ ही उनके सामने चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त भी आ गयी है। एक आइपीएस अधिकारी के रूप में उन्होंने पिछले करीब तीन दशक के दौरान जो शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं, उनसे तो झारखंड की सवा तीन करोड़ की आबादी को यह भरोसा हो गया है कि वह पुलिस महकमे का चेहरा बदलने में कामयाब होंगे। इसके साथ ही उनके कड़क और कर्तव्यनिष्ठ होने के कारण भी लोगों की उम्मीदें उनसे काफी बड़ी हैं। वैसे तो अजय कुमार सिंह का गृह राज्य उत्तरप्रदेश है, लेकिन वह झारखंड को अपना दूसरा घर मानते हैं।
नये डीजीपी ने पदभार संभालने के फौरन बाद अपनी प्राथमिकताएं गिनायी हैं। इनमें अपराध और नक्सलवाद पर नियंत्रण के साथ उन्होंने आम लोगों के साथ पुलिस के रिश्ते को और मजबूत करने की बात कही है। वास्तव में झारखंड पुलिस को इस वक्त इसकी सबसे अधिक जरूरत है। हाल के दिनों में राज्य में नक्सली समस्या थोड़ी चिंताजनक हो गयी है, हालांकि संतोष की बात यह है कि अक्सर पुलिस ही इन पर भारी पड़ी है। इस सिलसिले को जारी रखते हुए पुलिस की मारक क्षमता को बढ़ाना बड़ी चुनौती है। राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध के साथ सामान्य अपराध भी बढ़े हैं, जिन पर लगाम लगाना और अपराधियों को कानून के शिकंजे में लाने का चैलेंज नये डीजीपी के सामने है। धनबाद और संथाल परगना के इलाके में संगठित अपराध में बढ़ोत्तरी भी चिंताजनक है। कोयला, बालू और पत्थर का अवैध खनन-तस्करी भी नये डीजीपी के सामने बड़ी चुनौती है। इसके साथ झारखंड पुलिस के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि बड़ी संख्या में इसके अधिकारी जमीन और कोयले के अवैध कारोबार में लिप्त हैं। बार-बार चेतावनी दिये जाने के बावजूद ऐसे पुलिस अधिकारी सुधरने का नाम नहीं ले रहे। इससे अपराध और नक्सलवाद पर अंकुश लगाना अक्सर मुश्किल हो जाता है। नये डीजीपी को पुलिस महकमे की इस अंदरूनी बीमारी को दूर करने के लिए बहुत परिश्रम करना होगा। उन्होंने अपने पहले साक्षात्कार में पुलिसकर्मियों को जनता के साथ शालीन व्यवहार करने की बात कही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इसका सकारात्मक असर होगा। वैसे कोरोना काल के दौरान झारखंड पुलिस ने अपने जिस मानवीय चेहरे को दुनिया के सामने रखा, उसकी काफी तारीफ हुई। नये डीजीपी इस चेहरे को और चमकायेंंगे, यह उम्मीद तो लगायी ही जा सकती है।
झारखंड मेंं कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील पदों पर काम करने के अनुभव के कारण नये डीजीपी को यहां की समस्याओं की बेहतर समझ है। वह राज्य के विभिन्न इलाकों से अच्छी तरह परिचित भी हैं। अपने 33 साल के लंबे कैरियर में उन्होंने जिस सुलझे तरीके से चुनौतियों का सामना किया है, उससे यह उम्मीद बंधी है कि वह डीजीपी के रूप में कामयाबी की नयी ऊंचाइयां हासिल करेंगे। उनकी छवि एक कड़क और सुलझे हुए पुलिस अधिकारी की है, जो अपने काम के रास्ते में आनेवाली किसी भी रुकावट से सीधे टकराने में नहीं हिचकते। आइपीएस अधिकारी के रूप में उन्होंने बेहद कुशलता से अपराध और अपराधियों पर प्रहार किया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी कार्यशैली से राज्य को यही संदेश दिया है कि गड़बड़ी के लिए झारखंड में अब कोई जगह नहीं है और अजय कुमार सिंह से उन्हें यही उम्मीद है कि वह पुलिस को इसी रास्ते पर ले जायेंगे। इसलिए राजनीतिक नेतृत्व की तरफ से नये डीजीपी को पूरा समर्थन मिलेगा। ऐसे में झारखंड को अपराध मुक्त बना कर उसकी ख्याति एक निरापद और सुरक्षित प्रदेश के रूप में दुनिया भर में फैलाना नये डीजीपी के सामने बड़ा चैलेंज है। उनके पास इन चुनौतियों से पार पाने के लिए अभी लंबा वक्त है। इसलिए यह उम्मीद बंधती है कि नये डीजीपी झारखंड पुलिस के उस चमकीले चेहरे को दुनिया के सामने लाने में सफल होंगे। इसके लिए खुफिया तंत्र को मजबूत करना जरूरी होगा, जिसका व्यापक अनुभव नये डीजीपी को है। पुलिसकर्मियों का आम जनता के साथ शालीन व्यवहार हो, यह नये डीजीपी की प्राथमिकता में शामिल है। इसलिए खुफिया सूचनाएं अब पुलिस को मिलेंगी, इसकी उम्मीद भी जगी है।
कुल मिला कर नये डीजीपी अजय कुमार सिंह के सामने चुनौतियों का अंबार है और वह इससे पीछे हटने वाले अधिकारी नहीं हैं। झारखंड पुलिस को नया कलेवर और नया तेवर देने से वह कतई पीछे नहीं हटेंगे। हाल के दिनों में झारखंड पुलिस की वर्दी पर जो दाग लगे हैं, उन सभी को साफ करने में नये डीजीपी जरूर सफल होंगे।