विशेष
-चुनावी राज्यों के लिए अलग पैमाना तय किया
-पार्टी के भीतर के संतुलन को भी दोबारा कायम कर लिया
-क्षेत्रीय और जातीय संतुलन का भी रखा समुचित ध्यान

दो दिन पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़ा फेरबदल करते हुए छह राज्यों में नये राज्यपाल नियुक्त किये, जबकि सात अन्य की भी बदली कर दी। केंद्र सरकार की ओर से यह कदम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में भगत सिंह कोश्यारी और लद्दाख के उप राज्यपाल के रूप में राधाकृष्णन माथुर के इस्तीफे को स्वीकार करने के बाद उठाया गया। हालांकि माना यही जा रहा है कि केंद्र की ओर से ये नियुक्तियां और अदला-बदली राजनीतिक गणनाओं के आधार पर की गयी हैं, लेकिन इनमें से राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया को असम के राज्यपाल का पद दिये जाने की खूब चर्चा हो रही है। इसके अलावा यूपी के पूर्वांचल से सात राज्यपालों की नियुक्ति के पीछे की राजनीति पर भी खासी चर्चा हो रही है। ये चर्चाएं एक हद तक सही भी हैं। मोदी सरकार ने इन नियुक्तियों के जरिये जहां चुनावी राज्यों में माहौल को बदला है, वहीं जातीय और क्षेत्रीय संतुलन को भी ध्यान में रखा है। इतना ही नहीं, पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष को भी इस कवायद से खत्म करने की कोशिश की गयी है। केंद्र की ओर से की गयी इन नियुक्तियों से दो चीजें स्पष्ट होती नजर आ रही हैं। एक तो यह कि इस तरह 75 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले भाजपा और आरएसएस के नेताओं के लिए उपयुक्त जगह बनायी गयी है, और दूसरा पार्टी को उन राज्यों में पुनर्गठित करने का प्रयास किया गया है, जहां वह आंतरिक गुटबाजी का सामना कर रही है। राज्यपालों की नियुक्ति की इस कवायद के पीछे की राजनीतिक वजहों का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

केंद्र सरकार ने 12 फरवरी को छह नये राज्यपाल नियुक्त किये और सात राज्यों में राज्यपाल पदों में फेरबदल किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में भगत सिंह कोश्यारी और लद्दाख के उप राज्यपाल के रूप में राधाकृष्णन माथुर के इस्तीफे को स्वीकार करने के बाद यह फेरबदल किया गया। माथुर की जगह अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल बीडी मिश्रा नियुक्त किये गये हैं। सरकार ने जिन 13 राज्यों में यह बदलाव किया, उनमें से कई में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए मोदी सरकार की इस कवायद की चर्चा भी खूब हो रही है।

तमिलनाडु में दो नेताओं के मतभेद को भी किया दूर
बात शुरू करते हैं झारखंड से। पूर्व लोकसभा सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता सीपी राधाकृष्णन को झारखंड भेजा गया है। उनके तमिलनाडु इकाई से बाहर होने से प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई की स्थिति मजबूत हो सकती है। राधाकृष्णन के प्रदेश अध्यक्ष के साथ मतभेद थे और उनकी कार्यशैली को लेकर शिकायत थी। अन्नामलाई के काम करने और राज्य इकाई का नेतृत्व करने के तरीके से भाजपा नेतृत्व काफी खुश है। कर्नाटक चुनाव के लिए अन्नामलाई को सह-प्रभारी नियुक्त करने का नेतृत्व का कदम इसका एक संकेत है। राज्यपाल नियुक्त होने के बाद से एक वफादार और प्रतिबद्ध पार्टी कार्यकर्ता राधाकृष्णन अब शांत हो गये हैं। राधाकृष्णन ने दो बार, 1998 और 1999 में कोयंबटूर लोकसभा सीट जीती और राज्य में पार्टी संगठन के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। वह राज्य इकाई के अध्यक्ष भी थे और भाजपा के लिए केरल के प्रभारी थे। ऐसी खबरें हैं कि भाजपा नेतृत्व अन्नामलाई को कोयंबटूर से उम्मीदवार बना सकता है।

सिरदर्द साबित हो रहे थे कोश्यारी
भगत सिंह कोश्यारी, जिनके महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में कार्यकाल के दौरान कई बयानों पर विवाद हुआ, की जगह झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को नियुक्त किया गया है। महाराष्ट्र भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य है, जहां पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना के साथ गठबंधन में 41 सीटें जीती थीं और वह राज्य में शांत व्यक्ति चाहती थी, जो चुनाव के समय विवाद पैदा न करे। भाजपा अपने शासन वाले राज्य में एक आक्रामक व्यक्ति नहीं चाहती है। जनवरी में भगत सिंह कोश्यारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अपने पद से हटने की इच्छा व्यक्त की थी।

गुलाब चंद कटारिया की नियुक्ति क्यों महत्वपूर्ण
वरिष्ठ भाजपा नेता और राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया को असम का नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कटारिया की नियुक्ति इस साल के अंत में राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले की गयी है। कटारिया को असम के राज्यपाल के रूप में चुनना राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कदम है। एक, उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मुकाबला करने के लिए विपक्ष के नेता के रूप में एक आक्रामक चेहरे से बदल दिया जायेगा और दूसरा, पार्टी राज्य पर ध्यान केंद्रित कर रही है। कटारिया पूर्व सीएम और पार्टी की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे के विरोधियों में से एक थे, हालांकि उन्होंने 2004 और 2014-2018 की दोनों राजे सरकारों में गृह मंत्री के रूप में कार्य किया। राजस्थान इकाई में गुटीय विवाद को हल करने और चुनाव में एकजुट चेहरा सामने रखने के लिए संघर्ष कर रहे राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ कटारिया के राज्यपाल पद पर पदोन्नति से उस पर दबाव कुछ कम हो सकता है। यह कदम राज्य इकाई में शक्ति समीकरणों को भी बदल सकता है।

आदिवासी नेता की नियुक्ति की गयी
उत्तर प्रदेश के दो नेताओं, लक्ष्मण प्रसाद आचार्य, जो राज्य में विधान परिषद के सदस्य हैं और राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ला को भी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए राज्यपाल चुना गया है। लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को सिक्किम का नया राज्यपाल और शिव प्रताप शुक्ला को हिमाचल प्रदेश का नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है। आचार्य खरवार जनजाति से ताल्लुक रखते हैं और 2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार वाराणसी लोकसभा चुनाव लड़ा था, तब उन्होंने काशी प्रांत के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था। उनकी नियुक्ति पूर्वोत्तर राज्य असम को प्रोत्साहन देगी, जहां आदिवासी बहुमत में हैं। इससे भाजपा को त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में होने वाले चुनावों में भी मदद मिलने की उम्मीद है।

शिव प्रताप शुक्ला के जरिये ब्राह्मणों का साधा
ब्राह्मण नेता शिव प्रताप शुक्ला को 2014 में केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए चुना गया था। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में उनकी नियुक्ति दोनों राज्यों के लिए महत्वपूर्ण है। भाजपा हाल ही में हिमाचल विधानसभा चुनाव में हार गयी और यूपी लोकसभा चुनाव पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हैं। पार्टी ने 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान शुक्ला को ब्राह्मणों का प्रभार दिया था। अमित शाह ने उन्हें ब्राह्मणों की देखभाल के लिए समिति का अध्यक्ष बनाया था, जब समुदाय के भाजपा से नाराज होने की खबरें सामने आयी थीं। ब्राह्मणों तक पहुंचने के लिए सीएम योगी के विरोधी व्यक्ति को चुनना महत्वपूर्ण है, क्योंकि शुक्ला को मठ विरोधी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। योगी के नेतृत्व में गोरखपुर की राजनीति में उन्हें लगातार दरकिनार किया जाता रहा। यह दिलचस्प है कि भाजपा ने शुक्ला को राज्यपाल नियुक्त करके ब्राह्मण लॉबी को संतुलित किया है।

अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य को भी चुना
वरिष्ठ नेता और तमिलनाडु के पूर्व सांसद सीपी राधाकृष्णन को झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया है, जबकि सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया है, जहां भाजपा पैर जमाने की कोशिश कर रही है। अब्दुल नजीर कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं और अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य होने के नाते केंद्र सरकार के सबका साथ, सबका विकास के नैरेटिव में फिट बैठते हैं।

अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल सेना के पूर्व अधिकारी
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल कैवल्य त्रिविक्रम परनाइक को अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। वह 2011 में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और संवेदनशील उत्तरी कमान में जनरल आॅफिसर कमांडिंग इन चीफ के रूप में तैनात थे। खुद राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से कैडेट रहे। उनकी तीन पीढ़ियों ने सेना में सेवा की है। उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान और जम्मू-कश्मीर की इनफैंट्री ब्रिगेड में सेवा की है। उनके पास पूर्वोत्तर में वर्षों का अनुभव है, जो उनकी वर्तमान नियुक्ति को बयां करता है।

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