-अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कर्ज देने से किया इनकार
-कंगाली के रास्ते पर एक और कदम आगे बढ़ा भारत का पड़ोसी
-पाकिस्तान के लिए अब आगे कुआं है और पीछे खाई
एक वक्त था, जब पाकिस्तान भारत के खिलाफ साजिशें रचता था, सीमा पार से आतंकवादियों को भेजता था और हिंदुस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा था। लेकिन अब वक्त बदल चुका है। वही पाकिस्तान अब घुटनों पर है। कंगाल हो चुका पाकिस्तान वर्तमान में दिवालिया होने की कगार पर खड़ा है। उसके प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पीएम मोदी से बातचीत कर संबंध सुधारना चाहते हैं। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि आज का पाकिस्तान भारत के लिए खतरा पैदा नहीं कर सकता, क्योंकि वह खुद कई मुसीबतों से घिरा हुआ है। 75 साल पहले अस्तित्व में आने के बाद से पाकिस्तान में एक के बाद दूसरा संकट लगातार जारी है। सिर्फ 1980 के दशक के बाद से पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) से 13 बार बेलआउट पैकेज ले चुका है। पाकिस्तान का वर्तमान आर्थिक संकट, जिसे उसके प्रधानमंत्री ‘कल्पना से परे’ बता रहे हैं, ने उसे पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। यह बात सच है कि कमजोर पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम नहीं दे सकता। लेकिन अगर उसके हालात और बुरे हुए, तो भारत के लिए चिंताजनक होगा। कंगाली और अराजकता के चलते पाकिस्तान में अगर राजनीतिक सरकार का पतन हुआ, तो वहां टीटीपी जैसे आतंकी संगठन और मजबूत हो सकते हैं। वह परिस्थिति भारत के लिए खतरनाक होगी। पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का जखीरा भी गलत हाथों में जा सकता है। इसलिए पाकिस्तान की हालत भारत के लिए भी चिंताजनक है। पाकिस्तान की इस कंगाल स्थिति का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान इन दिनों बुरी तरह फंसा हुआ है। वह दिवालिया होने की कगार पर आ गया है और उसके सामने विकल्पों के दरवाजे एक-एक कर बंद होते जा रहे हैं। हालत यह हो गयी है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी उसे राहत देने से इनकार कर दिया है। इसके कारण दुनिया भर में पाकिस्तान की साख गिर गयी है। वह लिये गये कर्ज को वापस करने की स्थिति में नहीं है। दरअसल, पाकिस्तान अपने संसाधनों का इस्तेमाल अपनी अवाम की बजाय आतंकवाद, कट्टरपंथ और जिहाद को बढ़ावा देने के लिए करता आया है। अब उसके पास अपने खाने के लिए भी संसाधन नहीं बचे हैं। ऊपर से आतंकवाद के जो कांटे वह भारत के लिए बो रहा था, आज टीटीपी के रूप में खुद उसी को चुभ रहे हैं। आइएमएफ से निराशा हाथ लगने के बाद पाकिस्तान का आर्थिक संकट दूर-दूर तक कम होता नहीं दिख रहा है।
वैसे तो दुनिया भर में पाकिस्तान को आतंकवाद की फैक्ट्री के लिए जाना ही जाता था कि अचानक वहां श्रीलंका जैसे हालात की स्थिति बनने लगी है। पाकिस्तान इन दिनों सबसे बुरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है और लोगों का मानना है कि बस कुछ ही दिनों बाद पाकिस्तान में भी वही देखने को मिल सकता है, जो हाल के दिनों में श्रीलंका में देखने को मिला। लोगों का यह भी कहना है कि पाकिस्तान के लोग भयंकर महंगाई और खाने-पीने जैसी आवश्यक सामग्री के लिए तरस रहे हैं। बेकाबू महंगाई की वजह से आम लोगों से हर जरूरत की चीज दूर होती जा रही है। कंगाली की कगार पर आ पहुंचा पाकिस्तान दुनिया भर के देशों से भीख मांग रहा है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो चुकी है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार अपने सबसे बुरे दौर से गुजरते हुए आठ बिलियन डॉलर से भी नीचे चला गया है। अगस्त महीने में स्टेट बैंक आॅफ पाकिस्तान ने एक डाटा जारी किया। इसमें पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 7830 मिलियन डॉलर रिकॉर्ड किया गया है। यह पाकिस्तान में पिछले तीन सालों का सबसे खराब स्तर बताया जा रहा है। ऐसे में माना जा रहा था कि अगर पाकिस्तान को आइएमएफ की तरफ से मदद नहीं की गयी, तो फिर श्रीलंका जैसे हालात बनने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन अब आइएमएफ ने भी पाकिस्तान से मुंह फेर लिया है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि पाकिस्तान की दीर्घकालिक गिरावट का क्या यह कोई बुनियादी मुकाम है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की टीम ने पाया है कि पाकिस्तान को कर्ज जारी करने के बदले उसकी संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था का किस तरह प्रबंधन किया जाये, इस पर विचार जरूरी है। इसका सीधा मतलब यह है कि कर्ज मिले या न मिले, पाकिस्तान के लिए यह बुरा समय है। उसे चुनाव श्रीलंका की तरह के संयोग, अराजकता और उन कठोर कदमों के बीच करना है, जिन्हें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों ‘सोच से बाहर’ बताया। ऊंचे बिजली बिल, ऊंचे टैक्स, कम सब्सिडी और पहले ही 27 फीसदी पर पहुंच चुकी बर्बर मुद्रास्फीति पाकिस्तानी अवाम के जीवन स्तर में और गिरावट लायेगी।
दरअसल, पाकिस्तान की यह स्थिति उसकी कर्ज लेने की आदत के कारण हुई है। पाकिस्तान लगातार बाहरी देशों से कर्ज ले रहा था। हालत यहां तक पहुंच गयी थी कि विदेशी दूतावासों के कर्मियों का वेतन और दूसरे खर्च के लिए भी पाकिस्तान उन देशों पर निर्भर हो गया। इसका सीधा असर उसकी विदेशी साख पर पड़ा।
पाकिस्तान के बदहाल हालात की दूसरी वजह भ्रष्टाचार और इसके बाद राजनीतिक अस्थिरता है। अगर कोई सरकार सत्ता में आती भी है, तो वह पांच साल पूरे नहीं कर पाती है। देश आर्थिक कर्ज के नीचे निरंतर दबता चला जा रहा है। इससे उबरने के लिए पाकिस्तान सरकार ने चीन से 2.3 अरब डॉलर का भारी कर्ज भी ले लिया। इसके ब्याज भुगतान से ही पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने लगा।
इन सबके साथ मुद्रा की कीमत में एक रात में करीब 15 फीसदी और पिछले एक साल में कुल करीब 35 फीसदी की कटौती और ईंधन की कीमत में वृद्धि करने के दो कठोर फैसलों से पाकिस्तान की कमर टूट गयी है। सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान की जनता इस पैकेज को अपनी तकदीर मान कर कबूल कर लेगी।
इस तरह के कठोर उपायों का मतलब यह है कि पाकिस्तान अब अंधी गली में पहुंच चुका है। हालांकि अब तक वह अपने कर्जदारों से ऐसे वादे करके पैसे हासिल करता रहा है, जिन्हें वह प्राय: तोड़ता रहा है, लेकिन वह इतनी उस्तादी नहीं दिखा सका है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर के बड़े तामझाम की ओट में चीन के साथ उपयुक्त परियोजनाओं के ठेके हासिल कर सके।
अगर पाकिस्तान को अब नये सिरे से शुरूआत करनी है, तो एक लंबा रास्ता आगे पसरा हुआ है। उसके कमजोर सामाजिक-आर्थिक पैमाने ‘निम्न’ मानव विकास सूचकांक से परिलक्षित होते हैं। उसकी प्रति व्यक्ति आय दक्षिण एशिया में निम्नतम स्तर पर है। उद्योग का आधार संकरा है और राजनीति पंगु है, तो राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उसका एजेंडा उलटे नतीजे दे रहा है। ऐसे में पाकिस्तान के लिए अब एक ही रास्ता बचा है और वह है भारत की शरण में आना। लेकिन यह रास्ता इतना आसान नहीं है।