विशेष
-झारखंड में कांग्रेस के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका दिया बाबूलाल ने
-प्रदेश की सभी 14 सीटों को जीतने के लक्ष्य के और करीब पहुंची भगवा पार्टी
कोल्हान की सियासत की सबसे मजबूत स्तंभ मानी जानेवाली सिंहभूम की सांसद गीता कोड़ा ने भाजपा का दामन थाम लिया है और इसके साथ ही वह एक ऐसे सियासी सफर पर निकल पड़ी हैं, जिसकी मंजिल शीर्ष भी हो सकती है। गीता कोड़ा का कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल होना झारखंड का हाल के दिनों में सबसे बड़ा सियासी घटनाक्रम है, जिसने देश की सबसे पुरानी पार्टी को सकते में डाल दिया है, तो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी को राज्य की सभी 14 संसदीय सीट जीतने के लक्ष्य के करीब ला दिया है। झारखंड का कोल्हान इलाका भाजपा के लिए हमेशा से दुर्गम रहा है। 2019 के संसदीय चुनाव में गीता कोड़ा ने कांग्रेस के टिकट पर सिंहभूम सीट जीत ली थी और बाद में विधानसभा चुनाव में पूरे कोल्हान से भाजपा का सूपड़ा साफ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। गीता कोड़ा के पति और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का राजनीतिक सफर भाजपा से ही शुरू हुआ था, लेकिन बाद में वह विभिन्न कारणों से इससे अलग हो गये। इस तरह कोड़ा दंपति के लिए भाजपा कोई अंजान जगह नहीं है। गीता कोड़ा के भाजपा में आने के बाद कोल्हान का सियासी परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। यह भाजपा और खास कर बाबूलाल मरांडी के लिए बड़ी सफलता है, जो इस बार सभी 14 सीटें जीतने के लिए अपना सब कुछ झोंक चुके हैं। गीता कोड़ा को भाजपा में शामिल करा कर बाबूलाल मरांडी ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता खुलने पर एक तरह से ब्रेक लगा दिया है। गीता कोड़ा के माध्यम से लोकसभा में झारखंड का दीया जलता था। वह भी अब बुझ गया। क्या है गीता कोड़ा के भाजपा में शामिल होने का मतलब और इसका क्या होगा सियासी असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
26 फरवरी 2024 का दिन झारखंड की राजनीति के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम का गवाह बन गया। राज्य की सिंहभूम संसदीय सीट से कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने दिन के 12 बजे कांग्रेस से इस्तीफा दिया। इसके बाद वह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और अन्य नेताओं की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो गयीं। इसके साथ ही गीता कोड़ा के राजनीतिक करियर में उस सफर की शुरूआत हुई, जिसकी मंजिल कहां तक जायेगी, कहना मुश्किल है। गीता कोड़ा सिंहभूम की सांसद ही नहीं, कोल्हान की सबसे मजबूत राजनीतिक हस्ती मानी जाती हैं। उनका भाजपा में शामिल होना सियासी नजरिये से इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भाजपा कोल्हान में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए लगातार हाथ-पैर मार रही थी। गीता कोड़ा के भाजपा में शामिल हो जाने से लोकसभा में झारखंड की तरफ से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व शून्य तो हो ही गया, गीता कोड़ा के रूप में भाजपा को झारखंड में एक तेज-तर्रार नेत्री भी मिल गयी।
क्या है गीता कोड़ा की ताकत
गीता कोड़ा ‘हो’ जनजातीय समुदाय से आती हैं। उनके पति मधु कोड़ा राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनका राजनीतिक सफर भी भाजपा से ही शुरू हुआ था और पार्टी से अलग होकर वह भले ही सत्ता शीर्ष तक पहुंचे, लेकिन कांग्रेस और अन्य दलों के साथ ने उनके राजनीतिक जीवन पर ऐसा ग्रहण लगा दिया कि वह आज भी इसके फेर में फंसे हैं। चाइबासा के जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र में कोड़ा परिवार की तूती बोलती है। इस दंपति के पास करीब सवा दो लाख वोटों की ऐसी ताकत है, जिसे कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है। 2014 में जब गीता कोड़ा जय भारत समानता पार्टी से सिंहभूम सीट से चुनाव मैदान में उतरी थीं, तो उन्हें करीब इतने ही वोट मिले थे। हालांकि वह भाजपा के लक्ष्मण गिलुआ से हार गयी थीं, लेकिन उनका वोट बैंक पूरी तरह उनके साथ बना रहा। 2019 में झामुमो और कांग्रेस का वोट इसमें जुड़ गया, तो गीता कोड़ा ने लक्ष्मण गिलुआ को मोदी लहर में भी लगभग 72 हजार वोटों से पटखनी दे दी थी। गीता कोड़ा को उस चुनाव में 431815 वोट मिले थेञ गीता कोड़ा की यह ताकत अब भाजपा के पाले में चली गयी है, जबकि कांग्रेस-झामुमो की झोली से लगभग 2 लाख वोट कम हो गये हैं।
23 साल से जगन्नाथपुर पर है कोड़ा दंपति का कब्जा
वर्ष 2000 में इसी सीट से जीत हासिल करने के बाद मधु कोड़ा ने झारखंड की सियासत में अपना परचम गाड़ा था और उसके बाद यह सीट मधुकोड़ा परिवार के हाथ में ही रही। दो बार खुद मधु कोड़ा और दो बार उनकी पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर सीट से विधानसभा तक पहुंचने में कामयाब रही। जब गीता कोड़ा को कांग्रेस के टिकट पर सांसद बना कर दिल्ली भेज दिया गया, तो कांग्रेस ने इस सीट से सोनाराम सिंकू पर अपना दांव लगाया और वह जीतने में कामयाब रहे। माना जाता है कि सोनाराम सिंकू की इस जीत के पीछे भी मधु कोड़ा की ताकत ही रही थी। कुल मिला कर पिछले 23 वर्षों से इस सीट पर मधु कोड़ा का राजनीतिक वर्चस्व कायम है और बाबूलाल का मधु कोड़ा पर दांव लगाने की वजह भी यही है।
बाबूलाल मरांडी की बड़ी कामयाबी
गीता कोड़ा को भाजपा में लाने का पूरा श्रेय बाबूलाल मरांडी को है। झारखंड की कमान संभालने के साथ ही वह भाजपा के पुराने सहयागियों के साथ ही कांग्रेस के वैसे चेहरों को साथ लाने की कवायद में जुटे हुए थे, जिन्हें लगता है कि कांग्रेस में उन्हे उनकी सियासी हैसियत के अनुसार सम्मान नहीं मिल रहा है। बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में भाजपा ने कोल्हान में अपनी पैठ तो बनायी है, लेकिन चुनावी नजरिये से उसके पास कोई बड़ा चेहरा अब तक नहीं था। गीता कोड़ा को पार्टी में शामिल करा कर बाबूलाल मरांडी ने यह कमी दूर कर दी है और इसे उनकी बड़ी कामयाबी कही जा सकती है।
भाजपा के ‘कोल्हान फतह’ को मिली ताकत
पिछले चुनाव में कोल्हान में बुरी तरह पराजित होने के बाद से ही भाजपा इस इलाके में अपना पैर जमाने की कोशिश कर रही थी। झारखंड की सत्ता गंवाने के बाद से ही भाजपा की पहली प्राथमिकता कोल्हान और संथाल के उस किले को ध्वस्त करना था, जो तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी झामुमो का मजबूत किला रहा है। गीता कोड़ा का पार्टी में शामिल होना इसी रणनीति का एक हिस्सा माना जा सकता है। कोल्हान में भाजपा की ताकत अचानक बढ़ी
भाजपा को पता है कि कोल्हान फतह के बिना झारखंड की सत्ता में उसकी वापसी असंभव है। इसलिए उसने शुरूआत से ही इस तरफ प्रयास करना शुरू कर दिया था। पार्टी का मानना है कि गीता कोड़ा को अपने पाले में कर उसने कांग्रेस-झामुमो के किले को यदि पूरी तरह ध्वस्त नहीं किया है, तो कम से कम उसमें एक ऐसी दरार जरूर पैदा कर दी है, जिसे भरना संभव नहीं है। गीता कोड़ा के भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा के लिए सिंहभूम संसदीय सीट और कम से कम सात विधानसभा सीटों का मुकाबला आसान होता दिखने लगा है। सिंहभूम संसदीय सीट के चुनाव के समय भाजपा के लिए सुखद बात यह है कि उसकी थाती में सवा दो लाख वोट गीता कोड़ा के रूप में आये हैं। करीब-करीब उतना ही वोट भाजपा के पास है, इसलिए भाजपा अब इस सीट पर जीत का सपना देख सकती है।
कौन हैं गीता कोड़ा
गीता कोड़ा वैसे तो अपने पति की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं, पर दोनों की राजनीति में मूलभूत अंतर यह है कि जहां मधु कोड़ा के दामन में भ्रष्टाचार के आरोपों के छींटे हैं, वहीं गीता की राजनीतिक पारी बेदाग है। गीता कोड़ा सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र से चुनी जानेवाली पहली महिला सांसद थीं। उनकी यह जीत इसलिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उन्होंने भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ को हराया था और इसलिए भी, क्योंकि वह झारखंड में कांग्रेस के टिकट पर जीतनेवाली इकलौती सांसद थीं। यह जीत उनके पति मधु कोड़ा के लिए और सुखदायी थी, क्योंकि झारखंड का पहला निर्दलीय मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका करियर लगातार ढलान की ओर अग्रसर था।
जब चार हजार करोड़ के खनन घोटाले के आरोपों से घिरे उनके पति मधु कोड़ा के जीवन में भ्रष्टाचार की कालिख लग चुकी थी, तब भी उनके साथ रह रहीं गीता का दामन बेदाग था। अपने राजनीतिक जीवन में उन्हें वह सम्मान हासिल हुआ, जो उनके पति के लिए दुर्लभ कहा जा सकता है। साल 2009 में जब वह विधायक बन कर विधानसभा में पहुंचीं, तो न सिर्फ यहां उन्होंने अपनी शालीनता का परिचय दिया, बल्कि अपने व्यवहार के लिए साथी विधायकों की सराहना भी उन्हें मिली। अपने लगभग दस साल के राजनीतिक करियर में गीता के नाम झारखंड की सबसे कम उम्र की विधायक बनने का रिकॉर्ड भी है। साल 2009 में अपने पति की पार्टी जय भारत समानता पार्टी के टिकट पर वह विधानसभा का चुनाव लड़ीं और जीत का परचम लहरा दिया। उस वक्त उनकी उम्र महज 25 साल थी। अक्टूबर 2018 में वह कांग्रेस में शामिल हुई थीं।
कुशल गृहिणी भी रहीं हैं गीता
राजनीति में अपने क्षेत्र की जनता का दिल जीत चुकीं गीता कुशल गृहिणी भी रही हैं। 23 सितंबर को मेघाहातुबुरु में जन्मी गीता ने पीजी तक की पढ़ाई की है। मधु कोड़ा से शादी करने के बाद वह काफी समय तक गृहिणी बन कर रहीं। वर्ष 2009 में जब मधु कोड़ा को भ्रष्टाचार के एक मामले में जेल जाना पड़ा, तब उन्होंने राजनीति में कदम रखा।
जल्द ही कुछ और बड़े चेहरे शामिल होंगे
गीता कोड़ा के भाजपा में शामिल होने के साथ ही भाजपा के अंदरखाने इस बात की चर्चा हो रही है कि जल्द ही कुछ और बड़े और साफ-सुथरा चेहरे भाजपा से जुड़नेवाले हैं। उन चेहरों के जुड़ जाने से भाजपा के लिए जीत की राह आसान हो जायेगी।