अनिल मिश्र
खूंटी। जनजातियों के लिए आरक्षित खूंटी संसदीय क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है। आजादी के बाद अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में भाजपा के कड़िया मुंडा को आठ बार विजय हासिल हुई है। 1977 में वह जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार संसद पहुंचे थे। इसके बाद 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2009 और 2014 में भाजपा के टिकट पर कड़िया मुंडा लोकसभा सदस्य चुने गये। 2004 में कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा ने उन्हें पराजित किया था। वैसे शुरुआती दौर में खूंटी झारखंड पार्टी का गढ़ हुआ करता था, जहां से मारंग गोमके के रूप में प्रसिद्ध जयपाल सिंह मुंडा ने 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में खूंटी का प्रतिनिधित्व लोकसभा में किया। 1957 और 1962 में भी वे झारखंड पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते। बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया और 1967 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीता। उस समय के दिग्गज आदिवासी नेता एनइ होरो ने झारखंड पार्टी को पुन: खड़ा किया और 1972 में वे पार्टी के सांसद बने। 1980 में वे फिर से लोकसभा सदस्य चुने गये। 1984 के इंदिरा लहर में कांग्रेस के साइमन तिग्गा खूंटी के सांसद बने।
कितनी चुनौती है अर्जुन के सामने
भाजपा ने इस बार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को अपना प्रत्याशी बनाया है। दिग्गज नेता पद्मभूषण से अलंकृत सांसद कड़िया मुंडा ने भी खुले मन से पार्टी के निर्णय का स्वागत किया और अर्जुन मुंडा के सिर पर हाथ रख कर उन्हें जीत का आशीर्वाद दिया। अर्जुन मुंडा की उम्मीदवारी से कार्यकर्ताओं में एक नया जोश आ गया है। भाजपा ही नहीं, विरोधी दल के नेता भी स्वीकार करते हैं कि भाजपा ने दमदार उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। झामुमो के विधायक पौलुस सुरीन तो खुले तौर पर कहते हैं कि आदिवासी समाज में अर्जुन मुंडा की अच्छी पकड़ है। इसका लाभ उन्हें संसदीय चुनाव में मिल सकता है। हालांकि कांग्रेस या अन्य दलों ने अपने तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है, लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस के अलावा झारखंड पार्टी, अखिल भारतीय झारखंड पार्टी, आदिवासी सेंगेल पार्टी सहित अन्य दलीय और निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी जंग में कूदेंगे। राजनीति के जानकार कहते हैं कि झारखंड नामधारी दल और सेंगेल पार्टी कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। उनका मानना है कि मतों के बिखराव का लाभ भाजपा प्रत्याशी को मिल सकता है।
क्या कड़िया मुंडा की विरासत को संभाल कर रख पायेंगे अर्जुन?
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