रांची। गिरिडीह लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र झारखंड का महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में गिरडीह, बोकारो और धनबाद जिले के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया है। इस संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्रों को समाहित किया गया है। यह क्षेत्र दुर्गम पहाड़ियों और जंगलों से घिरा है। मुगल सम्राटों का इस क्षेत्र पर शासन रहा। यह क्षेत्र अबरख और कोयला जैसे खनिज उत्पाद के लिए भी जाना जाता है। यहीं पर जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल पारसनाथ भी है। इस लोकसभा सीट का गठन 1962 में हुआ। 1989 से पहले हुए चुनाव में कांग्रेस का इस सीट पर आधिपत्य था। दो चुनाव में कांग्रेस हारी थी। अंतिम बार कांग्रेस के टिकट पर 1984 के चुनाव में सरफराज अहमद जीते थे। इसके बाद कांग्रेस यहां से कभी चुनाव नहीं जीत सकी। इस सीट पर भाजपा का खाता 1989 में खुला, लेकिन 1991 के चुनाव में झामुमो के बिनोद बिहारी महतो ने भाजपा से इस सीट को हथिया लिया।
इसके बाद 1996 से लेकर 2004 तक भाजपा यहां से जीतती रही और रवींद्र पाण्डेय इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे। वर्ष 2004 के चुनाव में रवींद्र पांडेय के विजय रथ को झामुमो के टेकलाल महतो ने रोक दिया। अगले ही चुनाव में रवींद्र पांडेय ने झामुमो को यहां से हराया और तब से अभी तक लगातार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
2019 के चुनाव के मद्देनजर अभी तक किसी भी पार्टी ने यहां से प्रत्याशी के नाम का पत्ता नहीं खोला है। इतना तय है कि महागठबंधन होने पर यह सीट झामुमो के खाते में रहेगी। वैसे कांग्रेस के कुछ दिग्गज भी इस सीट पर नजर गड़ाये हुए हैं। भाजपा में वर्तमान सांसद और बाघमारा विधायक के बीच टशन चल रहा है। भाजपा रवींद्र पांडेय को रिपीट करेगी, इस पर संशय कायम है। वहीं इस सीट पर भाजपा के अंदर से प्रत्यक्ष और परोक्ष दावेदारी भी होने लगी है। सबसे ज्यादा चर्चा बाघमारा विधायक ढुुल्लू महतो को लेकर है। माना जा रहा है कि केंद्र और राज्य के शीर्ष पदों पर नेताओं के पास जातीय समीकरण लगा कर ढुल्लू महतो टिकट लेने की दावेदारी कर रहे हैं। इसके लिए वह कोयलांचल क्षेत्र में टाइगर फोर्स नामक संस्था बनाकर अपनी पैठ भी बनाने में लगे हुए हैं।
लेकिन उनकी राह में सबसे बड़ा पेंच जाति को लेकर है। यह क्षेत्र महतो बहुल है और ढुल्लू वैश्य समुदाय से हैं। भाजपा की ओर से सवर्ण और खासकर ब्राह्मण समुदाय के लिए यह सीट पक्की मानी जाती है। चूंकि रवींद्र कुमार पांडेय ब्राह्मण हैं, इसीलिए भाजपा की सीट उन्हें मिलती रही है। लेकिन इस बार उनकी स्थिति पतली है। वह काफी बदनाम हुए हैं। लगातार पांच बार से गिरिडीह लोकसभा का चुनाव जीतने वाले सांसद रवींद्र कुमार पांडेय को जहां एक ओर अपनी ही पार्टी के नेताओं के विरोध का सामना कर रहे हंै, वहीं विपक्षी दलों ने इस बार एकजुट होकर गिरिडीह सीट झटकने की पूरी रणनीति तैयार कर ली है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के उम्मीदवार रवींद्र कुमार पांडेय की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। जनता में सांसद के खिलाफ आक्रोश था। लेकिन मोदी लहर में सांसद पांडेय की वैतरणी किसी तरह पार हो गयी। लेकिन उस मोदी लहर में भी झामुमो के उम्मीदवार और डुमरी विधायक जगन्नाथ महतो ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी।
जहां भाजपा के रवींद्र कुमार पांडेय ने चुनाव में कुल 3 लाख 91 हजार 905 वोट पाकर विजय हासिल की, वहीं झामुमो के जगन्नाथ महतो ने अकेले दम पर कुल 3 लाख 51 हजार 600 वोट लाकर भाजपा उम्मीदवार को नाको चने चबवा दिये थे। झामुमो के इस प्रदर्शन ने सभी राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। वहीं झाविमो के शबा अहमद ने भी 57 हजार 380 वोट लाकर संतोषजनक प्रदर्शन किया था। सांसद रवींद्र कुमार पांडेय के लिए इस बार विपक्षी गठबंधन की रणनीति के साथ-साथ पार्टी के अंदर खुद के खिलाफ असंतोष और भितरघात से निपटना भी काफी कड़ी चुनौती होगी।
पार्टी के कई बड़े नेता उनसे असंतुष्ट चल रहे हैं। इसमें कई सांसद, विधायक और पदाधिकारी शामिल हैं। बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो तो पहले ही उनके खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। सूत्रों से यह बात सामने आ रही है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के झारखंड दौरे के वक्त पार्टी के एक धड़े ने सांसद रवींद्र कुमार पांडेय की कार्यशैली और अन्य विवादों की शिकायत भी की थी। यही कारण है कि इस बार गिरिडीह लोकसभा सीट से किसी अन्य उम्मीदवार को टिकट देने की बात की बात भी सामने आ रही है।
अब ऐसे में रवींद्र पांडेय पार्टी में अपनी स्थिति और हैसियत बचाने में लग गये हैं। लेकिन गिरिडीह सीट बचा पाना उनके लिए मुश्किल ही लग रहा है। ढुल्लू और रवींद्र पांडेय में चल रहे टशन के बीच भाजपा नेता और स्वच्छ भारत अभियान और गंगा सफाई अभियान के संयोजक बिंदुभूषण दुबे पिछले दो वर्ष से लगातार इस क्षेत्र में कंपेन किये हुए हैं। स्वच्छ भारत अभियान में इन्होंने अपनी एक अलग छवि बनायी है। गिनीज बुक में इन्हें समाहित किया गया है। पद मिलने के बाद इन्होंंने स्वच्छ भारत अभियान के तहत लगभग साढे तीन सौ कार्यक्रम किये हैं और इसकी चर्चा राष्टय स्तर पर भी हो रही है।
इस अभियान को लेकरी पार्टी के राष्ट्रीय स्तर तक इन्होंने पहचान बनायी है। हालांकि भाजपा से किसे टिकट मिलेगा, यह अभी तय नहीं है, लेकिन कयास यही लग रहे हैं कि अगर ब्राह्मण से यह सीट ली जायेगी, तो किसी ब्राह्मण उम्मीदवार को ही दी जायेगी और इस हिसाब से बिंदुभूषण दुबे आशान्वित हैं। दूसरी तरफ इस बार प्रमुख विपक्षी दल झामुमो, कांग्रेस और झाविमो ने गिरिडीह लोकसभा सीट को झटकने का पूरा खाका तैयार कर लिया है। इस संबंध में तीनों दलों के शीर्ष नेताओं की कई बार की बातचीत हो चुकी है। झारखंड की 14 लोस सीटों में से 5 पर एकजुट होकर जीतनेवाले साझा उम्मीदवार के पक्ष में लड़ने की सहमति बन गयी है। इनमें गिरिडीह, रांची, राजमहल, लोहरदगा और दुमका की सीटें शामिल हैं। ऐसे में गिरिडीह सीट पर पहले से मजबूत झामुमो को झाविमो और कांग्रेस का साथ मिलने से भाजपा उम्मीदवार के लिए जीत की राह आसान नहीं होगी।