नयी दिल्ली। पाकिस्तान ने शुक्रवार शाम को भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को भारत के सुपुर्द कर दिया। लहराते तिरंगों और ढोल-नगाड़ों के बीच अभिनंदन के वतन में ‘अभिनंदन’ का स्वागत हुआ। लेकिन अभिनंदन की रिहाई से पहले ही पाकिस्तान जिनेवा समझौते का उल्लंघन कर गया।
20 साल पहले भी पाकिस्तान ने करगिल युद्ध के हीरो नचिकेता को सार्वजनिक तौर पर भारत को सौंपने की चाल चली थी, लेकिन उस वक्त वह विफल हो गया था। तब और आज की परिस्थिति में क्या अंतर है, पाक ने शांति का शिगूफा छोड़कर क्या हासिल किया और अपनी छवि को साफ दिखाने का यह प्रयास कहां टिकता है।
पाक की पहली गलती, जिसने उसके अशिष्ट प्रदर्शन को जाहिर किया
पाकिस्तान ने पकड़ते ही भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान के कुछ वीडियो जारी किये। इसमें उन्हें अपनी पहचान जाहिर करते, चाय पीते हुए और पाक के बेहतर बर्ताव की तारीफ करते हुए दिखाया गया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस कदम की आलोचना करते हुए इसे वल्गर डिस्प्ले (अशिष्ट प्रदर्शन) बताया। पाक का यह कदम सीधे तौर पर तीसरे जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन था। तीसरे जिनेवा कन्वेंशन का अनुच्छेद 13 कहता है, किसी भी युद्धबंदी के साथ हर कीमत पर मानवीय व्यवहार होना चाहिए। युद्धबंदी जब तक कैद में हो, उसके साथ किसी भी तरह का अमानवीय व्यवहार नहीं होना चाहिए। युद्धबंदी के साथ कोई भी गैरकानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। युद्धबंदी के स्वास्थ्य पर किसी भी तरह का बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए और न ही उस पर ऐसी कोई सख्ती दिखानी चाहिए, जिससे उसकी जान पर बन आए। अभिनंदन पर हुई सख्ती की गवाही तो उनके आने वाले वक्त के बयान से जाहिर होगी, लेकिन यह तो साफ है कि जिनेवा समझौते का पाक उल्लंघन कर गया।
दूसरी गलती, अभिनंदन की खून से सनी तस्वीर सार्वजनिक करना
पाकिस्तान की तरफ से अभिनंदन के खून से सने चेहरे वाली तस्वीरें साझा की गयीं। सेना के प्रवक्ता ने सीधे तौर पर अभिनंदन की तस्वीर को ट्वीट किया। इससे पहले पूछताछ वाला वीडियो जारी किया गया। ये दोनों ही चीजें सीधे तौर पर जिनेवा समझौते का उल्लंघन हैं, क्योंकि जिनेवा कन्वेंशन साफ तौर पर कहता है कि कोई भी युद्धबंदी अपमान और सार्वजनिक जिज्ञासा का विषय नहीं बनना चाहिए।
क्या जिनेवा समझौता बना अभिनंदन की रिहाई की वजह
जिनेवा कन्वेंशन में साफ कहा गया है कि जैसे ही दोनों देशों के बीच शत्रुता और तनाव कम हो, फौरन युद्धबंदी को उसके वतन को सौंप देना चाहिए। अनुच्छेद 118 में साफ बताया गया है कि दो देशों के बीच जैसे ही सक्रिय शत्रुता समाप्त हो, युद्धबंदी को फौरन, बिना देरी के उसके देश के हवाले कर देना चाहिए। चाहे तब तक दोनों देशों के बीच किसी भी तरह की शत्रुता रोकने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर हुए हों या नहीं।