रांची। लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने ही वाला है। सभी राजनीतिक दलों ने घोषणा से पहले ही ताल ठोकना शुरू कर दिया है। रांची लोकसभा सीट बीच के दो चुनाव को छोड़ दिया जाये तो लगातार लंबे समय तक भाजपा के पाले में रही। वर्ष 2004 से 2014 तक कांग्रेस पार्टी इस सीट पर काबिज रही। पिछले तीन दशक की बात करें तो लगभग 19 वर्षों तक भाजपा के रामटहल चौधरी यहां से लोकसभा गये। उन्होंने इस दौरान कांग्रेस के कई दिग्गजों को परास्त किया।
अपने समय के कद्दावर कांग्रेसी नेता केशव महतो कमलेश को रामटहल चौधरी ने दो बार और केके तिवारी को एक बार भारी अंतर से हराया था। एकीकृत बिहार के समय अंतिम बार 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के शिव प्रसाद साहू यहां से चुनाव जीते थे। इसके बाद इस सीट पर काबिज होने के लिए दो दशक तक कांग्रेस तरसती रही। वर्ष 2004 में कांग्रेस पार्टी ने सुबोधकांत सहाय पर दांव खेला। यह दांव सटीक बैठ गया। लम्बे समय के बाद जीत का स्वाद चखा। यहां यह बता देना उचित है कि वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में सुबोधकांत सहाय ने जनता दल के टिकट से जीत हासिल की थी। वह पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार में गृह राज्य मंत्री भी थे। बाद के दिनों में इन्हें यहां से सफलता नहीं मिली।
जनता दल छोड़ इन्होंने कांग्रेस का दामन थामा और वर्ष 2004 से 2014 तक सांसद रहे। दो चुनाव में सुबोधकांत सहाय ने रामटहल चौधरी को हराया जरूर, लेकिन जीत का अंतर ज्यादा नहीं था। वर्ष 2004 के चुनाव में सुबोधकांत सहाय को दो लाख 84 हजार से कुछ ज्यादा वोट मिले थे, जबकि रामटहल चौधरी को दो लाख 68 हजार 614 वोट मिले थे। जीत का अंतर महज 16 हजार का था। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी सुबोधकांत सहाय और रामटहल चौधरी के बीच ही मुकाबला था।
इस चुनाव में सुबोधकांत सहाय को तीन लाख 10 हजार 499 वोट मिले थे और रामटहल चौधरी को दो लाख 97 हजार 149 वोट। हार का अंतर मात्र 13 हजार वोट था। कह सकते हैं कि इन दोनों चुनावों में भी रामटहल का जलवा कम नहीं रहा था। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में रामटहल चौधरी ने 10 वर्ष के बाद लगभग दो लाख वोट से सुबोधकांत सहाय से यह सीट छीनी। यह सच है कि रामटहल की जीत का अंतर बहुत ज्यादा था, लेकिन यह भी सत्य है कि वर्ष 2014 के चुनाव में देश में नरेंद्र मोदी की लहर थी। उस समय अभी के हिसाब से समीकरण भी अलग था। उस समय विपक्ष में एका नहीं थी। कांग्रेस और झामुमो ने मिल कर चुनाव लड़ा था, लेकिन झाविमो अलग था। इस चुनाव में विपक्ष के महागठबंधन का समीकरण बन रहा है।
अब तक जो जानकारी है, उस हिसाब से रांची लोकसभा सीट महागठबंधन में कांग्रेस के पास रहेगी और सुबोधकांत सहाय पर कांग्रेस भरोसा करेगी यह भी तय है। पिछले चुनाव में आजसू के सुदेश महतो ने भी भाग्य आजमाया था और उन्हें एक लाख 42 हजार वोट मिले थे। उस समय यह चर्चा आम थी कि सुदेश महतो ने रामटहल चौधरी के वोट में सेंधमारी की नहीं तो भाजपा की जीत का अंतर तीन लाख से ज्यादा रहता। झाविमो ने पिछले चुनाव में अमिताभ चौधरी को मैदान में उतारा था और उन्हें 67 हजार वोट मिले थे। तृणमूल कांग्रेस से पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने चुनाव लड़ा था और उन्हें भी 46 हजार वोट मिले थे। महागठबंधन होने पर पिछले चुनाव की तरह भाजपा के लिए राह आसान नहीं होगी।
रांची लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र है। इचागढ़ और सिल्ली विधानसभा क्षेत्र महतो बहुल क्षेत्र है। पिछले चुनाव परिणाम में देखा गया है कि इन दोनों सीटों पर रामटहल चौधरी मजबूत रहे हैं। हटिया, रांची, कांके और खिजरी विधानसभा क्षेत्र में शहरी इलाका ज्यादा है। शहरी इलाके में भाजपा अन्य दलों की तुलना में मजबूत है। लेकिन वर्ष 2004 और 2009 के चुनाव में सुबोधकांत सहाय को जीत दिलाने में इचागढ़ और हटिया विधानसभा क्षेत्र का योगदान महत्वपूर्ण रहा था। इसके पीछे मुख्य वजह सुबोधकांत सहाय का अपना व्यक्तित्व था। यहां लोगों ने कांग्रेस पार्टी को नहीं सुबोधकांत सहाय को वोट दिया था। रांची लोकसभा में एचइसी इलाके का एक बड़ा मतदाता वर्ग आता है। यह इलाका दो विधानसभा क्षेत्र हटिया और खिजरी के अंतर्गत है।
देखा जाये तो वर्तमान में रांची लोकसभा के अंतर्गत आनेवाली छह विधानसभा में पांच पर भाजपा का कब्जा है और एक झामुमो के कब्जे में है। आंकड़ों के हिसाब से भाजपा मजबूत है, इसमें कोई दो राय नहीं है। सांगठनिक रूप से भी देखा जाये तो भाजपा अन्य दलों की तुलना में मजबूत है। इस बात का आभास कांग्रेस को है और यही वजह है कि यहां पिछले कई महीनों से कांग्रेस पार्टी लोगों से संपर्क साधने में जुटी हुई है। इस बार खास बात यह है कि झारखंड में कांग्रेस ने 2014 की तुलना में अपने संगठन में कई बदलाव किये हैं। महानगर अध्यक्ष से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक में पार्टी ने बदलाव किया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया था।
इस बात को कांग्रेस ज्यादा अच्छे से नहीं समझ सकी थी, लेकिन 2014 में मिली हार के बाद कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर सक्रियता दिखायी और लगभग पार्टी के सभी नेताओं ने फेसबुक और ट्विटर पर अकाउंट बनाये। इन नेताओं में सुबोधकांत का नाम भी आता है। दोनों प्लेटफार्म पर उनका अकाउंट है और वे इसके माध्यम से केंद्र और राज्य सरकार पर निशाना साधते हैं। झारखंड कांग्रेस ने भी अपना अकाउंट इन दोनों प्लेटफार्म पर बनाया है, जिसके माध्यम से पार्टी अपने कार्यों को जनता तक पहुंचाती है। सोशल मीडिया के हिसाब से देखा जाये, तो रांची सीट पर रामटहल चौधरी और भाजपा भी कांग्रेस और सुबोधकांत से पीछे है। यूं तो कांग्रेस पार्टी में कई स्टार प्रचारक हैं, लेकिन इनमें एक नया नाम इस बार जुड़ा है। जी हां, हम यहां बात कर रहे हैं प्रियंका गांधी वाड्रा की, जिन्हें पार्टी ने महासचिव का कार्यभार सौंपा है। उनके बारे में कांग्रेसी कह रहे हैं कि उनकी छवि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलती है। ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि प्रियंका इस बार झारखंड के मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने के लिए अपील करने पहुंच सकती हैं।
इधर भाजपा को इस बार भी मोदी मैजिक पर भरोसा है। यही वजह है कि भाजपा लगातार प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम हो या राष्ट्रीय स्तर पर शुरू की जानेवाली योजनाएं, भाजपा बूथ स्तर पर इसके लाइव प्रसारण की व्यवस्था कराती रही है। पिछले तीन वर्षों से भाजपा का मुख्य फोकस बूथ मजबूती पर रहा है। राजधानी के सभी मंडलों और बूथ कमिटी का गठन कर लिया गया है। भाजपा की तैयारी के बारे में मंत्री सीपी सिंह कहते हैं कि भाजपा चुनाव के लिए हमेशा तैयार रहती है। उन्होंने कहा कि गठबंधन हो या महागठबंधन भाजपा इसकी चिंता नहीं करती। भाजपा देश की जनता के लिए राजनीति करती है और प्रधानमंत्री के विकास कार्यों पर जनता को भरोसा है। जनता प्रधानमंत्री के साथ है और इस बार भी रांची से भाजपा पिछली बार से ज्यादा अंतर से चुनाव जीतेगी। वहीं कांग्रेस के मीडिया प्रभारी राजेश ठाकुर का कहना है कि रांची में कांग्रेस काफी मजबूत है। हमारा संगठन किसी भी दल से जयादा मजबूत है। हमारे कार्यकर्ता सेवा भाव से पार्टी के लिए काम करते हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले चुनाव में देश का मिजाज अलग था लेकिन इस बार जनता का मिजाज अलग है। इस बार भाजपा कहीं नहीं है और रांची सीट कांग्रेस जीतेगी, इसमें कोई इफ बट नहीं है। बहरहाल, रांची लोकसभा में किसके सर सजता है ताज और किस पर गिरती है गाज यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन दोनों ही दलों ने चुनाव को लेकर तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा की तरफ से लगातार केंद्रीय नेताओं का रांची में कार्यक्रम हो रहा है। इस बार कांग्रेस पार्टी ने कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी की महारैली से चुनाव प्रचार का बिगुल फूंका है। उनके आने के बाद निश्चित रूप से कांग्रेसियों में उत्साह जगा है। इधर संभव है कि भाजपा यहां प्रधानमंत्री को बुलाये। कुल मिला कर चुनाव दिलचस्प होगा। इतना जरूर है कि इस बार रामटहल चौधरी को पार्टी के साथ-साथ खुद पसीना बहाना पड़ेगा। उन्हें तन-मन के साथ-साथ धन भी लगाना होगा।