• इतिहास में सिमटने के लिए और एक कदम चली कांग्रेस
  • आप के विस्तार ने राजनीतिक विकल्प का श्रीगणेश किया

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गये हैं और भाजपा ने इसमें शानदार जीत हासिल की है। उसने न केवल यूपी में, बल्कि उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर की सत्ता में भी वापसी की है, जबकि देश के राजनीतिक फलक पर करीब साढ़े छह दशक तक एकछत्र राज करनेवाली कांग्रेस इतिहास बनने की दिशा में और एक कदम आगे बढ़ गयी है। 2024 के आम चुनाव से पहले का सेमीफाइनल बताये जा रहे इस चुनाव में देश की 20 फीसदी आबादी ने हिस्सा लिया था और उसके जनादेश का यही मतलब है कि भारत के सियासी रंगमंच पर ब्रांड मोदी का मैजिक पूरी तरह बरकरार है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में फिलहाल इसका कोई विकल्प नहीं है। इस चुनाव ने मोदी सरकार की उन तमाम नीतियों और कार्यक्रमों पर ऐसी मुहर लगायी है, जो अब शायद कभी फीकी नहीं पड़ेगी। यूपी की सत्ता में वापसी का इतिहास रच कर नरेंद्र मोदी ने साबित कर दिया है कि वह भारतीय राजनीति के सबसे चमकदार ही नहीं, सबसे प्रभावशाली जन नेता हैं, जिनका चेहरा तमाम आलोचनाओं के बावजूद आज भी पूरी तरह बेदाग है। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के राजनीतिक संदेश का विश्लेषण करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की खास रिपोर्ट।

2022 के विधानसभा चुनाव परिणाम बताते हैं कि उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड की सत्ता में भाजपा की शानदार वापसी हो रही है, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) की सुनामी ने पंजाब में कांग्रेस को जड़ से उखाड़ फेंका है। मणिपुर और गोवा में भी भाजपा को दोबारा सत्ता हासिल हो गयी है।

ये चुनाव परिणाम एक वैश्विक महामारी, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गयी और लोगों को भारी आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, साथ ही साल भर चलनेवाले किसानों के आंदोलन की पृष्ठभूमि में आये हैं और इनका लब्बो-लुआब यही है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में ‘ब्रांड मोदी’ का मैजिक आज भी बरकरार है। यह बात सच है कि जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए, उनमें से चार में भाजपा सत्ता में थी और उसकी वापसी हो रही है, फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही पार्टी का असल चेहरा हैं, यह अब निर्विवाद सत्य है। आज से पहले भाजपा में उनके जैसा नेता न हुआ और शायद होगा भी नहीं। यह जीत विधानसभा चुनावों पर उनके प्रभाव के बारे में किसी शक-सुबहे को भी दूर करती है। पीएम मोदी के अलावा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इतिहास रच दिया है और पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद भी सत्ता बरकरार रखनेवाले वह राज्य के एकमात्र मुख्यमंत्री बन गये हैं। साल 1985 के बाद यह पहला मौका है, जब किसी चुनाव में यूपी में सरकार दोबारा चुन कर सत्ता में आयी है। ये परिणाम भाजपा में एक नये जन नेता के रूप में योगी आदित्यनाथ के उदय का भी संकेत देते हैं, जिसका राष्ट्रीय स्तर पर सत्ताधारी दल में सत्ता की सीढ़ीवाले पदानुक्रम पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। एक तरह से यह योगी को मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बाद पार्टी में नंबर तीन की स्थिति में पहुंचा देता है। इसके अलावा विपक्ष की ओर से देश में महंगाई और बेरोजगारी को भी बड़ा मुद्दा बनाया गया था। एक तरफ पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन को मुद्दा बताया जा रहा था, तो वहीं महामारी की भी चर्चा थी। लेकिन ये सभी मुद्दे नहीं चल पाये।

उत्तराखंड में भाजपा की जीत पिछले साल चार महीने की अवधि में दो सीएम बदलने के पार्टी नेतृत्व के फैसले की पुष्टि करती है। 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों की तरह ही लोगों ने पीएम मोदी ने नाम पर ही वोट दिया। त्रिवेंद्र सिंह रावत के चार साल के कार्यकाल के बाद उत्तराखंड में सत्ता विरोधी लहर उठ रही थी, जिसकी वजह से मोदी-शाह की जोड़ी को चार महीने की अवधि में मुख्यमंत्री के रूप में दो त्वरित बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। 2000 में उत्तराखंड के गठन के बाद यह पहला मौका है, जब किसी पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल हुई है। यह देखते हुए कि योगी को छोड़ कर भाजपा के भी अन्य मुख्यमंत्री जन नेता नहीं थे, यह फैसला ‘ब्रांड मोदी’ के जोरदार समर्थन के रूप में माना जायेगा। विपक्षी नेताओं और कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना था कि मोदी मैजिक कमजोर हो रहा है, लेकिन नतीजों ने ऐसे तमाम दावों को गलत साबित कर दिया है।

इन चुनावों में भाजपा की जीत का मुख्य कारण उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड समेत सभी राज्यों में भाजपा की ओर से मुफ्त राशन और मकान दिया जाना रहा। पीएम आवास योजना, राशन स्कीम और उज्ज्वला जैसी तमाम योजनाओं का भाजपा ने जम कर प्रचार किया था। ये योजनाएं केंद्र सरकार की ही रही हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि केंद्र सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं ने काम किया और उसका असर नतीजे के तौर पर दिख रहा है।
अब बात पंजाब की। पंजाब में आप की जीत का भी राष्ट्रीय राजनीति पर महत्वपूर्ण असर पड़ेगा। आप अब देश की एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी बन गयी है, जो एक से अधिक राज्यों, दिल्ली और पंजाब, में सरकार का नेतृत्व करेगी। इस राज्य के आप के लिए अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को पूरा हेतु लांचपैड बनने की संभावना है। कांग्रेस के प्रदर्शन में लगातार आती गिरावट के साथ पंजाब के चुनाव परिणाम आप को राष्ट्रीय स्तर पर खुद को भाजपा के विकल्प के रूप में पेश करनेवाली स्थिति में पहुंचा सकते हैं। यहां से आप का आगे होनेवाला उदय कांग्रेस की कीमत पर ही होने की संभावना है। केजरीवाल की नजर अब गुजरात पर होगी, जहां कांग्रेस 1995 के बाद से कभी नहीं जीती है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस साल के अंत में चुनाव होंगे और आप से उम्मीद की जाती है कि वह पंजाब में मिली जीत को भुनाने की कोशिश करेगी और इन दोनों राज्यों से शुरूआत करके राजनीतिक गति पकड़ेगी।

कांग्रेस का पराभव
अब एक नजर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की, जिसके हाथ से पंजाब की सत्ता चली गयी है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश भर में भाजपा की लहर के बीच कांग्रेस ने जो राज्य बचाये रखे थे, उनमें से एक मजबूत गढ़ पंजाब था, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलग हो जाने का कांग्रेस को यहां साफ तौर पर नुकसान हुआ है। यहां कांग्रेस का प्रदर्शन 1977 में आपातकाल के बाद हुए विधानसभा चुनाव से भी खराब रहा है। तब कांग्रेस 17 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। वहीं, 1984 में सिख विरोधी दंगों के बाद 1985 में जब राज्य में विधानसभा चुनाव हुए, तब भी कांग्रेस ने 32 सीटें जीती थी। 1997 में उसका प्रदर्शन सबसे खराब रहा था, जब पार्टी ने 14 सीटें जीती थीं। पंजाब में 2017 में हुए चुनाव में जनता ने कांग्रेस को सिर आंखों पर बिठाते हुए 10 साल बाद फिर सत्ता सौंपी थी। 117 सीटों में से पार्टी को 77 सीटें मिली थीं, जबकि उसकी सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी को 20 सीटें ही मिली थीं। हालांकि, ठीक पांच साल बाद आंकड़े बिल्कुल उलट हैं। पंजाब में शर्मनाक पराजय के साथ कांग्रेस इतिहास के पन्नों में सिमटने की दिशा में और एक कदम आगे बढ़ गयी है। कभी देश के सियासी फलक पर एकछत्र शासन करनेवाली कांग्रेस के पास अब सिर्फ दो राज्य, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ही बचे हैं। तीन राज्यों में उसके सहयोग वाले गठबंधनों की सरकार है। इनमें महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु शामिल हैं।

कुल मिला कर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का संदेश जहां ‘ब्रांड मोदी’ की अक्षुण्ण लोकप्रियता को स्थापित करता है, वहीं राजनीतिक विकल्प के रूप में आप के उदय की भी घोषणा करता है, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। इस चुनाव ने कांग्रेस को संदेश दिया है कि अब उसका समय पूरा हो रहा है।

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