काठमांडू। यदि वित्तीय अपराधों को नियंत्रित करने के लिए समय पर कानून नहीं बनाए गए और कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया, तो नेपाल का ‘ग्रे लिस्ट’ (नकारात्मक सूची) में होना लगभग तय है। मनी लॉन्ड्रिंग पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के तहत एशिया पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) ने नेपाल को इस सूची में डालने के लिए एक रिपोर्ट दी है।
ऐसी संभावना है कि विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक आदि ऋण और वित्तीय सहायता को नियंत्रित करेंगे, और एफएटीएफ की “ग्रे लिस्ट” में शामिल किसी भी देश को अनुदान और सहायता बंद कर देंगे। उसके बाद भी यदि सुधार नहीं होता है तो देश को काली सूची में डाल दिया जाएगा और देश वैश्विक प्रतिबंध का शिकार हो जाएगा।
काली सूची में डाले गए देशों से अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग लेनदेन को नियंत्रित करना और सत्यापित करना मुश्किल है। जानकारों का कहना है कि ऐसी स्थिति में विदेशी निवेश हतोत्साहित होगा, अंतरराष्ट्रीय जगत में देश की आर्थिक साख घटेगी और विदेशों में सरकार और नागरिकों की संपत्ति खतरे में पड़ जाएगी।
एपीजी ने एक प्रारंभिक रिपोर्ट दी है, जिसमें कहा गया है कि नेपाल को ‘ग्रे लिस्ट’ में रखा जाना चाहिए, क्योंकि उसने मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम के संबंध में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुसार काम नहीं किया है। एपीजी की प्रारंभिक रिपोर्ट भी नेपाल सरकार को मिल गई है। रिपोर्ट के संबंध में नेपाल अगले सोमवार तक जवाब भेजेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘मनी लॉन्ड्रिंग जांच से जुड़ा कानून अभी भी संसद में लंबित है।’ नेपाल इस स्थिति में इसलिए आया, क्योंकि पिछली नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया था।
एपीजी की रिपोर्ट के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री विष्णु पौडेल ने वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से चर्चा की थी। अधिकारियों का जवाब था, ‘नेपाल कानून बनाकर वर्ष 2014 में ग्रे लिस्ट में होने से बचा लेकिन अभी तक कानून नहीं बना है तो अब हमारे पास इसका जवाब नहीं है।