कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी नये लुक में कैंब्रिज पहुंचे। वह सेट की हुई दाढ़ी, कोट और टाई में नजर आये। सात सितंबर 2022 में शुरू हुई भारत जोड़ो यात्रा के करीब छह महीने बाद राहुल का लुक बदला हुआ नजर आया। लेकिन उनके रवैये में कोई बदलाव नहीं नजर आ रहा है। कहा जा सकता है कि बदले-बदले मेरे सरकार नजर आते हैं, घर की बर्बादी के आसार नजर आते हैं। राहुल गांधी ने अपने सात दिन के ब्रिटेन दौरे की शुरूआत कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में हमेशा की तरह नफरत भरे स्पीच से की। राहुल का संबोधन ‘लर्निंग टू लिसन’ यानी सुनने की कला पर फोकस था, लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा, उसका निचोड़ केवल यही था कि भारत में कुछ भी ठीक नहीं है। राहुल का संबोधन भारत जोड़ो यात्रा से शुरू हुआ और कमोबेश उसी के इर्द-गिर्द रहा, यानी जो सियासी पटकथा मई 2022 में लंदन में लिखी गयी थी, राहुल ने उसे ही आगे बढ़ाया। कांग्रेस के युवराज के भाषण के केंद्र में हमेशा की तरह नरेंद्र मोदी का विरोध, भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं की आलोचना और चीन-पाकिस्तान के प्रति उनके नरम रवैये तक सीमित रहा। अपने संबोधन के क्रम में राहुल गांधी यह भूल गये कि वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने कैंब्रिज में भारत और भारतीय व्यवस्था के प्रति जो नफरती रवैया अपनाया, उससे आम लोग ही नहीं, कांग्रेसी भी भौंचक्के हैं। उन्हें अब अपने नेता का बचाव करने का रास्ता भी नहीं सूझ रहा है। आखिर राहुल गांधी विदेशों में बार-बार भारत विरोधी रवैया क्यों अपनाते हैं और इसका उनकी पार्टी पर क्या असर पड़ रहा है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
अपनी बहुप्रचारित भारत जोड़ो यात्रा को खत्म करने के बाद पहली बार कांग्रेस के युवराज बदले लुक के साथ ब्रिटेन के दौरे पर हैं। उनके दौरे की शुरूआत कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में उनके संबोधन से हुई। उन्हें यूनिवर्सिटी में ‘लर्निंग टू लिसन’ विषय पर बोलने के लिए बुलाया गया था, लेकिन उन्होंने केवल भारत और भारतीय व्यवस्था के विरोध तक ही खुद को केंद्रित रखा। अपने संबोधन के क्रम में राहुल यह भूल गये कि वह यहां दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उनके संबोधन से कहीं भी यह परिलक्षित नहीं हुआ। राहुल यह भी भूल गये कि वह जो कुछ कह रहे हैं, उसका अधिकार उन्हें उसी देश के संविधान ने दिया है, जिसकी सर्वोच्च पंचायत के वह सदस्य हैं। उनके संबोधन से कहीं नहीं लगता कि वह भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों को समझते हैं, बल्कि उनके संबोधन से नफरत की ही बू आती है। आज जहां भारत सनातन संस्कृति के गौरव को फिर से प्रतिष्ठित कर लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूती दे रहा है, वहीं राहुल कहते हैं, हम एक ऐसी दुनिया को बनते हुए नहीं देख सकते, जो लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़ी हुई न हो। इसलिए इस बारे में हमें नयी सोच की जरूरत है। वहीं राहुल गांधी ने अपने पुराने दोस्त चीन की दिल खोलकर तारीफ करते हुए कहा कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने सद्भावना को बढ़ावा दिया।
भारत का विरोध करते-करते राहुल गांधी चीन पर पहुंच गये। चीन की चर्चा करते ही उनका प्रेम छलक पड़ा। उन्होंने कहा कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सद्भावना हर भारतीय और दुनिया के लोग भी जानते हैं। 1962 की जंग में हिंदी-चीनी भाई-भाई बोलकर पीठ में छुरा घोंपने वाले चीन को राहुल गांधी ने सद्भावना का दूत बता दिया। यह कितनी हास्यास्पद बात है और अपरिपक्व भी।
राहुल के संबोधन का दूसरा भाग द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से विशेष रूप से सोवियत संघ के 1991 के विघटन के बाद से अमेरिका और चीन के दो अलग-अलग दृष्टिकोण पर केंद्रित रहा। राहुल ने कहा कि विनिर्माण से संबंधित नौकरियों को समाप्त करने के अलावा अमेरिका ने 11 सितंबर, 2001 के आतंकी हमलों के बाद अपने दरवाजे कम खोले, जबकि चीन ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के इर्द-गिर्द के संगठनों के जरिये सद्भाव को बढ़ावा दिया है।
दरअसल, राहुल जब विदेश में चीन की तारीफों के पुल बांधते हैं, तो समझना चाहिए कि वह चीन द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन को दिये गये फंड का कर्ज चुका रहे हैं। केंद्र सरकार ने राजीव गांधी फाउंडेशन का एफसीआरए लाइसेंस वर्ष 2020 में रद्द कर दिया था। राजीव गांधी फाउंडेशन गांधी परिवार से जुड़ा एक एनजीओ है। संगठन पर विदेशी फंडिंग कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगा है। यहां सवाल यह उठता है कि जो चीन हमारे देश की भूमि पर बुरी नजर रखता है, आखिर उससे राजीव गांधी फाउंडेशन को फंडिंग लेने की मजबूरी क्या है। चीन ने फंडिंग क्यों की होगी, इसकी तह में जायें, तो पता चलता है कि चीन ने फंडिंग इसलिए की थी, ताकि कांग्रेस चीन के रास्ते में बिछे कांटे हटा दे और चीन के लिए भारत में अपना धंधा चमकाना आसान हो जाये। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस धंधे की आड़ में चीन ने अपने कौन से जहरीले इरादे कामयाब किये और उसके लिए उसने कब कितनी रिश्वत किसको खिलायी, ये सब बातें जांच का विषय हैं। अभी न जाने ऐसे कितने और गड़े मुर्दे उखड़ने बाकी हैं।
राहुल गांधी ने लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए नयी सोच का आह्वान किया। उन्होंने दुनिया में लोकतांत्रिक माहौल को बढ़ावा देने के लिए एक ऐसी नयी सोच का आह्वान किया, जिसे थोपा नहीं जाये। हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों में विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट का उल्लेख करते हुए राहुल ने कहा कि इस बदलाव से बड़े पैमाने पर असमानता और आक्रोश सामने आया है, जिस पर तत्काल ध्यान देने और संवाद की जरूरत है। ऐसा बोलते हुए राहुल भूल गये कि वह उस लोकतांत्रिक देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिसने दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया।
राहुल गांधी के इस मेकओवर की शुरूआत 2022 में ही हो गयी थी। लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देजर ‘राहुल गांधी पीएम उम्मीदवार’ डॉक्यूमेंट्री की पटकथा मई 2022 में लंदन में लिखी गयी। उस वक्त राहुल लंदन में एक कांफ्रेंस ‘आइडिया फॉर इंडिया’ में हिस्सा लेने पहुंचे थे। वहां लिखी गयी पटकथा के मुताबिक ही राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी, जिसमें तमाम लेफ्ट, लिबरल और देश विरोधी ताकतें, देश को बांटने की बात करने वाले, सनातन धर्म को नीचा दिखाने वाले और पीएम मोदी से नफरत करने वाले लोग शामिल किये गये। उस समय राहुल ने कहा था कि देश में धुव्रीकरण बढ़ता जा रहा है, बेरोजगारी अपने चरम पर है, महंगाई बढ़ती जा रही है। भाजपा ने देश में हर तरफ केरोसिन छिड़क दिया है। बस एक चिंगारी से हम सब एक बड़ी समस्या के बीच होंगे। यहां समझने की बात है कि राहुल को केरोसिन छिड़कने की बात कहनी थी, तो उन्होंने इसमें भाजपा को लपेट लिया।
आम तौर पर देखा जाता है कि जब कोई विदेशी नेता भारत आता है, तो वह अपने देश की बुराई नहीं करता है। कोई विदेशी नेता भारत आकर अपने देश की अंदरूनी बातों पर कभी चर्चा नहीं करता, जबकि राहुल गांधी दुनिया में एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो देश हो या विदेश, अपने देश की प्रगति की बात न कर हमेशा भारत को कमजोर दिखाने की कोशिश करते हैं। लंदन में राहुल ने यही किया था। यहां तक कि उन्होंने भारत की तुलना यूक्रेन से कर दी थी।
राहुल गांधी के संबोधन के बाद से कांग्रेसी भी भौंचक्के हैं। उन्हें पता चल गया है कि भारत जोड़ो यात्रा से मिली लोकप्रियता इस संबोधन के बाद खत्म हो गयी है। इसका नुकसान कांग्रेस को उठाना होगा। इसलिए कांग्रेसी ही नहीं, पूरा देश राहुल गांधी की इस अपरिपक्वता पर अचरज व्यक्त कर रहा है।