विशेष
-लोकसभा के बाद और विधानसभा चुनावों में पूरी तरह बदल गयी थी तस्वीर
-अपने इस गढ़ को बचाने के लिए भाजपा को उठाना पड़ेगा कुछ ठोस कदम
संसदीय लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हो गयी है। झारखंड की 14 संसदीय सीटों में से एक खूंटी में 13 मई को मतदान होना है। खूंटी लोकसभा सीट का इतिहास शुरू से काफी रोमांचक रहा है और इस बार इस सीट के रोमांच में और बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद जतायी जा रही है। इस लोकसभा चुनाव के दौरान खूंटी काफी रोमांचक चुनावी रणक्षेत्र के रूप में तब्दील हो सकता है। भाजपा ने यहां से अर्जुन मुंडा को लगातार दूसरी बार मैदान में उतारा है। उनके प्रतिद्वंद्वी कौन होंगे, यह अभी तय नहीं है, लेकिन पिछली बार जिस तरह कांग्रेस के कालीचरण मुंडा ने उन्हें नजदीकी मुकाबले में फंसाया था, उससे यही लगता है कि इस बार कांग्रेस फिर से उन पर दांव चलायेगी। हालांकि एक नाम दयामनी बारला का भी उभरा है। अर्जुन मुंडा केंद्रीय मंत्री हैं और झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। हाल के दिनों में उनके सियासी कद में वृद्धि भी हुई है। हाल के दिनों में उन्होंने खूंटी को बहुत कुछ दिया है। खूंटी को भाजपा का गढ़ माना जाता है, इसलिए ऊपरी तौर पर तो कहा जा सकता है कि भाजपा के लिए मुकाबला आसान रहेगा, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा को खूंटी के छह विधानसभा क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव के मुकाबले जो 1.13 लाख वोट कम मिले थे, उन्हें फिर से अपने पाले में करना अर्जुन मुंडा के लिए चुनौती है। अर्जुन मुंडा फिलहाल लाभ की स्थिति में हैं, क्योंकि उनके पास इस कमी को पाटने का भरपूर मौका है और यह देखना दिलचस्प होगा कि वह इसमें कितने सफल हो पाते हैं। खूंटी लोकसभा क्षेत्र के तमाम समीकरणों के साथ पिछले चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यह एक वीआइपी सीट है। हाल ही में अर्जुन मुंडा के कद में प्रधानमंत्री ने बड़ा ओहदा जोड़ा है, जिसकी छतरी में अर्जुन मुंडा ने किसानों को भी बहुत कुछ दिया है। सड़कों की जाल भी वह बिछा रहे हैं। भाजपा को उम्मीद है कि इसका लाभ उन्हें निश्चित रूप से मिलेगा। क्या है खूंटी संसदीय सीट का परिदृश्य और क्या कहते हैं आंकड़े, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित पांच संसदीय सीटों में से एक खूंटी इस बार भी रोमांचक चुनावी संघर्ष का गवाह बनने के लिए तैयार हो रहा है। यहां 13 मई को मतदान होगा। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को लगातार दूसरी बार यहां से प्रत्याशी बनाया है। पहले जनजातीय मामलों के मंत्री का कार्यभार संभालने के बाद अब वह कृषि मंत्री भी हैं। इस लिहाज से झारखंड की वीआइपी सीटों में खूंटी को गिना जा सकता है।
खूंटी जिला अक्सर सुर्खियों में रहता है। संयुक्त बिहार में इसे पहला अनुमंडल बनाया गया था। मुंडा बहुल इस जिला में बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के विरुद्ध उलगुलान किया था। वर्ष 1890 से लगभग 10 वर्ष तक चले बिरसा आंदोलन का प्रमुख केंद्र खूंटी ही था। कोयलकारो बांध का विरोध भी इसी इलाके में हुआ था। झारखंड गठन के बाद भी इलाके में जनांदोलन होते रहे। मित्तल कंपनी के स्टील प्लांट और सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ हुए आंदोलनों के लिए भी खूंटी जाना जाता है। हॉकी के धुरंधर मारांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की जनस्थली भी खूंटी ही रही है।
खूंटी लोकसभा सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर 2009 से लगातार भाजपा जीत रही है। हालांकि 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने उसे कड़ी टक्कर दी थी। उस चुनाव में भाजपा के अर्जुन मुंडा ने बेहद नजदीकी मुकाबले में 1435 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी।
लोकसभा और विधानसभा चुनावों का आंकड़ा
खूंटी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत छह विधानसभा सीटें हैं। इनमें खूंटी, तोरपा, तमाड़, सिमडेगा, कोलेबिरा और खरसावां शामिल हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को खूंटी से 51410 वोट मिले थे, जबकि तोरपा से 43964, तमाड़ से 86352, सिमडेगा से 66122, कोलेबिरा से 44866 और खरसावां से 88852 वोट मिले थे। इस तरह लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुल 381566 वोट मिले थे। उसी साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को खूंटी से लगभग आठ हजार वोट लोकसभा की बनिस्बत ज्यादा वोट मिले। उसे खूंटी से विधानसभा चुनाव में 59198 वोट मिले। लेकिन सिमडेगा से 60366 वोट, तोरपा मेें 43482, तमाड़ में 18082, कोलेबिरा से 36236 और खरसावां से 50546 वोट, मिले, यानी इन छह विधानसभा क्षेत्रों में वह कुल 267910 वोट ही ला सकी। इसमें से दो सीट, खूंटी और तोरपा विधानसभा सीट जीतने में वह कामयाब रही थी। विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को तमाड़ में हुआ। लोकसभा चुनाव में भाजपा तमाड़ से लगभग 43 हजार वोटों से आगे थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को सिर्फ 18 हजार वोट ही हासिल हुए। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा के खाते में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित जो दो सीटें आयी थीं, वे खूंटी से ही थीं। इस तरह साफ है कि लोकसभा चुनाव के मुकाबले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 1.13 लाख वोट कम मिले थे। जाहिर है अर्जुन मुंडा इस कमी को हर हाल में पाटना चाहेंगे।
खूंटी का सियासी इतिहास
खूंटी सीट पर भाजपा ने साल 1989 के लोकसभा चुनाव में पहली बार अपना खाता खोला था। उस चुनाव में कड़िया मुंडा सांसद चुने गये थे। बाद में कड़िया मुंडा 1991, 1996, 1998 और 1999 में लगातार पांच बार यहां से सांसद बने। इसके बाद वह 2009 और 2014 में भी भाजपा के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। साल 2004 में कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा ने खूंटी से जीत दर्ज करने में कामयाबी हासिल की थी। वहीं 1962 और 1967 में झारखंड पार्टी के जयपाल सिंह मुंडा और 1971 और 1980 में एनइ होरो यहां से सांसद बने थे। 1977 में कड़िया मुंडा जनता पार्टी के टिकट पर भी लोकसभा पहुंचे थे। 1984 में यह सीट कांग्रेस के साइमन तिग्गा के हिस्से में गयी थी।
खूंटी का सामाजिक ताना-बाना
खूंटी लोकसभा सीट पर मुंडा जनजातियों की बाहुल्यता है। कुछ मान्यताओं के मुताबिक खूंटी का नाम महाभारत की कुंती से भी जोड़ा जाता है। इसके अलावा इस क्षेत्र को महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाता है। यहां पर एससी समुदाय की आबादी 6.44 प्रतिशत, जबकि एसटी समुदाय की आबादी 64.85 प्रतिशत है। खूंटी का नाम पूरी दुनिया में उस समय चर्चित हुआ था, जब यहां के ग्रामीण इलाके में पत्थलगड़ी नामक आंदोलन बड़े पैमाने पर शुरू हुआ था। नक्सलियों के गढ़ में इस तरह के आंदोलन को अलगाववादी आंदोलन कहा गया और सरकार की सख्ती ने इसे दबा दिया।
क्या है इस बार का परिदृश्य
2024 लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के उम्मीदवार के नाम की घोषणा तो हो गयी है, लेकिन कांग्रेस यहां अपने उम्मीदवार के नाम को लेकर अभी तक सस्पेंस बनाये हुई है। कालीचरण मुंडा और दयामनी बारला के नामों के कयास कई दिनों से लगाये जा रहे थे, लेकिन इस बीच खूंटी लोकसभा सीट के लिए कांग्रेस की तरफ से कोलेबिरा विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी के भी नाम की चर्चा जोरों पर है। अब इन तीन नाम के चर्चे के बीच मैदान में कौन रहेगा, यह तो कांग्रेस आलाकमान ही साफ करेगा। इस बार पूर्व मंत्री एनोस एक्का ने भी अपनी झारखंड पार्टी के उम्मीदवार को खूंटी लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाने की घोषणा की है, हालांकि अभी तक उसके उम्मीदवार का नाम सामने नहीं आया है। लेकिन इस लोकसभा सीट का इतिहास बता रहा है कि अगर एनोस एक्का ने यहां से अपना उम्मीदवार उतराा, तो उससे अर्जुन मुंडा को राहत हो सकती है। वैसे इस बार भी चुनावी दंगल के समीकरण काफी रोमांचक रहेंगे।