विशेष
-इस बार पार्टी ने ओबीसी उम्मीदवारों को दी है विशेष तरजीह
-भाजपा कोटे की सात सामान्य सीटों में पांच प्रत्याशी ओबीसी के
झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से अपने कोटे की 13 सीटों पर भाजपा ने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इनमें से सात अनारक्षित सीटें हैं और इन सीटों पर जो उम्मीदवार दिये गये हैं, उससे साफ हो गया है कि झारखंड फतह के लिए भाजपा ने अपनी रणनीति को पूरी तरह बदल दिया है। भाजपा ने झारखंड की सात अनारक्षित सीटों में से पांच पर ओबीसी समुदाय का उम्मीदवार देकर राज्य की बड़ी आबादी को अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश की है। पार्टी ने इन सात में से जिन तीन सीटों पर प्रत्याशी बदला है, उन पर पिछली बार सवर्ण उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार उनमें से दो पर ओबीसी समुदाय का उम्मीदवार उतारा गया है। यह पहली बार है, जब भाजपा ने सवर्णों के मुकाबले ओबीसी उम्मीदवारों को ज्यादा तरजीह दी है। भाजपा का यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इस बार पार्टी कोई खतरा मोल लेने के पक्ष में नहीं है। इसलिए उसने अपने पांच सीटिंग सांसदों, जयंत सिन्हा (हजारीबाग), सुदर्शन भगत (लोहरदगा), सुनील सोरेन (दुमका), सुनील सिंह (चतरा) और पशुपति नाथ सिंह (धनबाद) का टिकट काट दिया है। भाजपा ने गिरिडीह सीट अपनी सहयोगी आजसू पार्टी के लिए छोड़ी है, जहां से अभी ओबीसी समुदाय के चंद्रप्रकाश चौधरी सांसद हैं। ऐसी उम्मीद है कि इस बार भी वही मैदान में उतरेंगे। यदि ऐसा हुआ, तो यह झारखंड के लिए एक किस्म का रिकॉर्ड होगा कि छह उम्मीदवार ओबीसी समुदाय से होंगे। इस फैसले के पीछे क्या है भाजपा की रणनीति और क्या होगा इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
भाजपा ने झारखंड में अपने कोटे की सभी सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है। भाजपा की सूची में जातीय समीकरण का ख्याल रखा गया है। इस सूची की सबसे खास बात यह है कि इस बार भाजपा ने ओबीसी उम्मीदवारों को तरजीह दी है और सवर्ण समुदाय की दो सबसे प्रभावशाली जातियों, राजपूत और कायस्थ का प्रतिनिधित्व शून्य कर दिया है। इसके अलावा पार्टी ने झारखंड़ में दबदबा रखनेवाली कुड़मी, बनिया और यादव जाति के वोट बैंक को साधने के लिए कई उलटफेर किये हैं। भाजपा के इस फॉर्मूले को समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से पांच सीटें अनुसूचित जनजाति और एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हंै। बाकी आठ सीटें सामान्य हैं। इनमें से भाजपा के कोटे में सात और उसकी सहयोगी आजसू पार्टी के कोटे में एक सीट है।
क्या है भाजपा की रणनीति
उम्मीदवारों की सूची को जातीय नजरिये से देखने पर साफ हो जाता है कि भाजपा ने इस बार सवर्णों के मुकाबले ओबीसी पर विशेष फोकस किया है। पार्टी ने अपने कोटे की सात सीटों के जरिये जातीय समीकरण के साथ ओबीसी समुदाय को साधने की कोशिश की है। पार्टी ने पांच सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि बाकी दो सीटों में से एक ब्राह्मण को और एक भूमिहार को दी गयी है। पांच ओबीसी उम्मीदवारों में से दो सीट पर कुड़मी, दो पर बनिया और एक पर यादव उम्मीदवार उतारे गये हैं। यही नहीं पार्टी ने अपने पांच सीटिंग (हजारीबाग, धनबाद, चतरा, दुमका और लोहरदगा) सांसदों का टिकट काट दिया है। इनमें से हजारीबाग, धनबाद और चतरा में पिछली बार सवर्ण प्रत्याशी थे, जबकि इस बार केवल चतरा में सवर्ण को टिकट दिया गया है।
भाजपा प्रत्याशियों की सूची में सबसे चौंकानेवाला नाम कालीचरण सिंह का है। कालीचरण सिंह ऐसे पहले प्रत्याशी हैं, जो चतरा के ही मूल निवासी हैं। वह प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष भी रहे हैं। पेशे से शिक्षक रहे हैं और बड़े पत्थर कारोबारी हैं। वह भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं। इस सीट पर अलग-अलग पार्टियां बाहरी प्रत्याशियों को उम्मीदवार बनाती रही हैं। कालीचरण सिंह को टिकट देकर भाजपा ने संदेश देने की कोशिश की है कि वह स्थानीयों को भी तरजीह देती है।
2019 में अगड़ी जातियों का था दबदबा
2019 के लोकसभा चुनाव में आठ अनारक्षित सीटों में से सात सीट पर लड़ने वाली भाजपा ने हजारीबाग में कायस्थ समाज के जयंत सिन्हा, धनबाद में राजपूत समाज के पीएन सिंह, चतरा में राजपूत समाज के सुनील कुमार सिंह, कोडरमा में यादव समाज की अन्नापूर्णा देवी, जमशदेपुर में कुड़मी समाज के विद्युत वरण महतो, गोड्डा में ब्राह्मण समाज के निशिकांत दुबे और रांची में संजय सेठ को टिकट दिया था और सभी ने जीत भी दर्ज की थी। भाजपा ने जिन छह लोकसभा क्षेत्र में पिछले दो चुनावों में अपने प्रत्याशी बदले हैं, उनमें से चार सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। रांची में पिछले चुनाव में रामटहल चौधरी का टिकट काट कर संजय सेठ को उम्मीदवार बनाया गया था। इस सीट पर पहले भी पिछड़ी जाति के उम्मीदवार थे और बदलाव के बाद भी उसी वर्ग के प्रत्याशी को टिकट दिया गया।
अनुमानित प्रतिशत के हिसाब से हिस्सेदारी
2019 में भाजपा कोटे की सात अनारक्षित लोकसभा सीटों में से चार (हजारीबाग, धनबाद, चतरा और गोड्डा) पर अगड़ी जाति के उम्मीदवार जीते थे। इस लिहाज से भाजपा ने करीब 53 प्रतिशत भागीदारी अगड़ी जातियों को दी थी। लेकिन आजसू पार्टी की गिरिडीह सीट को जोड़ कर देखा जाये, तो एनडीए के लिहाज से आधी भागीदारी अगड़ी जाति को मिली थी। लेकिन इस बार एनडीए की कुल आठ सीटों में सिर्फ दो सीटें अगड़ी जाति के खाते में गयी हैं। प्रतिशत के लिहाज से 25 प्रतिशत भागीदारी अगड़ी जाति को और पिछड़ी जाति को 75 प्रतिशत भागीदारी दी गयी है।
झारखंड में जातियों का अनुमानित प्रतिशत
झारखंड में अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 26 प्रतिशत और अनुसूचित जाति की आबादी करीब 12 प्रतिशत है। अन्य जातियों की आबादी अनुमान के आधार पर ही निकाली जाती है। वैसे ओबीसी की राजनीति करने वाले संगठनों का दावा है कि झारखंड में उनकी आबादी 50 प्रतिशत से ज्यादा है। अनुमान के मुताबिक पिछड़ी जातियों में सबसे ज्यादा कुड़मी समाज की आबादी 16 प्रतिशत, यादव की 14 प्रतिशत और बनिया, साहू, तेली समाज की 22 प्रतिशत है। झारखंड में सामान्य वर्ग की अनुमानित आबादी 16 प्रतिशत है, जिसमें ब्राह्मणों की आबादी पांच फीसदी मानी जाती है। शेष 11 प्रतिशत में राजपूत, भूमिहार और कायस्थ जाति प्रमुख हैं। जानकारों का कहना है कि इस बार भाजपा हर समीकरण का ख्याल रख कर आगे बढ़ रही है। अब तक भाजपा पर अगड़ी जातियों के प्रति झुकाव का आरोप लगता रहा है। इस मिथक को पार्टी ने इस बार तोड़ दिया। हालांकि इस बात की चर्चा हो रही है कि चार प्रमुख अगड़ी जातियों में से राजपूत और कायस्थ का पत्ता साफ कर भाजपा ने समाज में पैठ रखने वाली इन जातियों को नाराज होने का मौका दे दिया है। वैसे झारखंड में भाजपा की तरफ से कायस्थ समाज का प्रतिनिधित्व राज्यसभा सांसद के रूप में दीपक प्रकाश कर रहे हैं, लेकिन राजपूत पूरी तरह आउट हो गये हैं।
जानकारों का कहना है कि भाजपा की इस रणनीति का लाभ उसे मिलेगा। सवर्ण वोट पहले से भाजपा के पास हैं। यदि उसमें ओबीसी वोट को जोड़ दिया जाये, तो विपक्ष की एकजुटता को इससे मात दी जा सकती है। इसलिए ओबीसी पर फोकस करना भाजपा के लिए अनुकूल स्थिति पैदा करनेवाला है।