खूंटी। लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां बढ़ने लगी है। सभी दलें जनता को साधने के लिए तैयारियों में जुटी है।जनजातियों के लिए आरक्षित खूंटी संसदीय क्षेत्र में सबसे अधिक सक्रिय भाजपा नजर आ रही है, जबकि कांग्रेस का अब तक प्रत्याशी की घोषणा न होने से पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा है। शहर से लेकर गांव-देहात तक राजनीतिक वाद-विवाद का बाजार गर्म है। राजनीतिक दल चुनाव प्रचार के लिए रणनीति बनाने में जुट गये हैं। चुनावी जंग को लेकर एक से एक राजनीतिक धुरंधर मैदान में आकर भाजपा और कांग्रेस की जीत-हार का समीकरण की भविष्यवाणी करने लगे हैं।

अर्जुन मुंडा के खिलाफ कौन होगा कांग्रेस का उम्मीदवार?

लोकतंत्र के महापर्व का बिगुल बजते ही एक ओर जहां भाजपा ने जमीनी स्तर से अपनी तैयारी शुरू कर दी है, वहीं कांग्रेस द्वारा अब तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं होने से कार्यकर्ताओं में ऊहापोह की स्थिति है। जिला कांग्रेस के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता कहते हैं कि पहले ही उम्मीदवार की घोषणा होने से कार्यकर्ता चुनाव प्रचार में उतर जाते, जैसे भाजपा ने किया। पार्टी ने पहले ही प्रत्याशी की घोषणा कर दी और कार्यकर्ता मुस्तैदी चुनाव प्रचार की रणनीति बनाने में जुट गये। राजनीतिक के जानकार बताते हैं कि कांग्रेस के टिकट के सबसे पबल दावेदारों में पूर्व विधायक और तीन बार खूंटी संसदीय सीट से किस्मत आजमा चुके काली चरण मुंडा और विस्थापन विरोधी आंदोलन की नेता दयामनी बारला शामिल हैं। वैसें प्रभाकर तिर्की और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं।

जानकार बताते हैं कि यदि कांग्रेस का टिकट दयामनी बारला को मिलता है, तो भाजपा के अर्जुन मुंडा के लिए मुकाबला आसान हो सकता है, जबकि कालीचरण मुंडा को टिकट मिलने की स्थिति में 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी भाजपा और कांग्रेस के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है। ज्ञात हो कि पिछले लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा कांटे की टक्कर में मात्र 1445 वोट के अंतर ही जीतकर संसद पहुंचे थे।

सबसे अधिक संसदीय चुनाव लड़ने और जीतने का रिकॉर्ड है कड़िया मुंडा के नाम

खूंटी संसदीय सीट से सबसे अधिक चुनाव लड़ने और जीत हासिल करने का रिकॉर्ड पद्मभूषण कड़िया मुंडा के नाम है, जिन्होंने 12 बार लोकसभा चुनाव में भाग्य आजमाया और आठ बार जीत हासिल की। भाजपा के कड़िया मुंडा ने सबसे पहले 1971 में भारतीय जनसंघ के टिकट पर 1971 में संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन वे झारखंड पार्टी के एनई होरो से मात खा गये थे। 1977 में कड़िया मुंडा ने जनता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी, लेकिन 1980 में वे झारखंड पार्टी के एनई होरो से हार गये। 1984 की इंदिरा लहर में कांग्रेस के साइमन तिग्गा यहां से लोकसभा पहुंचे थे। बाद में 1989, 1991, 1996, 1998 और 1999 में कड़िया मुंडा ने लगातार जीत हासिल की।

2004 में कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा ने कड़िया मुंडा के विजय रथ को रोक दिया। पुनः कड़िया मुंडा ने 2009 और 2014 में खूंटी संसदीय क्षेत्र में भाजपा का चरपम लहराया। वैसे तो खूंटी को झारखंड पार्टी की परंपरागत सीट माना जाता था, पर एनई होरो के निधन और झारखंड पार्टी का जनाधार कम होने के बाद इस सीट पर भाजपा नें अपना वर्चस्व कायम कर लिया। 2019 में भाजपा ने कड़िया मुंडा के स्थान पर अर्जुन मुंडा को मैदान में उतारा और उन्होंने भी कड़िया मुंडा के राजनीतिक किले को बरकरार रखा। खूंटी सीट पर सबसे पहला संसदीय चुनाव 1962 में हुआ था। इस सीट से झारखंड पार्टी के जयपाल सिंह मुंडा ने 1962 और 1967 में जीत हासिल की थी। 1971 के आम चुनाव में इसी पार्टी के एनई होरो संसद पहुंचे थे।

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