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    Home»विशेष»गोड्डा में इस बार विकास बनाम जातीय सियासत का होगा मुकाबला
    विशेष

    गोड्डा में इस बार विकास बनाम जातीय सियासत का होगा मुकाबला

    adminBy adminMarch 29, 2024No Comments7 Mins Read
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    विशेष
    -निशिकांत दुबे के सामने चौथी बार अपने गढ़ को बचाने की चुनौती
    -विकास के साथ-साथ जातीय और दूसरे मुद्दों पर खुल कर बात कर रहे हैं वोटर

    संथाल परगना में तीन लोकसभा सीटों में गोड्डा बेहद खास है। यह सीट अनारक्षित है। गोड्डा को झारखंड में भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट माना जाता है, क्योंकि यहां से लगातार तीन बार के सांसद डॉ निशिकांत दुबे ने इलाके में खूब काम किया है। सांसद के रूप में उनका प्रदर्शन और कामकाज लोगों की नजर में संतोषजनक रहा है, लेकिन गोड्डा में आज भी समस्याओं की कमी नहीं है। भाजपा ने लगातार चौथी बार डॉ दुबे को मैदान में उतार कर चुनावी माहौल को ‘विकास बनाम जातीय सियासत’ के मुकाबले में बदल दिया है। विपक्षी इंडी गठबंधन भाजपा के निशिकांत दुबे को कड़ी टक्कर देने कीफिराक में है। इसलिए कांग्रेस के जिस प्रत्याशी के अखाड़े में उतरने की चर्चा है, उससे जातीय समीकरण, गुणा-भाग और उसके पक्ष में बहने वाली हवा मुकाबले को दिलचस्प बनायेगी। पिछले तीन चुनाव में जिस तरह निशिकांत के वोटों का प्रतिशत जीत के साथ बढ़ा है, ऐसे में इस बार भी उनके सामने लगातार चौथी बार जीत का झंडा गाड़ने की चुनौती होगी। इस सबके बीच यह भी सही है कि जरा सी भी चूक भाजपा के सफर को मुश्किल बना सकती है। विपक्ष ने अभी तक प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है, लेकिन चुनावी मुकाबले के रोमांचक होने के पूरे संकेत हैं। वैसे एक बात गौर करने लायक है कि पिछले 15 साल में डॉ दुबे ने गोड्डा की सियासत को जातीय गोलबंदी में बांध कर रख दिया है। इसी गोलबंदी का लाभ उन्हें मिलता है और इस बार भी कहा जा रहा है कि गोड्डा का सांसद जातीय गोलबंदी के दलदल से डूब कर ही निकलेगा। क्या है गोड्डा संसदीय क्षेत्र का सियासी माहौल और क्या हैं मुद्दे, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    झारखंड का ‘बिहारी क्षेत्र’ है गोड्डा संसदीय क्षेत्र। बिहार के बांका और भागलपुर जिले से सटे होने के कारण यह क्षेत्र विशिष्ट पहचान रखता है। ऐसे में यह सीट बेहद खास हो जाती है। गोड्डा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाले देवघर को पूर्वोत्तर भारत की आध्यात्मिक राजधानी कहा जाता है। वैद्यनाथ धाम में सालों भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। यह अकेला ऐसा धार्मिक स्थान है, जहां पर शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं। गोड्डा संसदीय क्षेत्र स्थित इस्टर्न कोलफील्ड्स के अंतर्गत एशिया की सबसे बड़ी ओपन पिट राजमहल यहां है। इसमें बड़ी संख्या में स्थानीय लोग कार्यरत हैं। हालांकि कोयले का लाभ यहां नहीं मिल पाया है। गोड्डा में ही ललमटिया कोयला खदान है। ललमटिया के कोयले से कहलगांव और फरक्का बिजली परियोजना का संचालन होता है।

    गोड्डा की सामाजिक पृष्ठभूमि
    गोड्डा को संथाल जनजाति की भूमि माना जाता है। गोड्डा संसदीय क्षेत्र के लोग मूलत: कृषि पर निर्भर करते हैं। यहां की प्रमुख फसलों में गेहूं और मक्का शामिल हैं। गोड्डा संसदीय क्षेत्र पिछड़ी जाति के साथ मुस्लिम और ब्राह्मण बाहुल्य है। पिछड़ी जातियों और मुस्लिमों का दबदबा इस सीट पर रहा है। अनुसूचित जाति 11 फीसदी से अधिक और अनुसूचित जनजाति की आबादी 12 फीसदी से अधिक है। वहीं, मुस्लिम और ब्राह्मणों की भी बड़ी आबादी गोड्डा संसदीय क्षेत्र में वास करती है। भाजपा को भरोसा है कि गोड्डा संसदीय क्षेत्र में इस बार भी गैर यादव-मुसलमानों की गोलबंदी होगी, जो जीत की राह प्रशस्त करेगी। इसी को ध्यान में रख कर पार्टी की तैयारी चल रही है। दूसरी तरफ पार्टी के वरीय यादव नेता अपने स्वजातीय वोटरों में भी सेंधमारी का अभियान चला रहे हैं। गोड्डा संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक मुसलमान और यादव मतदाता हैं, जिसे विपक्षी गठबंधन का आधार वोट माना जाता है। एक अनुमान के अनुसार यहां लगभग दो से ढाई लाख यादव, ढाई से तीन लाख मुसलमान, दो लाख ब्राह्मण, ढाई से तीन लाख वैश्य, डेढ़ लाख के करीब आदिवासी, एक लाख के करीब भूमिहार, राजपूत, कायस्थ और शेष पचपौनियां और दलित हैं। भाजपा को भरोसा है कि यदि यादव और मुसलमान गोलबंद हो गये, तो फिर बाकी सात लाख वोटर उसके पक्ष में आ जायेंगे।

    गोड्डा का राजनीतिक परिदृश्य
    गोड्डा संसदीय क्षेत्र में पड़नेवाले तीन जिलों की छह विधानसभा सीटों में एक देवघर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 2019 के विधानसभा चुनाव में इन छह में से दो सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था, जबकि दो पर कांग्रेस और एक-एक पर झामुमो और झाविमो की जीत हुई थी। बाद में झाविमो के विधायक प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गये। इस तरह अभी चार सीट विपक्षी गठबंधन के पास और दो सीट भाजपा के पास है। देवघर सीट से वर्तमान में भाजपा के विधायक नारायण दास हैं, जबकि गोड्डा से अमित मंडल विधायक हैं। मधुपुर से झामुमो के हफीजुल अंसारी विधायक हैं। जरमुंडी, महगामा और पोड़ैयाहाट से क्रमश: कांग्रेस के बादल पत्रलेख, दीपिका पांडेय सिंह और प्रदीप यादव विधायक हैं।

    गोड्डा संसदीय क्षेत्र का चुनावी इतिहास
    गोड्डा जब स्वतंत्र लोकसभा सीट के रूप में नहीं जाना जाता था और अविभाजित बिहार का अंग था, उस वक्त देश में हुए पहले चुनाव में संताल परगना प्रमंडल क्षेत्र से पहले सांसद के रूप में देवघर के पुरोहित समाज के पंडित रामराज जजवाड़े निर्वाचित हुए थे। 1962 और 1967 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के प्रभुदयाल जीते। 1971 और 1977 के चुनाव में जगदीश मंडल विजयी रहे । जगदीश मंडल 1971 में कांग्रेस और 1977 में भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े थे। 1980 और फिर 1984 में मौलाना समीउद्दीन ने जीत दर्ज की थी। 1989 में इस सीट पर भाजपा के जनार्दन प्रसाद यादव जीते थे। 1991 में झामुमो के सूरज मंडल विजयी घोषित किये गये थे। पुन: गोड्डा सीट पर भाजपा की वापसी हुई। 1996, 1998 और 1999 का चुनाव भाजपा के टिकट पर जगदंबी प्रसाद यादव जीते। 2000 का चुनाव भाजपा के ही टिकट पर प्रदीप यादव जीते। 2004 में अपनी पारंपरिक सीट पर कांग्रेस ने वापसी की और फुरकान अंसारी चुनाव जीते। लेकिन उसके बाद एक बार फिर भाजपा ने गोड्डा सीट पर अपनी पुनर्वापसी की। 2009, 2014 और 2019 में पार्टी प्रत्याशी डॉ निशिकांत दुबे ने जीत दर्ज की।

    निशिकांत लगातार चौथी बार खिलायेंगे कमल!
    गोड्डा में अभी भाजपा के निशिकांत दुबे सांसद हैं। 2024 में भी भाजपा ने उन्हें ही मैदान में उतारा है। पिछले 15 साल में उन्होंने जितने काम किये हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि उन्हें काम के मामले में चुनौती नहीं दी जा सकती है। अडाणी का पावर प्लांट, देवघर में एम्स, एयरपोर्ट, गोड्डा में रेल नेटवर्क और कई अन्य काम इस संसदीय क्षेत्र में हुए हैं। इसलिए गोड्डा संसदीय क्षेत्र को भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट कहा जा रहा है। सदन के भीतर भी डॉ दुबे ने जिस आक्रामक अंदाज का प्रदर्शन किया है, वह भी गोड्डा को राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय फलक पर चर्चित कर चुका है। विवादों के बावजूद कामकाज के मामले में डॉ दुबे की कोई सानी नहीं है।

    गोड्डा लोकसभा क्षेत्र के मुद्दे
    बड़ा सवाल है कि गोड्डा में किन मुद्दों पर चुनाव लड़ा जायेगा। गोड्डा के ललमटिया में राजमहल कोल परियोजना के अंतर्गत एशिया का सबसे बड़ा कोयला पिट है। मुद्दा यह है कि स्थानीय ग्रामीणों को इसका कितना लाभ मिलता है। गोड्डा शहर में 16 सौ मेगावाट क्षमता वाला अडाणी का पावर प्लांट है। समझौते के मुताबिक इसका 25 फीसदी झारखंड को मिलना था, लेकिन नहीं मिल रहा है। गठबंधन इसे यहां मुद्दा बनायेगा। गोड्डा में भाजपा इस बार बांग्लादेशी घुसपैठ को मुद्दा बनायेगी। इसके अलावा गरीबी, पलायन और रोजगार जैसे मुद्दे तो हैं ही।

    गोड्डा सीट पर विपक्ष के प्रत्याशी का इंतजार
    गोड्डा सीट से भाजपा की तरफ से डॉ निशिकांत दुबे को टिकट दिया गया है, लेकिन विपक्षी गठबंधन के लिए फिलहाल कुछ भी तय नहीं है। तीन नाम चर्चा में हैं। चर्चा है कि दीपिका पांडेय सिंह अब राष्ट्रीय राजनीति के लिए महात्वाकांक्षी हैं। वह गोड्डा में टिकट के लिए दिल्ली दरबार में हाजिरी लगा रही हैं। करीब एक दशक से राजनीतिक निर्वासन झेल रहे फुरकान अंसारी भी सक्रिय हो गये हैं। उनके विधायक बेटे इरफान अंसारी समय-समय पर पिता की उम्मीदवारी की वकालत करते रहते हैं। समीकरण साधने के लिए खुद को यादव कुल का बताते हैं। वहीं पिछले तीन आम चुनावों में शिकस्त झेल चुके प्रदीप यादव भी गोड्डा में उम्मीदवारी पेश कर सकते हैं।

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