रांची: लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे जो भी हों, इसका सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को ही मिलने वाला है। प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के गढ़ समझे जाने वाले इस इलाके में चुनाव के नतीजे बीजेपी के फेवर में हुए तब तो पार्टी की पौ बारह समझी जायेगी। नतीजे विपरीत भी हुए तो पार्टी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। उपचुनाव का फैसला 13 अप्रैल को आयेगा।
पिछले एक महीने में भाजपा की गतिविधियों ने उस इलाके में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवायी। यहां केवल झामुमो के नाम की चर्चा हुआ करती थी। दरअसल, चार ब्लॉक एरिया में फैले इस विधानसभा इलाके में कभी भी बीजेपी का कमल नहीं खिला। 1951 से लेकर 1977 तक इंडिपेंडेंट और अलग-अलग पार्टी का कब्जा रहा। इसके बाद से लगातार 2014 तक आठ बार झामुमो के विधायक चुनकर आये हैं। बीजेपी की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1951 से अब तक केवल तीन बार ऐसी स्थिति बनी, जिसमें बीजेपी दूसरे नंबर पर रही। 1990, 2005 और 2014 में बीजेपी के उम्मीदवार झामुमो के कैंडिडेट से हारे थे।
18 में आठ पर है कब्जा
फिलहाल संथाल परगना इलाके की 18 विधानसभा सीटों में से आठ पर बीजेपी का कब्जा है। लिट्टीपाड़ा को छोड़कर बाकी के सात पर झामुमो, कांग्रेस और झाविमो के विधायक हैं। साथ ही सूबे में मुख्यमंत्री समेत 11 सदस्यीय मंत्रिमंडल में तीन मंत्री भी इसी इलाके से आते हैं।

बीजेपी ने पूरी ताकत झोंकी थी
झामुमो के विधायक अनिल मुर्मू के असामयिक निधन के बाद खाली पड़ी इस सीट पर बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। पार्टी कार्यकर्ताओं की लंबी फौज के अलावे राज्य के चार मंत्री डंटे रहे लिट्टीपाड़ा में। यहां तक कि राज्य की समाज कल्याण मंत्री लुइस मरांडी लगातार वहां कैंप कर रही थीं। इसका नतीजा यह हुआ कि वहां के अमरापाड़ा, लिट्टीपाड़ा और हिरनपुर जैसे इलाकों में बीजेपी के कार्यकर्ताओंं की सक्रियता से लोगों की जुबान पर बीजेपी की चर्चा शुरू हुई। जेएमएम की पकड़ उस इलाके में ऐसी है कि पिछले चुनाव में बीजेपी के साइमन मरांडी लगभग 25 हजार वोट से हार गये थे। 2009 में झामुमो के कैंडिडेट के रूप में वह चुनाव जीते थे।

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