रांची।  झारखंड की राजधानी होने की वजह से रांची राज्य की सबसे अहम लोकसभा सीट मानी जाती है। 75 साल से ज्यादा उम्र के सांसदों को टिकट नहीं देने की पार्टी की पॉलिसी की वजह से यह पहले से तय माना जा रहा था कि रांची लोकसभा सीट पर रामटहल चौधरी की जगह कोई नया चेहरा लाया जायेगा। भाजपा के कार्यकर्ता हैरत में हैं कि रांची में प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेताओं की मौजूदगी के बावजूद आखिर प्रत्याशी के रूप में एक सर्वसम्मत चेहरे पर पार्टी में सहमति क्यंों नहीं बन पायी ? टिकट तय करने की जिम्मेदारी जिन नेताओं पर है, क्या उनका आपसी विरोधाभास इस लेटलतीफी की वजह है? राजनीति की नब्ज पर निगाह रखनेवाले मानते हैं कि निर्णय, ऊहापोह या फिर नेताओं के बीच अंतरविरोध की ऐसी स्थिति पार्टी की सेहत के लिए अच्छी बात नहीं है। कायदे से होना यह चाहिए था कि रामटहल चौधरी के बाद उनकी जगह किसी चेहरे को सर्वसम्मति से प्रोजेक्ट किया जाता। इस लेटलतीफी में उम्मीदवारी के लिए इतने नेताओं के नाम चल चुके हैं कि उम्मीदवार घोषित होने के बाद न चाहते हुए भी पार्टी में गुटबंदी जैसी स्थिति बन जायेगी। प्रत्याशी के तौर पर आदित्य साहू, नवीन जायसवाल, संजय सेठ, दीपक प्रकाश, अमिताभ चौधरी, अमर कुमार चौधरी के नाम हवा में प्रमुखता से उछले। अब आखिरकार नाम चाहे जिसका भी घोषित हो, उन्हें छोड़ बाकी दावेदारों में कहीं न कहीं निराशा का भाव पैदा होगा, जो किसी हाल में पार्टी की सेहत के लिए अच्छी बात नहीं होगी। दूसरी तरफ महागठबंधन के प्रत्याशी सुबोधकांत सहाय ने चुनावी जनसंपर्क का एक चरण करीब-करीब पूरा कर लिया है। राजनीति में पहले शुरुआत करनेवाला हमेशा फायदे में रहता है, यह आजमाया हुआ सिद्धांत है।

यही हाल चतरा और कोडरमा सीटों को लेकर है।

भाजपा ने राजद की प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी और राजद के कद्दावर नेता गिरिनाथ सिंह को पार्टी में शामिल कराया तो यही माना गया कि क्रमश: कोडरमा और चतरा सीटों पर इन्हीं दोनों को उम्मीदवार बनाया जायेगा, लेकिन टिकट की घोषणा में लेटलतीफी की वजह से सस्पेंस लंबा खिंचता चला गया। चतरा उन तीन सीटों में हैं, जहां प्रदेश में पहले चरण में ही चुनाव कराये जाने हैं।

नामांकन भरने की आखिरी तारीख 9 अप्रैल है। इसके चार दिन पहले तक उम्मीदवार का नाम सामने नहीं आने से निचले स्तर के कार्यकर्ता परेशान हैं। पार्टी की ओर से अब तक प्रचार शुरू नहीं हो पाया है। अब भाजपा से जो भी उम्मीदवार सामने आयेगा, उसके पास प्रचार के लिए महज 20-22 दिन होंगे। जाहिर है, यह अत्यंत दुष्कर चुनौती होगी। कोडरमा में हालांकि दूसरे चरण में 6 मई को मतदान होना है, लेकिन वहां भी ऐसी ही ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version