रांची। भारत में गंगा की अविरल धारा की तरह स्वच्छ और सुंदर है हमारा लोकतंत्र। जिस तरह से गंगा की पूजा आदिकाल से होती रही है, उसी तरह से भारत में लोकतंत्र की पूजा होती है। कालांतर में जैसे अपने ही कर्मों से लोगों ने गंगा को मैली कर दिया, उसी तरह से हमारे रहनुमाओं ने लोकतंत्र को मैला किया। लोकतंत्र के सबसे बड़े शृंगार अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात किया। वोट के अधिकार को कुंद किया और जनता को वोट देने तक से महरूम किया। अधिकांश जगहों पर तो वोट में भी पैसे का खेल चला। जिन्हें पांच साल के लिए चुनकर भेजा है, उसने क्षेत्र के लिए कुछ किया या नहीं, इस पर चर्चा नहीं के बराबर होती थी। बात होती थी ठेके-पट्टे, शराब-कवाब की। चंद लोगों के घेरे में सांसद रहते थे। जनता का उनसे मिलना टेढ़ी खीर के समान था। किसी तरह मिल लिये, तो समझो भगवान के दर्शन हो गये। लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है। खासकर इस चुनाव में तो साफ दिख रहा है कि जनता वोट के अधिकार के प्रति सजग है।
प्रत्याशियों को जनता के तीखे-तीखे सवालों से होकर गुजरना पड़ रहा है। कई जगहों पर तो ऐसा देखा गया कि जनता प्रत्याशियों का मीडिया ट्रायल कर रही है। जैसे मीडिया में सवाल दर सवाल दागा जाता है, वैसे ही लोग प्रत्याशियों पर सवालों की बौछार कर रहे हैं। यह लोकतंत्र की मजबूती की निशानी है। संविधान में मिली अभिव्यक्ति की आजादी का लोग खुल कर उपयोग कर रहे हैं। पहले यह देखा जाता था कि जनता सांसद और विधायकों से मिलने के लिए तेरह डिबिया तेल जलाती थी, लेकिन इस बार यह देखा जा रहा है कि जनता अपने प्रतिनिधि के काम का आकलन कर उनसे सवाल कर रही है। सोशल मीडिया पर उसे वायरल किया जा रहा है।
बात शुरू करते हैं लोहरदगा के सुदूर पेशरार की एक घटना से। मुख्यमंत्री रघुवर दास पिछले गुरुवार को वहां थे। भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में पदयात्रा कर रहे थे। इसी दरम्यान एक महिला उनसे मिलने पहुंची। किसी ने उसे मुख्यमंत्री से मिलने से रोका। महिला जोर-जोर से बोलने लगी। मुख्यमंत्री का ध्यान उस पर गया। उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को इशारा किया, उसे पास आने दो। महिला पास आयी। उसने मुख्यमंत्री से अपने निर्दोष पति को पुलिस द्वारा जबरन गिरफ्तार कर जेल भेजने की बात कही। गौर करनेवाली बात यह है कि पहले कोई मुख्यमंत्री से सवाल नहीं पूछ सकता था, काला कपड़ा लेकर नहीं जा सकता था, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। अब लोग मुख्यमंत्री से आंख मिला कर अपनी बात रख रहे हैं। इसी तरह रांची के कांके में सीएम के सामने लोगों ने सड़क नहीं बनने की बात रखी। एक महिला के भाईजान कहे जाने पर सीएम खुद उसके पास गये और समुचित आश्वासन दिया।
एक उदाहरण चतरा का। चतरा से भाजपा प्रत्याशी के समक्ष हर दिन सवालों की बौछार हो रही है। जनता का इनसे सिर्फ एक ही गुस्सा है कि साढ़े चार साल तक कहां थे। दरअसल सुनील सिंह की परेशानी का कारण इनके चंगू-मंगू बन गये। कभी इनके चंगू-मंगू ने जनता की बातों को इनके समक्ष रखा ही नहीं। ऐसा नहीं है कि सुनील सिंह ने क्षेत्र के लिए काम नहीं किया। चतरा में सिंचाई के लिए चार दशक से ज्यादा समय से बंद पड़ी योजना का काम कराया। प्रधानमंत्री के हाथों उसका शिलान्यास कराया। मगर जिन्हें इन्होंने अपने साथ काम करने के लिए रखा, उन्हीं चंगू-मंगू ने इनकी जनता से दूरी बढ़ा दी। उनमें से एक हैं जो किसी कंपनी में लायजनिंग करते हैं। दूसरे हैं, जो उनके साथ हर समय रहते हैं। तीसरे एक नेता जी हैं, जिन्होंने सुनील सिंह की भावनाओं का शोषण कर उनका विश्वास जीता और अब उस विश्वास की वह हत्या कर रहे हैं। सुनील सिंह का साथ मिलते ही वह हजारीबाग जिले में स्थित एक बड़ी कंपनी के यहां लाखों-लाख की ट्रांसपोर्टिंग करने लगे। उन्होंने कभी उस कंपनी के कर्ता-धर्ता को सुनील सिंह से मिलवाया था। हो सकता है, उसने कुछ फायदा भी पहुंचाया हो, लेकिन उसके एवज में अब नेताजी उस कंपनी को दूह रहे हैं।
हो सकता है, सुनील सिंह को इनके कारनामों के बारे में पूरा पता नहीं हो, लेकिन यह सच्चाई है कि आज सुनील सिंह को जिन सवालों से दो-चार होना पड़ रहा है, उनके मूल में यही तीन लोग हैं। परदे के पीछे क्या हो रहा है, इसे स्पष्ट करने के लिए एक घटना का जिक्र करना उचित है। सांसद सुनील सिंह पिछले गुरुवार की दोपहर मनिका पार्टी कार्यालय में थे। वहां पर इस संवाददाता की श्याम बिहारी सिंह से मुलाकात हो गयी। उनसे कहा गया था कि चार गाड़ी भाड़े की कर लो, उसमें लोगों को लेकर आना। इन्हें कहा गया था कि लेस्लीगंज के मंडल अध्यक्ष विक्रमादित्य दुबे गाड़ी में तेल की व्यवस्था करेंगे। चार गाड़ी पहुंच गयी। दुबे ने एक गाड़ी में तेल भरवाया और तीन गाड़ी को लौटा दिया। इस घटना से श्याम बिहारी सिंह इतने आगबबूला हैं कि सामने आने पर पटक कर मारने की बात करने लगे। सुनील सिंह के नामांकन के दिन एक भाजपा नेता से कहा गया था कि 20 गाड़ी भेज देंगे, आदमी भर कर लाना है। उन्होंने कार्यकर्ताओं को इकट्ठा कर रखा था, लेकिन एक भी गाड़ी नहीं आयी। अंत में उस नेता ने अपने खर्च से 20 गाड़ी मंगवायी। उसमें 80 हजार रुपये खर्च किये और लोगों को लेकर चतरा गये। सांसद को कार्यकर्ताओं की पीड़ा मनिका में सुनने को मिली। जब उन लोगों से कहा गया कि सांसद के समक्ष बातें क्यों नहीं रखीं, तो कार्यकर्ताओं ने कहा कि जो चंगू-मंगू रखे हैं, उनको तो बताया था। सच्चाई यह है कि झारखंड भाजपा संगठन के एक मजबूत स्तंभ हैं सुनील सिंह। संगठन में इनकी जबरदस्त पकड़ है। तब भी कार्यकर्ता इनसे नाराज हैं और खुल कर अपनी बात रख रहे हैं, तो यह कहीं न कहीं लोकतंत्र की मजबूती का ही प्रतीक है। सुनील सिंह से शिकायत का यह कतई अर्थ नहीं कि लोग उन्हें नापसंद कर रहे हैं। बल्कि मन की भड़ास निकाल कर वह हलका हो रहे हैं और दिनों दिन सुनील सिंह की स्थिति चतरा में मजबूत होती जा रही है। लोग कहते हैं, जो अपने हैं शिकायत तो उन्हीं से होती है। जो शिकायत सुनेगा ही नहीं, उससे फरियाद कैसी। लोग कहते हैं, हमें और किसी को नहीं, मोदी को देखना है। पलामू में वीडी राम का भी विरोध देखा गया। जनता के तीखे सवालों से इनका भी सामना हुआ। हरिहरगंज में पलामू सांसद को विरोध का सामना करना पड़ा। एनएच 98 के नहीं बनने से जनता नाराज थी। धनबाद के बरवाअड्डा इलाके के कुर्मीडीह गांव में भाजपा प्रत्याशी सांसद पशुपति नाथ सिंह को ग्रामीणों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। दरअसल, पीएन सिंह अपने समर्थकों के साथ जनसंपर्क अभियान के लिए कुर्मीडीह पहुंचे थे। लेकिन, गांव का विकास नहीं होने से नाराज ग्रामीणों ने उनको देखते ही हंगामा शुरू कर दिया। ग्रामीणों का कहना था कि तमाम कोशिश के बाद भी उनके गांव में सड़क और बिजली की समस्या दूर नहीं हुई। बाद में बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा समझाने पर ग्रामीण शांत हुए। ग्रामीणों का यह भी कहना था कि सिर्फ चुनाव के समय ही सांसद गांव पहुंचते हैं। सांसद पीएन सिंह ने कहा कि उन्होंने गांव में सोलर लाइट की व्यवस्था कराने की कोशिश की थी, लेकिन सरकार ने इस योजना को बंद कर दिया है। इसलिए सोलर लाइट नहीं लग पायी। ये सब छोटे-छोटे काम हैं, जिन्हें चुनाव के बाद पूरा कर लिया जायेगा। गुरुवार को झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी मरकच्चो में थे। इस दौरान देवीपुर गांव में ग्रामीणों और पंचायत प्रतिनिधियों ने सड़क और पेयजल की समस्या को लेकर उन्हें घेरा। पंचायत के मुखिया राजीव कुमार पांडेय ने खुल कर उनके समक्ष क्षेत्र की समस्या को रखा और कहा कि वर्षों से इस इलाके में यह समस्या है। आप भी 10 वर्षों तक सांसद रहे, लेकिन कोई काम नहीं हुआ। राजमहल से झामुमो प्रत्याशी विजय हांसदा को भी कई जगहों पर जनता के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। जनता उनसे भी पांच वर्षों का खुल कर हिसाब मांग रही है। यहां यह जिक्र करना जरुरी है कि इस तरह के विरोध का यह मतलब नहीं है कि जो सांसद या प्रत्याशियों से सवाल कर रहे हैं, वे उनके दुश्मन हो गये। सच्चाई तो यह है कि जनता का सवाल कहीं से भी बगावत का प्रतीक नहीं है, बल्कि हाल के दिनों में जिस तरह से संस्थागत व्यवस्था में परिवर्तन हुआ है, उसने लोगों को आवाज दी है। जनता अपनी बातों को कार्यपालिका और विधायिका के समक्ष रख रही है। जो सांसदों या प्रत्याशियों से सवाल कर रहे हैं, वे विरोधी नहीं हैं, बल्कि उनसे उम्मीद पाल रखी है कि यह प्रतिनिधि ही काम करा सकता है। उसके मन में अब भी कहीं न कहीं उस व्यक्ति के लिए जगह है। और यह सब हो रहा है लोकतंत्र की मजबूती के कारण।