Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Monday, June 23
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»झारखंड»महागठबंधन ने जनता को चुनौती के चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया
    झारखंड

    महागठबंधन ने जनता को चुनौती के चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskApril 2, 2019No Comments7 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    झारखंड में लोकसभा चुनाव का फीवर सिर चढ़कर बोल रहा है। सभी राजनीतिक पार्टियों के सिपहसालार चुनावी रणभूमि में उतर चुके हैं। हर कोई अपने-अपने क्षेत्र से जीत का दावा भी कर रहा है। सभी पार्टियां अपने विपक्षियों पर कीचड़ उछाल रही हैं और जनता को एक दूसरे की खामियां बताकर वोट को अपने पक्ष में करने की कवायद में लग चुकी हैं। इस बार सभी पार्टियों के समक्ष कई तरह की चुनौतियां हैं। एक तो विपक्ष की कड़वाहट और दूसरी ओर अपनों का ही बागी हो जाना। कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पार्टी को विपक्ष से ज्यादा अपने ही दल के बागी नेताओं से खतरा होनेवाला है। ऐसा नहीं है कि बागियों को मनाने की कोशिश नहीं की गयी, कोशिश तो अभी तक जारी है। लेकिन इसका अब तक कोई परिणाम नजर नहीं आ रहा है। कुछ बागी तो प्रण लेकर अपनी ही पार्टी के खिलाफ चुनावी मैदान में कूद चुके हैं और कुछ ताल ठोक रहे हैं। वैसे तो पार्टियों के नेताओं का कहना है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़नेवाला है। उनका हाल खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसा है। लेकिन वे शायद भूल रहे हैं कि हमारे यहां एक और कहावत है, जो काफी मशहूर है: देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर और शायद इस बार के चुनाव में यह काफी हद तक सही भी हो सकता है। यह चुनौती तो दोनों ही खेमों के सामने है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी चुनौती से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिस पर अभी तक किसी ने गौर नहीं किया और वह चुनौती महागठबंधन के सामने मुंह बाये खड़ी है। यह शायद जीत-हार का मुख्य कारण भी बन सकती है। इस चुनौती का नाम है वोट ट्रांसफर। इस चुनौती पर नजर दौड़ा रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह।

    रांची। अगर हम गौर करें तो इस बार का लोकसभा चुनाव पहले के आम चुनाव जैसा नहीं है, जो सदियों से चलता आ रहा है। इस चुनाव में विपक्ष की भूमिका में कोई एक पार्टी नहीं, बल्कि महागठबंधन नामक विशालकाय पहाड़ है। इस बार के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन ही हर विपक्षी पार्टी की पहचान बनी हुई है। इस बार जनता सभी विपक्षी पार्टी जैसे कांग्रेस, झामुमो, झाविमो और राजद को महागठबंधन के चश्मे से देख रही है। और इन दलों ने महागठबंधन का चोला ओढ़ रखा है। ऐसी स्थिति में सभी विपक्षी पार्टियों के समक्ष अपने अस्तित्व के सहारे महागठबंधन को मजबूती देने की चुनौती बढ़ गयी है। यह चुनौती महागठबंधन को किसी पार्टी की तरफ से नहीं, बल्कि जनता के पाले से आने वाली है। या सही मायने में कहें तो महागठबंधन ने जनता को चुनौती के चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है।
    अब इस चुनौती का पोस्टमार्टम करें
    यह एक ऐसी चुनौती है, जिसके लिए हमें लगा कि इसका नाम वोट ट्रांसफर कुछ हद तक ठीक रहेगा। लेकिन इसे समझाने के लिए इसका पोस्टमार्टम करना आवश्यक है।
    महागठबंधन से जुड़ी पार्टियों के लिए….
    इस रिपोर्ट में हम आपको एक ऐसी चुनौती से अवगत कराने जा रहे हैं, जिस पर अभी तक किसी ने आपसे न तो सवाल किया और न ही आपकी ओर से इस पर कोई विशेष टिप्पणी ही आयी है। इस रिपोर्ट को नजरअंदाज न करें, क्योंकि यह रिपोर्ट महागठबंधन की सेहत जुड़ी है। यह चुनौती चुनाव के रिजल्ट पर गहरा असर छोड़ सकता है।
    क्या है चुनौती
    इस चुनौती को एक रैंडम नाम दिया गया है वोट ट्रांसफर। इस नाम का मतलब पूरी रिपोर्ट सुनने और पढ़ने के बाद आपको समझ में आयेगी।
    मान लिया जाये कि शर्मा जी एक आम वोटर हैं और वह दुमका के निवासी हैं। शर्मा जी कांग्रेस के समर्थक हैं और झामुमो को वह पसंद नहीं करते, क्योंकि शर्मा जी झामुमो की नीति से प्रभावित नही हैं, तो ऐसी स्थिति में वह जब वोट डालने जायेंगे और महागठबंधन की लिबास में कांग्रेस की जगह झामुमो का सिंबल देखेंगे, तो उस समय उनकी मनोदशा क्या होगी। क्या वह सिर्फ भाजपा को हराने के लिए एक ऐसी पार्टी को वोट देंगे, जिससे वह बिल्कुल भी प्रभाावित नहीं हैं। चलिये मान लीजिए कि उन्होंने बटन दबा भी दिया, तो इसकी कितनी गारंटी है कि शर्मा जी ने झामुमो को ही अपना वोट दिया होगा। यह भी तो हो सकता है कि वोट डालते वक्त उनके दिमाग में उनकी प्राथमिकता की सूची की तस्वीर आ रही हो और उनका वोट महागठबंधन के पक्ष में नहीं गया हो। इस बार के लोकसभा चुनाव में यह स्थिति सिर्फ एक शर्माजी की नहीं रहेगी। यह स्थिति लगभग हर क्षेत्र में शर्मा जी जैसे हजारों वोटरों की रहेगी। यह चुनौती सिर्फ यहीं तक नहीं है। झारखंड में कुछ ऐसे भी गांव और वर्ग के लोग हैं, जिन्हें ना तो उम्मीदवारों के नाम का पता होता है और ना ही पार्टी का। उन्हें तो सिर्फ यह पता होता है कि वोट देने जाना है और कमल, तीर धनुष, कंघी, लालटेन या पंजा पर बटन दबा कर आ जाना है। अब अगर बटन दबाते समय तीर धनुष वाले को सिर्फ कंघी और कमल दिखे या कंघी वाले को सिर्फ पंजा और कमल दिखेगा तो वह बेचारा बटन किस पर दबायेगा। वहां उसे कैसे पता चलेगा कि तीर धनुष, कंघी, लालटेन और पंजा सब एक ही हैं।
    अगर देखा जाये तो जनता के सामने सोच-विचार करने और अक्कड़-बक्कड़ बंबे बो वाली स्थिति हो जायेगी। ऐसे में जनता किसे वोट दे और किसे नहीं, यह तो समय के गर्भ में है।
    वहीं दूसरी ओर महागठबंधन की गांठ में बंधी पार्टी के समक्ष भी अपने वोटरों के वोट को अपने सहयोगी पार्टी के पक्ष में कास्ट करवाना बहुत बड़ी चुनौती होगी। किसी भी पार्टी के लिए यह सुनिश्चित करना कि उनके पक्ष का वोट उनके सहयोगी दल को मिले, यह बालू से तेल निकालने जैसा है। इस चुनौती को नजरअंदाज करने की भूल महागठबंधन को किसी भी कीमत पर नहीं करनी चाहिए। अगर इस पर गौर नहीं किया गया, तो इस भूल की कीमत हार से चुकानी पड़ सकती है। वहीं दूसरी ओर देखा जाये तो यह चुनौती एनडीए के साथ नहीं है। सिर्फ गिरिडीह सीट को लेकर उसके सामने यह चुनौती बन सकती थी, लेकिन इसे चुनौती इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि भाजपा ने काफी पहले ही यह सीट आजसू को दे दी और आजसू ने भी ज्यादा समय ना लेते हुए इस सीट पर प्रत्याशी के नाम की घोषणा भी कर दी। इससे यह हुआ कि वहां के लोगों के मन में यह बात बैठाने के लिए उन्हें काफी समय मिल गया कि भाजपा और आजसू साथ हैं। इसलिए एनडीए की स्थिति में यह कहा जा सकता है कि यह चुनौती समय आते-आते काफी हद तक कम हो सकती है।
    महागठबंधन में प्रचारकों की भूमिका
    झारखंड का यह लोकसभा चुनाव पूर्व में हुए लोकसभा चुनावों से बिल्कुल अलग है। इस बार विपक्ष की भूमिका में महागठबंधन भाजपा के सामने खड़ा है, जो भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकता है। बात सिर्फ सत्ता पक्ष और महागठबंधन के बीच की लड़ाई की नहीं है, बात है महागठबंधन में शामिल सभी दलों के अस्तित्व की और मजबूती की। जाहिर है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में सभी दलों का अस्तित्व दांव पर है। खासकर महागठबंधन की अगर बात की जाये तो यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि 2019 का यह लोकसभा चुनाव आनेवाले विधानसभा चुनाव में भी सभी पार्टियों की किस्मत तय करेगा। मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह लोकसभा का चुनाव विधानसभा में महागठबंधन का जन्मदाता बन सकता है। अगर विधानसभा में महागठबंधन की स्थिति बनी तो यह भी तय है कि इस लोकसभा में महागठबंधन में शामिल सभी दलों की मजबूती ही विधानसभा की सीटों का पैमाना बनेगी।
    इससे यह साफ है कि इस लोकसभा चुनाव में सभी दल अपने को आगे और मजबूत दिखाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने में पीछे नहीं रहेंगे। नेता अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय अपने क्षेत्र में ही देंगे।
    ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि दूसरे दलों के पार्टी प्रमुख अपने सहयोगी दल के लिए कितना समय निकालेंगे और साथ में कितना मंच साझा करेंगे। कहीं ऐसा ना हो जाये कि महागठबंधन में शामिल सभी पार्टियां यह न सोचने लगे कि घोड़ा घास से दोस्ती करेगा, जो खायेगा क्या। अगर महागठबंधन में ऐसी स्थिति बनती है, तो यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि थोथा चना बाजे घना।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleभाजपा को कास्ट फीवर, माइनॉरिटी रोग से ग्रसित कांग्रेस
    Next Article कांग्रेस का घोषणा पत्र: रोजगार, किसान से खेल तक पार्टी ने किये कई वादे
    azad sipahi desk

      Related Posts

      कांग्रेस पार्टी जमीन पर रहकर काम करती है: मंत्री

      June 22, 2025

      भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने की संगठनात्मक चर्चा

      June 22, 2025

      उपायुक्त और एसएसपी ने रथ मेला की तैयारियों और सुरक्षा व्यवस्था का लिया जायजा

      June 22, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • झामुमो के दावे से रोचक हुआ बिहार का चुनावी परिदृश्य
      • बिहार में किंग बनाम किंगमेकर में कौन मारेगा बाजी
      • बिहार ने जो विकास किया है वह किसी से छुपा नहीं है : सम्राट चौधरी
      • नेपाल से लाई जा रही शराब की बड़ी खेप बरामद, वाहन जब्त
      • पेंशन भुगतान में अनियमितता को लेकर धरना
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version