प्रधानमंत्री और भाजपा के सबसे बड़े स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी की यात्रा और जनता द्वारा मोदी-मोदी के नारे ने झारखंड की चुनावी फिजां में निश्चित तौर पर प्रभावी असर डाला है। इस दौरे ने जहां भाजपा में नये उत्साह का संचार किया है, वहीं एनडीए के घटक दलों को एक स्वर, एक धागे में बांध दिया। इस दौरे ने महागठबंधन की नींद उड़ा दी है। कहा जा रहा है कि महागठबंधन के नेता अब इसकी काट खोजने में लग गये हैं और अगले कुछ दिनों में यह दिखेगा भी। प्रदेश कांग्रेस इस दौरे की काट के लिए राहुल और प्रियंका गांधी को झारखंड की धरती पर उतारने को व्याकुल है। लेकिन अभी तक उनका दौरा फाइनल नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री भाजपा के सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं और 23-24 अप्रैल के उनके रांची-लोहरदगा दौरे ने निश्चित तौर पर पार्टी प्रत्याशियों की उम्मीदों को पंख लगा दिया है। इस यात्रा ने भाजपा के भीतर की दूरियों को पूरी तरह पाट दिया है, वहीं कार्यकर्ता भी सब कुछ भूल कर प्रत्याशियों की जीत के लिए काम करने में जुट गये हैं। भाजपा का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झारखंड में यूपीए महागठबंधन के माथे पर बल देकर चले गये। प्रधानमंत्री के दोनों कार्यक्रमों के बाद महागठबंधन में रणनीतिक काट की खोज शुरू हो गयी है। भाजपा के नेता कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की झारखंड में हुई पहली चुनावी रैली में नमो के सभी रंग देखने को मिले। कांग्रेस पर प्रहार, आतंकवाद और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने के साथ-साथ झारखंड के आदिवासियों की नब्ज छूना भी मोदी नहीं भूले। मोदी के बारे में कहा जाता है कि वह राजनीतिक हवा का रुख बदलने में माहिर हैं। झारखंड में 29 अप्रैल को जिन तीन संसदीय क्षेत्रों में चुनाव है, उनमें लोहरदगा भी शामिल है। इन सीटों पर वह अपने प्रत्याशियों के लिए काम आसान कर गये, ऐसा भाजपा का दावा है। अब गेंद प्रदेश की कोर टीम के हाथों में है।
झारखंड में पहले चरण की तीन सीटों लोहरदगा, पलामू और चतरा के लिए 29 अप्रैल को वोट डाले जायेंगे। भाजपा नेताओं को भरोसा है कि प्रधानमंत्री की यात्रा से माहौल बदल गया है। लोहरदगा की जनसभा में प्रधानमंत्री ने राष्ट्रवाद की अलख जगाने के साथ-साथ झारखंड के प्रमुख मुद्दों को भी छुआ। लोहरदगा संसदीय क्षेत्र आदिवासी बहुल क्षेत्र है, प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में इस बात का पूरा ध्यान रखा। आदिवासियों के लिए किये गये कार्यों को उन्होंने साझा किया, भविष्य का संकल्प भी दोहराया।
वन भूमि पट्टा और भूमि अधिग्रहण को लेकर विपक्षी दलों द्वारा उठाये जा रहे सवालों पर पलटवार करते हुए मोदी ने कहा कि जब तक चौकीदार है, जमीन और जंगल के अधिकार पर कोई पंजा नहीं लगा सकेगा। मोदी ने भाजपा के परंपरागत वोट बैंक न माने जाने वाले ईसाइयों और मुसलमानों को भी साधने की कोशिश की। स्पष्ट कहा कि उनकी सरकार किसी से भी भेदभाव नहीं करती है। इसाई धर्म गुरुओं को अफगानिस्तान से छुड़ाने और केरल की नर्सों को इराक से वापस लाने में सरकार के स्तर से किये गये प्रयासों की चर्चा कर यह बताया कि उन्हें इस तबके की फिक्र है। इसाइयों के पवित्र पर्व इस्टर पर श्रीलंका में हुए हमले पर अफसोस भी उन्होंने जाहिर किया। ऐसा कर उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह आतंकवाद को कभी भी राजनीति के चश्मे से नहीं देखते।
इसाई कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते हैं। प्रधानमंत्री ने इस तबके के प्रति चिंता जाहिर कर भाजपा को इस वोट बैंक में सेंध लगाने का मौका दे दिया है। खासकर लोहरदगा में। पुलवामा में शहीद हुए विजय सोरेंग का भी नाम प्रधानमंत्री ने मंच से लिया। शहीदों के प्रति कांग्रेस और उसके सहयोगियों के रवैये की चर्चा करते हुए कहा कि शहीदों के प्रति कांग्रेस का रवैया ठीक नहीं है। जनता से जुड़ने का मोदी का अपना ही तरीका है, यह यहां भी देखने को मिला। लोहरदगा की जनता से सीधा संवाद करते हुए आतंकवाद, गरीबी, गांव और शहरों के विकास के लिए लड़ने के नारे भी लगवाये। लोहरदगा से झारखंड में चुनावी प्रचार का आगाज करनेवाले प्रधानमंत्री ने उसी मुद्दे पर महागठबंधन को घेरा, जिस पर खुद विपक्षी गठबंधन सरकार पर निशाना साधता रहा है। लोहरदगा में करीब 40 प्रतिशत सरना आदिवासी और चार प्रतिशत मिशनरी वोटर हैं। आदिवासी वोटरों को अपने पाले में करने के लिए पीएम मोदी ने खुल कर आदिवासी हितों की बात की। उन्होंने आदिवासी समुदाय की पहचान जल, जंगल और जमीन की रक्षा करने का भरोसा दिलाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के शासन में जंगलों की संपदा और खनिज पर पहला हक उद्योगपतियों का था। हमने डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड बनाया। आदिवासी इलाकों के विकास के लिए अब तक चार हजार करोड़ रुपये मिल चुके हैं। भाजपा ने मोदी की यात्रा का भरपूर लाभ उठाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मंच पर सीएम रघुवर दास के साथ पार्टी के बड़े आदिवासी, दलित, अगड़ा, पिछड़ा और सहयोगी दलों के प्रमुख चेहरों को रखा गया, ताकि एकजुटता का प्रदर्शन किया जा सके।
लोहरदगा की जनसभा से प्रधानमंत्री ने चतरा और पलामू की जनता को भी साधने की कोशिश की। पलामू और चतरा लोकसभा सीट का मिजाज लोहरदगा से अलग है। पलामू और चतरा के लोग राजनीति के हर विषय का गुणा- भाग भी करते हैं। खेती-किसानी, रोजगार और नक्सलवाद यहां के बड़े मुद्दे हैं। इन मुद्दों की नब्ज पकड़ते हुए पीएम ने इस दिशा में किये गये कार्यों को साझा किया। इनके समाधान का संकल्प दोहराया। रैली में इन दोनों लोकसभा सीटों से भी लोग आये थे।
रांची लोकसभा की बात करें, तो यहां का चुनावी माहौल मोदी के आने से पहले अलग था। झारखंड के पहले रोड शो के माध्यम से मोदी ने इसे भी बदलने की कोशिश की। इस रोड शो में जनता से मिले प्यार से मोदी भी गदगद दिखे और इसके प्रति उन्होंने आभार भी जताया। रोड शो में सिर्फ भाजपा कार्यकर्ता नहीं थे। उनसे कई गुना ज्यादा आमजन मोदी को देखने घंटों खड़े रहे। सबको पता था कि प्रधानमंत्री बिरसा चौक के बाद बंद गाड़ी में राजभवन जायेंगे। लेकिन इसके बाद भी बिरसा मुंडा राजमार्ग पर मोदी को देखने के लिए मानव शृंखला बनी हुई थी। राजनीति के माहिर खिलाड़ी मोदी ने इसे भांप लिया और बीच रास्ते में वह फिर जनता के समक्ष आ गये। बुधवार को राजभवन से उन्हें एयरपोर्ट होते लोहरदगा जाना था और पब्लिक रास्ते भर उन्हें देखने को खड़ी थी। अब तक चुनाव को लेकर प्रत्याशियों पर चर्चा होती थी, लेकिन अचानक यह चर्चा मोदी तक सीमित होकर रह गयी है।
अब प्रदेश के भाजपा नेताओं और प्रत्याशियों के सामने चुनौती यह है कि वे मोदी के इस दौरे को कितना कैश करा पाते हैं। यदि रांची-लोहरदगा के कार्यक्रम में आये लोगों को वे वोट में बदलने में कामयाब होंगे, तो उनकी राह आसान हो जायेगी, अन्यथा यह केवल तमाशा ही बन कर रह जायेगा। दूसरी तरफ मोदी के इस दौरे को विपक्ष ने भी चुनौती के रूप में लिया है और वह दौरे के असर की काट खोजने में लीन है। विपक्ष भी अपनी दूरियां पाट कर एक मंच से संदेश देने की कोशिश में लगा है।
नरेंद्र मोदी के झारखंड दौरे से एनडीए में नया उत्साह
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