पिछली बार सबसे अंत में और इस बार सबसे पहले टिकट मिला सुबोधकांत को

आज से करीब 42 साल पहले विधानसभा चुनाव के बाद राजधानी के हिनू स्थित सरकारी क्वार्टर में नौजवानों की भीड़ से घिरा एक युवा विधायक बेहद संजीदगी से लोगों की बातें सुन रहा था। वह युवा विधायक कोई और नहीं, सुबोधकांत सहाय थे। हटिया विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से दिग्गज कांग्रेसी प्रत्याशी को हरा कर वह पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर चुने गये थे। आवास पर एकत्र नौजवानों को सुबोधकांत उनके नाम से बुला रहे थे और ठेठ भाषा में हाल-चाल पूछ रहे थे। कहीं कोई घमंड या बड़प्पन नहीं था। उसी दौरान डोरंडा इलाके में रहनेवाले एक शख्स ने भविष्यवाणी की थी कि यह नौजवान भारतीय राजनीति में बहुत आगे जायेगा।
समय आगे बढ़ता रहा और सुबोधकांत पहली बार 1989 में पहली बार रांची से सांसद चुने गये। उन्हें केंद्रीय गृह राज्यमंत्री बनाया गया और सूचना प्रसारण का कार्यभार भी सौंपा गया। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गये और 2004 में कांग्रेस के टिकट पर दोबारा लोकसभा पहुंचे। डॉ मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। 2009 में वह एक बार फिर 15वीं लोकसभा के सदस्य बने। साथ ही केंद्रीय पर्यटन मंत्री भी बनाये गये। लोकसभा का पिछला चुनाव सुबोधकांत हार गये, लेकिन जनता से उनका जीवंत संपर्क बना रहा। उन्हें करीब से जाननेवाले लोग कहते हैं कि सुबोधकांत सहाय की स्मरण शक्ति बेमिसाल है। वह जिससे एक बार मिल लेते हैं, उसे कभी नहीं भूलते। केंद्र में गृह राज्य मंत्री के रूप में उनके प्रभावी कार्यकाल को अब तक याद किया जाता है।
सुबोधकांत सहाय जब केंद्रीय गृह राज्यमंत्री थे, तब एक कहानी रांची समेत पूरे देश में खूब चर्चित हुई थी। सुबोधकांत ने रांची के अधिकतर नौजवानों को विमान यात्रा का अनुभव कराया है। होता यह था कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के रूप में सुबोधकांत जब भी विशेष विमान से रांची से दिल्ली लौटते थे, तब कई नौजवान बिना किसी उद्देश्य से केवल विमान में चढ़ने के लिए उनके साथ दिल्ली चले जाते थे।
सुबोधकांत सहाय के बारे में यह बात सभी जानते हैं कि वह अपने हिसाब से अपनी शर्तों पर राजनीति करते हैं। यदि यह कहा जाये कि झारखंड में फिलहाल कांग्रेस के पास उनसे बड़ा चेहरा नहीं है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। गुटों में बंटी कांग्रेस के भीतर सुबोधकांत की पहचान निर्गुट नेता की है। वह पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध हैं, तो रांची के लोगों के प्रति भी। चाहे धार्मिक आयोजन हो या सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या शैक्षणिक, सुबोधकांत हर आयोजन में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं। यही कारण है कि उन्हें रांची के हर वर्ग के लोगों का समान समर्थन मिलता है।
कांग्रेस ने सुबोधकांत सहाय पर भरोसा जता कर भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश कर दी है। रांची में सुबोधकांत सहाय को टक्कर देने में रामटहल चौधरी पिछली बार कामयाब हुए थे। इस बार रामटहल को भाजपा का टिकट नहीं मिला है। उस स्थिति में भाजपा किसी नये चेहरे को रांची से उम्मीदवार बनायेगी। वह नया चेहरा सुबोधकांत सहाय को कितना टक्कर दे सकेगा, यह देखना वाकई दिलचस्प होगा। खासकर उस स्थिति में, जब उस चेहरे को भाजपा के ही निवर्तमान सांसद रामटहल चौधरी से भी दो-दो हाथ करना पड़ेगा। रामटहल चौधरी ने अपना जनसंपर्क अभियान भी शुरू कर दिया है और घोषणा की है कि वह हर हाल में चुनाव लड़ेंगे।
सुबोधकांत सहाय की एक खासियत है। कांग्रेस में आने के बाद से वह पूरी तरह इसी पार्टी के होकर रह गये। वह न तो किसी खेमे में गये और न ही कोई खेमा बनाने की कोशिश की। गुटीय राजनीति से अलग होकर वह जनता से जीवंत संपर्क में रहे। पिछली बार के लोकसभा चुनाव में सुबोधकांत सहाय को टिकट के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा था। वह कई दिनों तक दिल्ली में कैंप करते रहे। जैसे-जैसे समय बीत रहा था, उनके समर्थकों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अंतिम क्षणों में सुबोधकांत सहाय को टिकट दिया गया। वह हालांकि चुनाव हार गये, लेकिन उन्होंने राजनीति की नयी ऊंचाई हासिल कर ली। पिछले पांच साल के दौरान सुबोधकांत सहाय जिस शिद्दत से पार्टी के काम में लगे रहे, उसका प्रमाण इस बार मिला, जब कांग्रेस ने पहली ही सूची में सबसे पहले उन्हें टिकट देने की घोषणा की है।
सुबोधकांत की राजनीतिक हैसियत का अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि उन्हें टिकट मिलने की घोषणा के बाद रांची संसदीय क्षेत्र के हरेक विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस समर्थकों का उत्साह अभी से ही जोर मारने लगा है। कांके हो या खिजरी, सिल्ली हो या हटिया, रांची हो या ईचागढ़, हर तरफ से उन्हें बधाई देने लोग पहुंच रहे हैं। सुबोधकांत सहाय इससे अभिभूत तो हैं, लेकिन वह जानते हैं कि असली चुनौती तो अभी बाकी है। टिकट मिलने पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में उन्होंने केवल इतना भर कहा कि वह कांग्रेस नेतृत्व के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और रांची की जनता की सेवा के लिए ही राजनीति कर रहे हैं। चुनावी जीत उनकी लड़ाई का एक पड़ाव भर होगा।सुबोधकांत सहाय के प्रत्याशी बनाये जाने के बाद रांची लोकसभा क्षेत्र का चुनाव परिदृश्य बेहद रोचक हो गया है। अब इंतजार इस बात का है कि भाजपा उनके मुकाबले किसे उम्मीदवार बनाती है। एक तरफ जहां सुबोधकांत ने रांची लोकसभा का एक बार भ्रमण कर लिया है और बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं तक से मीटिंग कर चुके हैं, वहीं भाजपा अभी तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं कर पायी है। एक-दो दिनों में नया चेहरा सामने आयेगा, जबकि सुबोधकांत के आवास से चुनाव कार्यालय पूरी तरह रफ्Þतार पकड़ चुका है। वह पंद्रह से अठारह घंटे क्षेत्र में रह रहे हैं। अब देखना यह है कि रांची में कमल खिलता है या सुबोधकांत का पंजा उसके विजय रथ को रोक देता है।

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