समय के साथ बदलते गये मुद्दे
खूंटी लोकसभा सीट का अपना एक अलग ही महत्व है। यहां हर बार मुद्दे सेट होते हैं और उन मुद्दों से चुनाव प्रभावित भी होता है। यहां 2014 के चुनाव में जो मुद्दा था, वह इस बार बदल गया है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस के लोगों ने पत्थलगड़ी को विशेष मुद्दा बनाया है। वहीं भाजपा इस मुद्दे को भोले-भाले आदिवासियों को भरमाने की साजिश मानती है। कांग्रेस का मुख्य फोकस इस पर है कि पत्थलगड़ी की आड़ में कुछ विशेष लोगों और समूह के खिलाफ कार्रवाई की गयी। पहले मिशनरी शक्तियों पर हुई कार्रवाई मुद्दा नहीं थी और न ही तब मिशनरियों की फंडिंग पर रोक पर चर्चा होती थी। पहले के चुनावों में मिशनरी शक्तियों का बढ़ता प्रभाव खुलेआम नजर आता था। सिर्फ खूंटी शहर ही नहीं, बल्कि तोरपा, मुरहू, बंदगांव, अड़की आदि क्षेत्रों में मिशनरी शक्तियां इस कदर हावी हो चली थीं कि विधानसभा चुनावों में वे जिसे चाहती थीं, वही विजयी होता था। लोकसभा चुनावों में भी उनकी काफी हद तक चलती थी। एक जमाना वह भी था, जब मिशनरी शक्तियों के प्रभाव के कारण यहां के गांव बाहरी व्यक्तियों के लिए टापू बन गये थे। पुलिस को भी वहां जाने पर रोक थी। पुलिस को बंधक बना लेना, पुलिस पर हमला आम बात थी। ऐसे में आम लोग तो यहां फटक नहीं पाते थे। पर समय ने अंगड़ाई ली और देखते ही देखते हालात बदल गये। अब पुलिस तो क्या आम लोग भी दिन-रात कभी भी किसी भी गांव में आ जा सकते हैं। कहीं कोई रोक टोक नहीं है। इससे भी आम लोगों का भरोसा सरकार पर बढ़ा है। लोगों में मुख्यधारा से जुड़ने की छटपटाहट साफ नजर आती है। आज समानांतर पत्थलगड़ी जैसी व्यवस्था को हवा देनेवाले भागे-भागे फिर रहे हैं। चंद महीने पहले तक वह अपना टकसाल बनाने की बात कर रहे थे। उन्होंने अपना बैंक तक खोल लिया था। आज का माहौल बदल चुका है और उस दरम्यान जिन भोले-भाले लोगों ने उनका साथ दिया था, वे कानून के पंजे में फंस चुके हैं और उससे निकलने का रास्ता तलाश रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या एक-दो नहीं, बल्कि पंद्रह-बीस हजार है।
मुद्दों के साथ बदली व्यवस्था और आम लोगों की मुख्यधारा में जुड़ने की चाह
दरअसल समानांतर पत्थलगड़ी से प्रभावित और केस मुकदमों में फंसे 15-20 हजार लोग भी आज राजनीतिज्ञों के लिए मुद्दा बन गये हैं। इनकी समस्याओं को लुभाने की कोशिश दोनों ही प्रमुख दल कर रहे हैं। एक ओर महागठबंधन के नेता उन्हें आश्वासन दे रहे हैं कि हमारी सरकार बनी, तो उन्हें केस मुकदमों से मुक्ति मिलेगी। उनकी सभी समस्याओं का समाधान होगा।
वहीं, इस व्यवस्था से नाराज और कानूनी पचड़ों में फंसे भोले-भाले ग्रामीणों के एक वर्ग को भरोसा है कि राज्य सरकार ही उनकी समस्या का समाधान कर सकती है। वे यही भरोसा लेकर अपने निवर्तमान सांसद कड़िया मुंडा और उनके साथ भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा तथा अन्य भाजपा नेताओं से भी यही आश्वासन चाहते हैं।
यहां उनकी मुख्य धारा में जुड़ने की छटपटाहट साफ नजर आती है।
कांग्रेस ने इसाई मिशनरियों को पनाह दी, तो भैयाराम मुंडा और हाथीराम मुंडा ने यहां जनसंघ को सींचा, कड़िया मुंडा के समय में आरएसएस का फैलाव हुआ
खूंटी में कभी इसाई मिशनरियों की बादशाहत चलती थी। वह कांग्रेस का जमाना था और उसके झंडाबरदार थे टी मुचिराय। इंदिरा गांधी के जमाने में टी मुचिराय को झारखंड का गांधी भी कहा जाता था, लेकिन उनके कार्यकाल में ही यहां इसाई मिशनरियों का फैलाव हुआ। ठीक उसी समय भैयाराम मुंडा और हाथीराम मुंडा ने यहां पहले जनसंघ और फिर आरएसएस की जमीन तैयार की। कड़िया मुंडा का जब राजनीतिक सफर शुरू हुआ, तो इसाई मिशनरी की शक्तियों को उन्होंने हावी होने नहीं दिया। उनके समय में यहां आरएसएस ने अपने पैर खूब पसारे।
दरअसल खूंटी की राजनीतिक विरासत पर दो परिवारों का दबदबा रहा है। इसाई मिशनरियों के सहारे टी मुचिराय मुंडा ने खूंटी में कांग्रेस को स्थापित किया, तो पहले भैयाराम मुंडा, हाथीराम मुंडा और उसके बाद कड़िया मुंडा के सहारे यहां भाजपा का कमल खिलने लगा। और इस कमल ने सचमुच इसाई मिशनियों की बेचैनी बढ़ा दी। शायद उसी बेचैनी का परिणाम था कड़िया मुंडा के आवास से पिछले साल सुरक्षा गार्डों का अपहरण। पहले टी मुचिराय मुंडा की राजनीतिक विरासत बहुत बड़ी थी। उसी विरासत के नीलकंठ सिंह मुंडा आज झारखंड सरकार में मंत्री हैं, तो उन्हीं के भाई कालीचरण मुंडा कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। टी मुचिराय मुंडा की राजनीतिक विरासत को कड़िया मुंडा ने पटकनी दी और उन्होंने लगातार कई बार यहां से संसद का रास्ता तय किया।
कालीचरण मुंडा को टिकट के लिए देनी पड़ी अग्निपरीक्षा
झारखंड सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा का भाई होने के कारण कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण को टिकट के लिए अग्निपरीक्षा भी देनी पड़ी। दरअसल, कालीचरण मुंडा और राज्य के मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा रिश्ते में भाई हैं। जब कांग्रेस की ओर से कालीचरण मुंडा को टिकट देने की बात चली, तब यह मामला आलाकमान तक पहुंचा दिया गया कि वह मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के भाई हैं। आलाकमान ने कहा कि फिर उन्हें टिकट क्यों दिया जा रहा है। तब उनके समर्थकों ने आलाकमान को यह समझाया कि वे रिश्ते अपनी जगह हैं। हकीकत यह है कि कालीचरण मुंडा छोटानागपुर के गांधी टी मुचिराय मुंडा के पुत्र हैं। टी मुचिराय मुंडा हमेशा कांग्रेसी रहे और कई बार कांग्रेस के टिकट पर ही विधायक भी बने। ऐसे में कालीचरण मुंडा की कांग्रेस से जुड़ी निष्ठा पर सवाल नहीं उठाये जा सकते।