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    आर.के. सिन्हा : मुसलमानों के हितैषी नौकरशाह, क्यों खामोश रहे साधुओं के कत्ल पर

    azad sipahiBy azad sipahiApril 27, 2020No Comments7 Mins Read
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    मुसलमानों के हितैषी नौकरशाह, क्यों खामोश रहे साधुओं के कत्ल पर

    दरअसल मोटी पेंशन पा रहे इन पूर्व अफसरों ने देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उप राज्यपालों को पत्र लिखकर कहा है कि मुसलमानों के साथ भेदभाव के मामले बढ़े हैं। तो जरा इनसे कोई पूछे कि कानून का उल्लंघन करने वाले क्या तलबीगी जमात पर एक्शन नहीं लिया जाना चाहिए था? क्या तबलीगी जमात का मुखिया मौलाना मोहम्मद साद दिल्ली के निजामउद्दीन इलाके में अपने हजारों चेलों के साथ कोरोना महामारी फैलने के बाद सरकारी आदेशों की अनदेखी कर के कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुये सम्मेलन करके सही कर रहा था? क्या इन नौकरशाहों को महामारी कानून के उल्लंघन में क्या सलूक किया जाना चाहिये, यह पता नहीं है क्या ? लानत है ऐसे नासमझ नौकरशाहों पर ।

    आर.के. सिन्हा
    अब लग रहा है कि तबलीगी जमात की मानवता और देश विरोधी हरकतों पर काबू पाने के लिए विभिन्न राज्यों की पुलिस ने जिस तत्परता से कार्रवाई की वह गलत थी। उन्हें तो उन्हीं के आकाओं की नसीहत के अनुरूप मस्जिदों और तंग गलियों में मरने और दूसरों को मारने के लिए छोड़ देना ही उचित था । सरकारी कार्रवाई की प्रशंसा करने के बजाय देश के गुजरे जमाने के 101 पूर्व आइएएस, आईपीएस और आइएफएस अफसरों ने परोक्ष रूप से मीनमेख निकाल कर सरकार की आलोचना शुरू कर दी है । अब ये खुलकर कहने लगे है कि तबलीगी जमात पर एक्शन लेने के बाद देश में मुसलमानों के खिलाफ वातावरण विषाक्त हुआ है।
    दरअसल मोटी पेंशन पा रहे इन पूर्व अफसरों ने देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उप राज्यपालों को पत्र लिखकर कहा है कि मुसलमानों के साथ भेदभाव के मामले बढ़े हैं। तो जरा इनसे कोई पूछे कि कानून का उल्लंघन करने वाले क्या तलबीगी जमात पर एक्शन नहीं लिया जाना चाहिए था? क्या तबलीगी जमात का मुखिया मौलाना मोहम्मद साद दिल्ली के निजामउद्दीन इलाके में अपने हजारों चेलों के साथ कोरोना महामारी फैलने के बाद सरकारी आदेशों की अनदेखी कर के कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुये सम्मेलन करके सही कर रहा था? क्या इन नौकरशाहों को महामारी कानून के उल्लंघन में क्या सलूक किया जाना चाहिये, यह पता नहीं है क्या ? लानत है ऐसे नासमझ नौकरशाहों पर ।
    जिन अफसरों के पत्र में हस्ताक्षर हैं उनमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष वजाहत हबीबउल्ला, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, मोदी सरकार की निंदा करने का कोई भी मौका नहीं गंवाने वाले हर्ष मंदर, महाराष्ट्र और पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक जूलियस रिबेरो, पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन, पुरस्कार वापसी गैंग के प्रमुख सदस्य डा. अशोक वाजपेयी, अमिताभ पांडे और प्रसार भारती के पूर्व चेयरमेन और माक्सिस्ट विचारों पर प्रसार भारती को ले जाने के लिए कुख्यात जवाहर सरकार शामिल हैं।
    पर जरा गौर करें कि इन बाबुओं ने अपनी चिंता रखते हुए साद की इस बात के लिए तनिक भी आलोचना नहीं की कि वह तबलीगियों को सरकार से सहयोग नहीं करते हुए मस्जिद में मरने की प्रेरणा देकर अब भी फरार है। क्यों? क्या उसे अपने को पुलिस के सामने तत्काल आत्मसमर्पण नहीं कर देना चाहिए ? क्या वह लॉकडाउन के दिशा-निदेर्शों का उल्लंघन करके बहुत महान कार्य कर रहा था? क्या शिखर पर मौज कर चुके सरकारी बाबू रहे इन महानुभावों को पता नहीं है कि साद और उनके चेलों की हरकतों के कारण ही देश में कोरोना वायरस ने अपने पैर फैलाए? क्या उन्हें पता नहीं है कि देश में कोरोना संक्रमित लोगों में एक तिहाई तबलीगी ही हैं? क्या ये सब इस तथ्य से भी अनभिज्ञ हैं कि तबलीगी जमात के दर्जनों सदस्य मरकज में ही कोरोना वायरस से संक्रमित थे और साद के गुमराह करने के कारण ही वे संसार से कूच कर गए। इसकी चिंता क्यों नहीं की बाबुओं ने ?
    आज जब देश में हजारों-लाखों सरकारी डाक्टर, नर्स, सफाईकर्मी, सुरक्षा कर्मी, बैंकों के मुलाजिम, बिजली-जल विभागों के कर्मी वगैरह दिन-रात अपनी जान को हथेली पर रखकर अपने बाल-बच्चों पत्नी, माता-पिता की चिंता किये बिना कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं, तब उनके पूर्ववर्ती कुछ पूर्वाग्रह से ग्रसित ये चंद पेंशन भोगी रिटायर्ड अफसर कहने से बाज नहीं आ रहे है कि देश के मुसलमानों के साथ कोरोना काल में भेदभाव हो रहा है। इन्होंने अपने जूनियर साथियों की कठिन हालातों में दिन-रात सेवा करने के जज्बे की कभी प्रशंसा तक नहीं की। इन्होंने अपने पत्र में पीतल नगरी मोरादाबाद और मध्य प्रदेश के इंदौर, बिहार के मोतिहारी और औरंगाबाद की उन शर्मनाक घटनाओं का क्यों नहीं उल्लेख किया जिधर कुछ मुसलमानों ने मेडिकल और पुलिस टीम पर पथराव किए थे? मेडिकल टीम ने यह खता की थी कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के इलाज के लिए ही उनके घरों में गई थी। उनका स्वागत करने की बजाय उन पर पथराव किया गया। पथराव करने वालों में औरतें भी थीं। उस भयानक घटना में बुरी तरफ से घायल डाक्टरों के खून से लथपथ चेहरे को सारे देश ने देखा था। पर लगता है कि उस दिल दहलाने वाली फोटो को मुख्यमंत्रियों और उप राज्यपालों को पत्र लिखने वालों ने न देखा हो। वैसे इन शातिर लोगों का सिर्फ उद्देश्य तो इतना भर है कि किस तरह मोदी सरकार को मुसलमान विरोधी साबित किया जाय। उन्होंने उस तस्वीर को इसलिए देखने से परहेज किया होगा क्योंकि ये एक खास एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं। जिस समूह में हर्ष मंदर जैसा इंसान होगा तो सबको समझ आ ही जाएगा कि कुछ ऊँचा खेल खेला जा रहा है।
    ये मंदर साहब शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कह रहे थे हमें सुप्रीम कोर्ट या संसद से अब कोई उम्मीद नहीं रह गई है। हमें अब सड़क पर उतरना होगा। मंदर के जहरीले भाषण को सैकड़ों लोगों ने सुना था। टीवी चैनलों ने प्रसारित भी किया था । जब उन्हें न तो संसद पर भरोसा रहा है और न ही सुप्रमी कोर्ट पर कोई भरोसा रहा है तो वे मुख्यमंत्रियों को पत्र ही क्यों लिख रहे हैं। क्या उन्हें भारत की न्याय व्यवस्था और सरकार पर अब भरोसा पैदा हो गया है? अब अशोक वाजपेयी की भी बात कर लें। वे पुरस्कार वापसी गैंग के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे हैं। उनसे कुछ सवाल पूछने का मना कर रहा है। क्या उनकी लेखनी से कोई आम भी पाठक वाकिफ है ? कतई नहीं। और यही इनकी सबसे बड़ी असफलता है। ये और इनके जैसे तमाम कथित लेखक और कवि एक भी रचना दे पाने में असफल रहे हैं, जो जन-मानस को इनसे जोड़ सके। अब अशोक वाजपेयी जी इस बात से दुबले हो रहे हैं कि देश में मुसलमानों के साथ भेदभाव हो रहा है।
    ये सब महाराष्ट्र में साधुओं की नृशंस हत्या से तो कत्तई मर्माहत नहीं हुए। इन्होंने तब महाराष्ट्र सरकार से कोई सवाल नहीं पूछा। सवाल जूलियस रिबेरो ने भी नहीं पूछा। आखिर उन्हीं के राज्य में दो साधुओं को भीड़ पीट-पीटकर कर नृशंसतापूर्वक मार देती है। पर मजाल है कि रिबेरो या कोई अन्य अफसर बोला भी हो। अपने को मानवाधिकारवादी कहने वाले हर्ष मंदर की भी जुबान सिली ही रही।
    (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

    वे भी साधुओं के कत्ल पर एक शब्द नहीं बोले। अमिताभ पांडे या जवाहर सरकार के संबंध में टिप्पणी करने का कोई मतलब ही नहीं है। ये अपनी फेसबुक वॉल पर मोदी सरकार की बार-बार निंदा करते ही रहते हैं। यहां पर सवाल निंदा या प्रशंसा करने का नहीं है। सवाल तो ये है कि क्या आप सच के साथ खड़े हैं? क्या आप देश के साथ खड़े हैं? अगर ये बात होती तो इन बाबुओं के पत्र पर किसी को कोई एतराज क्यों होता। इनके पत्र पर एतराज का कारण यही है कि ये सरकार को तब भी बदनाम करने की चेष्टा कर रहे हैं जब पूरी दुनिया वैश्विक महामारी से लड़ रही है। संकट गहरा रहा है। अभी तक कोरोना वायरस से लड़ाई जीतने की कोई उम्मीद भी सामने नहीं आ रही है। सारी दुनिया में कोरोना के कारण मौतें थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं। यदि उपर्युक्त सरकारी बाबुओं को सरकार के कदमों और फैसलों से इतनी ही शिकायत है तो ये सरकारी पेंशन विरोध में लेना छोड़ क्यों नहीं देते। इस तरह का कोई भी कदम उठाकर ये एक उदाहरण पेश करेंगे और अपनी धूल में मिली हुई साख को कुछ हदतक बचा भी लेंगे। सरकार को भी चाहिए कि महामारी में भ्रामक प्रचार करने के लिए और राष्ट्रद्रोही हरकत के लिये इनपर सख्त कानूनी कारवाई की जाय ।

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