Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Sunday, June 29
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»धर्म-पर्व»माँ की छाया गुरुकुल के समान होती है
    धर्म-पर्व

    माँ की छाया गुरुकुल के समान होती है

    sonu kumarBy sonu kumarApril 26, 2020Updated:April 26, 2020No Comments2 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    विद्या से विनय, विनय से योग्यता, योग्यता से धन, धन से धर्म और धर्म के पालन से सुख प्राप्त होता है। हम अक्सर देखते हैं कि बहुत पढ़ा लिखा इंसान भी दूसरों के लिए अपशब्द बोलता रहता है (चायवाला, पप्पू, नचनिया, फेंकू, आदि) तो फिर विद्या से विनय कहां मिला।

    वास्तव में वर्तमान में जिसे विद्या बोला जाता है, वो दरअसल सूचना मात्र है। अतः एक पढ़ा लिखा मनुष्य वास्तव में सूचना बैंक है। इन सूचनाओं के बल पर वो धन तो अर्जित कर लेता है लेकिन विवेक और विनय नहीं। और एक विवेकहीन व्यक्ति पृथ्वी पर भाड़ है। वह एक पशु के समान है। और वो कभी सुखी नहीं रह पाता। गाड़ी – बंगला जैसे सुख के साधन तो वो जुटा लेता है, लेकिन फिर सुख के तलाश में बाबा, मौलवी, मंदिर, मस्जिद भटकता रहता है।

    तो फिर ये विवेक कहां से मिलेगा? विवेक संस्कार से मिलता है और संस्कार गर्भधारण से लेकर बालावस्था तक सर्वप्रथम मां से फिर पिता और बाकी परिवार से और फिर समाज से मिलता है। यहां मां का किरदार सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि गर्वधारण से लेकर 5 वर्ष की आयु तक जो भी संस्कार मिलते हैं वो मां से ही मिलते हैं। अतः इस अवधि में मां को बहुत सजग रहने की आवश्यकता है। वो कैसे लोगों से मिलती है, टीवी पर कैसे धारावाहिक देखती है, कैसी किताबें पढ़ती है आदि, सबका असर उसके बच्चे पर पड़ता है।

    अगर हम अगली पीढ़ी को सुखी देखना चाहते हैं तो हमें सूचना बैंक बनाना छोड़ना होगा। हर कोई अगर अपने बच्चे को संस्कार दे तो ही एक सुखी संसार का निर्माण होगा।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleवुहान में नहीं मिला कोरोना वायरस का कोई भी नया मरीज
    Next Article मौलाना साद की कोरोना रिपोर्ट आई निगेटिव, कल क्राइम ब्रांच के सामने होगा पेश
    sonu kumar

      Related Posts

      अनुचित है संविधान की प्रस्तावना में संशोधन के सुझाव पर हंगामा

      June 29, 2025

      बिहार में इंडिया ब्लॉक के सामने दावों का बड़ा अवरोध

      June 28, 2025

      चार राज्यों की पांच विधानसभा सीटों के उपचुनाव का बड़ा संदेश

      June 27, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगदड़, तीन मरे, 50 घायल
      • जनगणना: एक अप्रैल से मकान सूचीकरण, जाति भी पूछी जायेगी
      • मन की बात में मोदी: आपातकाल में लोगों को प्रताड़ित किया गया
      • गिरिडीह में खुलेगी यूनिवर्सिटी, स्टेट ऑफ आर्ट सेंटर, इंजीनियरिंग कॉलेज: सुदिव्य सोनू
      • मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत को बड़ी जिम्मेदारी, मिलेगी करोड़ों की सैलरी
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version