विद्या से विनय, विनय से योग्यता, योग्यता से धन, धन से धर्म और धर्म के पालन से सुख प्राप्त होता है। हम अक्सर देखते हैं कि बहुत पढ़ा लिखा इंसान भी दूसरों के लिए अपशब्द बोलता रहता है (चायवाला, पप्पू, नचनिया, फेंकू, आदि) तो फिर विद्या से विनय कहां मिला।
वास्तव में वर्तमान में जिसे विद्या बोला जाता है, वो दरअसल सूचना मात्र है। अतः एक पढ़ा लिखा मनुष्य वास्तव में सूचना बैंक है। इन सूचनाओं के बल पर वो धन तो अर्जित कर लेता है लेकिन विवेक और विनय नहीं। और एक विवेकहीन व्यक्ति पृथ्वी पर भाड़ है। वह एक पशु के समान है। और वो कभी सुखी नहीं रह पाता। गाड़ी – बंगला जैसे सुख के साधन तो वो जुटा लेता है, लेकिन फिर सुख के तलाश में बाबा, मौलवी, मंदिर, मस्जिद भटकता रहता है।
तो फिर ये विवेक कहां से मिलेगा? विवेक संस्कार से मिलता है और संस्कार गर्भधारण से लेकर बालावस्था तक सर्वप्रथम मां से फिर पिता और बाकी परिवार से और फिर समाज से मिलता है। यहां मां का किरदार सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि गर्वधारण से लेकर 5 वर्ष की आयु तक जो भी संस्कार मिलते हैं वो मां से ही मिलते हैं। अतः इस अवधि में मां को बहुत सजग रहने की आवश्यकता है। वो कैसे लोगों से मिलती है, टीवी पर कैसे धारावाहिक देखती है, कैसी किताबें पढ़ती है आदि, सबका असर उसके बच्चे पर पड़ता है।
अगर हम अगली पीढ़ी को सुखी देखना चाहते हैं तो हमें सूचना बैंक बनाना छोड़ना होगा। हर कोई अगर अपने बच्चे को संस्कार दे तो ही एक सुखी संसार का निर्माण होगा।