पूरी दुनिया को पिछले एक साल से अपनी चपेट में लेकर परेशान करनेवाली महामारी कोरोना की दूसरी लहर अब और भी डरावने रूप में सामने आ रही है। वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम और अनुसंधान के कारण इस खतरनाक बीमारी के बचाव के लिए टीका भी अब उपलब्ध है, हालांकि इसके प्रभावी होने के बारे में अलग-अलग मत व्यक्त किये जा रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में कोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण का अभियान पिछले करीब एक महीने से चल रहा है और पिछले एक सप्ताह से सरकार ने 45 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों को टीका लगवाने की अनुमति दी है। इधर पूरे देश से टीकाकरण में उम्रसीमा की बाधा हटाने की आवाज आ रही है, राजनीतिक दल और कुछ राज्यों ने भी इस मांग को पूरी संजीदगी से उठाया है, जिसे फिलहाल ठुकरा दिया गया है। लेकिन इस बात का कोई औचित्य नजर नहीं आ रहा है कि आखिर बच्चों और युवाओं को यह टीका लगवाने से रोका क्यों जा रहा है। यह बात भी समझ से परे है कि क्या कोरोना से खतरा केवल प्रौढ़ या बुजुर्गों को है। वैज्ञानिक तथ्य इसकी पुष्टि नहीं करते, बल्कि अब तो यह तथ्य भी सामने आया है कि कोरोना की दूसरी लहर का सबसे अधिक प्रभाव बच्चों पर हो रहा है। केवल झारखंड की ही बात करें, तो पिछले एक सप्ताह में तीन दर्जन से अधिक स्कूलों में कोरोना विस्फोट हो चुका है। ऐसे में बच्चों और युवाओं को टीकाकरण से दूर रखना खतरनाक हो सकता है। कोरोना टीकाकरण की इस शर्त का विश्लेषण करती आजाद सिपाही के मुख्य संवाददाता दयानंद राय की खास रिपोर्ट।
इन दिनों सोशल मीडिया पर एक मीम बड़ी तेजी से वायरल हो रहा है। इसमें कहा गया है कि पहली बार बच्चे अपने माता-पिता को टीका लगवाने ले जा रहे हैं और माता-पिता कह रहे हैं कि टीका नहीं लगवायेंगे। इस मीम को वैसे तो हास्य के रूप में लिया जा रहा है, लेकिन यह सुनकर बड़ा अजीब लगता है कि भारत में खतरनाक कोरोना से बचाव के लिए चल रहे प्रयासों से बच्चों और युवाओं को बाहर रखा गया है। पिछले एक साल से पूरी दुनिया को तबाह करनेवाली इस महामारी से जंग में फिलहाल कोई सफलता मिलती दिखाई नहीं दे रही है। नये साल में कोरोना का टीका उम्मीद की नयी किरण लेकर जरूर आया, लेकिन इस महामारी की दूसरी लहर ने जिस तरह का कोहराम मचा रखा है, उससे यह भी बेकार लगने लगा है।
कोरोना टीके के असर पर भले ही विवाद हो, लेकिन यह बात समझ से परे है कि भारत में बच्चों और युवाओं को इस टीकाकरण अभियान से अलग कर दिया गया है। तर्क दिया जा रहा है कि कोरोना से संक्रमित होने का सबसे ज्यादा खतरा बुजुर्गों को है और अभी भारत के पास इतना स्टॉक नहीं है कि 130 करोड़ लोगों को टीका लगाया जा सके। इस तर्क को जब तथ्यों की कसौटी पर कसा जाता है, तो इसका औचित्य दूर-दूर तक नजर नहीं आता। जहां तक संक्रमण से बुजुर्गों को अधिक खतरा होने की बात है, तो यह सही है, लेकिन साथ ही यह भी तल्ख सच्चाई है कि कोरोना की दूसरी लहर ने बच्चों-युवाओं को भी बड़ी तेजी से अपना शिकार बनाया है। यदि झारखंड की ही बात करें, तो पिछले सात दिनों में राज्य के तीन दर्जन से अधिक स्कूल और कई छात्रावासों में संक्रमण फैल गया है। यानी बच्चों को कोरोना का संक्रमण बड़ी तेजी से अपना शिकार बना रहा है। दूसरा तर्क टीके का पर्याप्त स्टॉक नहीं होने का है, लेकिन हकीकत यह है कि भारत में उत्पादित टीका अभी दुनिया के 22 देशों को भेजा जा रहा है, जबकि अपने देश में टीके के लिए अफरा-तफरी मची है। यदि हमारे पास दूसरे देशों की जरूरतों को पूरा करने लायक टीका है, तो उसका इस्तेमाल हम अपने यहां क्यों नहीं करते।
कई राज्य सरकारों ने टीकाकरण में उम्र सीमा हटाने का आग्रह किया है, जिसे विशेषज्ञों ने ठुकरा दिया है। कहा जा रहा है कि ये राज्य कोरोना संक्रमण को रोकने में अपनी विफलता को छिपाने के लिए ही उम्रसीमा हटाने की बात कह रहे हैं। लेकिन क्या यह सच नहीं है कि कोई भी समाज अपनी भावी पीढ़ी को सुरक्षित और मजबूत करने के लिए हरसंभव कदम उठाता है। क्या किसी भी युग में यह सुना गया है कि मां-बाप अपनी सुरक्षा के लिए अपने बच्चों को खतरे में डालते हों। इसका जवाब निश्चित तौर पर नहीं ही है। इंसानी सभ्यता ऐसे उदाहरणों से भरी पड़ी है, जिसमें मां-बाप ने अपने बच्चों के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है। व्यावहारिक नजरिये से भी देखा जाये, तो नौकरी या व्यवसाय के लिए घर से निकलनेवालों को संक्रमण से बचाने की अधिक जरूरत है।
बच्चों और युवाओं को संक्रमण का अधिक खतरा है। वैसे भी दुनिया में भारत इकलौता ऐसा देश है, जहां कोरोना टीका लगाने के लिए उम्र सीमा तय की गयी है। पड़ोसी देश इंडोनेशिया और नेपाल में टीकाकरण की जो रफ्तार है, उससे भारत बहुत पीछे है। अमेरिका, इटली और फ्रांस जैसे विकसित देशों से तो तुलना भी बेकार है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर बच्चों और युवाओं को क्यों टीकाकरण से दूर रखा जा रहा है। क्या इसमें किसी का कोई राजनीतिक स्वार्थ छिपा हुआ है या फिर कुछ न कुछ मजबूरी है, जिसे हम स्वीकार नहीं रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच हमारी भावी पीढ़ी को कोरोना संक्रमण से बचाना बहुत ही जरूरी है।
यह सही है कि किसी भी आयुवर्ग को खतरे में नहीं डाला जा सकता है। भारत जैसे विशाल देश में कोरोना टीकाकरण के लिए ठीक वैसा ही अभियान शुरू किया जाना चाहिए, जैसा कि प्लेग, खसरा, पोलियो और हैजा जैसी महामारियों के उन्मूलन के लिए चलाया गया था। यदि हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को ही स्वस्थ और निरोग नहीं रख सकेंगे, तो फिर विकास के हमारे तमाम दावे बेकार साबित हो जायेंगे। भारत में टीकाकरण अभियान की देखरेख करनेवालों को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो हमें हमारी भावी पीढ़ी कभी माफ नहीं करेगी।