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मालेगांव ब्लास्ट मामले में फैसले से फिर कायम हुई सनातन की श्रेष्ठता
बड़ा सवाल: क्या हिंदू होना ही साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और मेजर उपाध्याय का दोष

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
मालेगांव ब्लास्ट केस के सभी सात आरोपी बरी कर दिये गये हैं। अपने फैसले में स्पेशल एनआइए कोर्ट ने कहा है कि कोई भी सबूत विश्वसनीय नहीं है। अदालत ने अभिनव भारत संस्था को भी मालेगांव ब्लास्ट के आरोपों से बरी कर दिया। ये सिर्फ प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल प्रसाद पुरोहित के लिए ही राहत की बात नहीं है, बल्कि स्पेशल कोर्ट के फैसले के प्रभाव का दायरा काफी बड़ा है, क्योंकि यह मामला महज एक ब्लास्ट से कहीं आगे बढ़कर ‘भगवा आतंक’ के उदाहरण के रूप में प्रोजेक्ट किया जा रहा था। यह तब की बात है, जब महाराष्ट्र में कांग्रेस और केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी। महाराष्ट्र में बम विस्फोट और आतंकवादी हमलों की कई घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन मालेगांव ब्लास्ट के बाद भगवा आतंक बताकर हिंदूवादी संगठनों को राजनीतिक रूप से निशाना बनाया गया। मालेगांव केस पर आये फैसले ने एक बार फिर बीजेपी और कांग्रेस को आमने-सामने ला दिया है। यह फैसला जहां बीजेपी को हिंदू विरोधी राजनीति पर हमले का मौका दे रहा है, वहीं इसने कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को बचाव की मुद्रा में ला दिया है। स्पेशल कोर्ट ने माना है कि यह घटना समाज के खिलाफ एक गंभीर अपराध थी, लेकिन कानून में सजा देने के लिए सिर्फ नैतिक आधार नहीं, मजबूत सबूत भी जरूरी होते हैं। कोर्ट के मुताबिक, आरोपियों के खिलाफ भरोसा करने लायक और पुख्ता सबूत नहीं मिला है, इसलिए सभी को बरी किया जाता है। अदालत ने साफ तौर पर कहा है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की इजाजत नहीं देता। कोर्ट का यह बयान धर्म और राजनीति, दोनों के लिहाज से बेहद अहम है। जाहिर है, यह फैसला सिर्फ प्रज्ञा ठाकुर ही नहीं, बल्कि हिंदुत्व की राजनीति करने वाले सभी नेताओं के लिए महत्वपूर्ण है। देखा जाये तो यह फैसला मौजूदा माहौल में बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे के अनुकूल तो है ही, साथ ही सनातन की श्रेष्ठता को भी साबित करता है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या हिंदू होना ही साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और मेजर उपाध्याय का दोष था और इस सवाल का जवाब दे रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

मालेगांव ब्लास्ट मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत ने 31 जुलाई 2025 उन सातों आरोपितों को बरी कर दिया, जिनके नाम का इस्तेमाल करके कभी यूपीए सरकार ने ‘भगवा या हिंदू आतंकवाद’ के नैरेटिव को गढ़ने का प्रयास किया था। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उस बाइक वाली थ्योरी को भी खारिज किया, जिसके आधार पर हिंदू संत और सेना से जुड़े लोग निशाने पर लिये गये थे। कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, मेजर (रिटायर्ड) रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी, अजय रहीरकर, सुधाकर चतुर्वेदी और सुधाकर द्विवेदी के खिलाफ सबूतों की कमी बतायी। स्पेशल जज एके लाहोटी ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष कोई ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रहा और सबूतों में कई असंगतियां हैं। कोर्ट ने ‘हिंदू आतंकवाद’ की थ्योरी को सिरे से खारिज करते हुए जोर दिया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन दोषसिद्धि नैतिक आधार पर नहीं, बल्कि ठोस सबूतों पर होनी चाहिए। स्पेशल जज एके लाहोटी ने पांच सौ पेज से ज्यादा के अपने फैसले में विस्तार से बताया कि अभियोजन पक्ष ने केस को साबित करने में कई गलतियां कीं। उन्होंने कहा, पूरी जांच के बाद यह साफ है कि अभियोजन कोई ठोस सबूत लाने में विफल रहा है। सबूतों में कई असंगतियां हैं। इसलिए सभी आरोपितों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।

हिंदुत्व को बदनाम करने के लिए छांटे गये तीन नाम
29 दिसंबर 2008, यानी ब्लास्ट वाले दिन और 31 जुलाई 2025, यानी फैसले वाले दिन के बीच 16 साल 10 महीने (लगभग 17 साल) बीत चुके हैं। इस लंबे अंतराल में निर्दोषों के साथ क्या-क्या हुआ, ये सोच भी रूह कंपाने वाली है। केस में तीन ऐसे नाम हैं, जिनके साथ अत्याचार की हर हदें पार की गयीं। ये तीन नाम- साध्वी प्रज्ञा, मेजर रमेश उपाध्याय और लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित के हैं। केस की जांच के नाम पर राज्य एटीएस ने इन बेगुनाहों को न केवल मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया, बल्कि इन्हें शारीरिक यातनाएं भी दीं। इन्हें इतना तड़पाया गया कि साध्वी प्रज्ञा को तो वेंटिलेटर तक पर जाना पड़ा था और मेजर उपाध्याय को सरेआम धमकी मिलती थी कि उनकी बेटी का रेप हो जायेगा। वहीं कर्नल पुरोहित को ‘देशद्रोही’ साबित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया गया। आज जब ये सारे लोग अदालत की नजर में भी बेगुनाह साबित हो चुके हैं, तो यह जानना जरूरी है कि जांच के नाम पर इन ‘हिंदुओं’ को कैसे निशाना बनाया गया था।

जांच के दौरान तीनों पर बरपाया गया कहर
साध्वी प्रज्ञा की बात करें, तो वह कई बार इस मामले में अपना दर्द साझा करके भावुक हो चुकी हैं। वह वो दर्दनाक समय को नहीं भुला पातीं, जब जेल के भीतर उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया था। उनके अनुसार, इस केस में हिरासत में लिये जाने के बाद पुरुष कैदियों के साथ रखकर पोर्न वीडियो दिखाये जाते थे और भद्दे सवाल होते थे। इसके अलावा कथिततौर पर 4-5 पुलिसकर्मी लगाकर उन्हें मारा जाता था। उनकी पिटाई चमड़े की बेल्ट से होती थी। उनको बिना किसी सबूत के भगवा आतंकी कहा जाता था। उन पर इतने अत्याचार होते थे कि उनकी हालत खुद के पांव पर चलने लायक नहीं बची थी। उनकी रीढ़ की हड्डी में समस्या आ गयी थी और उन्हें वेंटिलेटर पर जाना पड़ा था। इसके अलावा साध्वी प्रज्ञा ने ये भी बताया था कि इन्हीं सबके कारण उन्हें कैंसर और न्यूरो की बीमारी हो गयी थी और उनके शरीर में पस पड़ गया था।

मेजर की पत्नी को नंगा घुमाने, बेटी का रेप करने की धमकी
मेजर रमेश उपाध्याय ने भी अपने बारे में बताया था कि मालेगांव ब्लास्ट में कांग्रेस की यूपीए सरकार ने उनको फंसाया था। हिरासत में लिये जाने के बाद एटीएस उनके साथ बर्बरता करती थी। उन्हें धमकी दी जाती थी कि पत्नी को नंगा घुमाया जायेगा, बेटी का रेप किया जायेगा, बेटे का जबड़ा तोड़ दिया जायेगा। इसके अलावा उनके मकान मालिक तक को उनके खिलाफ भड़काया गया कि आतंकी को क्यों रख रहे हो, जिसके कारण उनके परिवार के सिर से छत छिन गयी। उनकी शादीशुदा बेटियों के घरों पर दबिश दी गयी। हर वो हालात पैदा कर दिये गये कि वो कैसे भी वो जुर्म कबूलें, जो उन्होंने किया ही नहीं। प्रशासन उन्हें इस कदर इस मामले में दोषी बनाना चाहता था कि मेजर का नार्को टेस्ट भी कराया। हालांकि जब उसमें उन्हें क्लीन चिट मिल गयी, तो ये बर्दाश्त नहीं हुआ और रिपोर्ट को दबा दिया गया।

लेफ्टिनेंट कर्नल का तोड़ दिया गया पैर
इसी तरह प्रताड़ना की कहानी भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित की है। मालेगांव ब्लास्ट केस में राज्य एटीएस ने कथित तौर पर कर्नल पुरोहित को फंसाने के बहुत प्रयास किये। ये जानते हुए कि जिस समय ब्लास्ट हुआ था, उस वक्त वो अपने मिशन पर थे, उन्हें हिरासत में लिया गया और देशद्रोही घोषित करने की कोशिश हुई। बाद में उन पर दबाव बनाया गया कि वो पूछताछ में आरएसएस और विहिप नेताओं का जबरन नाम लें, ताकि हिंदू आतंकवाद की थ्योरी सही साबित हो सके। जब उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो उनका पैर तोड़ा गया, उन्हें अवैध रूप से हिरासत में रखा गया, उन्हें नंगा करके मारा गया, उनके प्राइवेट पार्ट पर हमला किया गया, उन्हें बाल से नोचा और खींचा गया।

सब कांग्रेस के वोटबैंक का खेल था
मालेगांव ब्लास्ट के इस पूरे मामले में भगवाधारी साध्वी प्रज्ञा या सेना की वर्दी वाले कर्नल पुरोहित-मेजर उपाध्याय जैसे लोग निशाने पर क्यों लिये गये, यह समझना अब कोई कठिन नहीं है। धमाका मस्जिद के पास हुआ था। कांग्रेस ने इसे अपने वोटबैंक के लिए जमकर भुनाया। रैली कर करके हिंदुओं को आतंकवादी कहा गया। जब सवाल उठे कि ये किस आधार पर दावे हो रहे हैं, तो खुद को सही साबित करने के लिए यूपीए सरकार में फंसाये गये सात निर्दोष, जिन्हें तरह-तरह की यातना देकर मजबूर किया गया कि वो मानें कि ब्लास्ट में उनका हाथ था। इनमें निर्दोष संत और सेना से जुड़े लोग थे।

‘द हिंदू टेरर’ किताब भी अहम
पूर्व नौकरशाह आरवीएस मणि ने कांग्रेस के दौर में गृह मंत्रालय में एक अंडर-सेक्रेटरी के रूप में काम किया था। अपनी पुस्तक ‘हिंदू टेरर’ में मणि ने संपूर्ण मिलीभगत का वर्णन किया हुआ है। उन्होंने बताया है कि किन-किन खिलाड़ियों ने ‘भगवा आतंक’ की कहानी गढ़ने के लिए मिलीभगत की और कैसे कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता से लेकर कई अन्य लोग इस साजिश में शामिल थे। वहीं कोर्ट में भी गवाहों ने यह जानकारी दी थी उनके ऊपर हिंदू नेताओं को फंसाने के लिए दबाव डाला गया था। ये जानकारी चौंकाने वाली थी, लेकिन जब तक ये सच सामने आया, तब तक कांग्रेस के तुष्टिकरण का शिकार ‘निर्दोष’ हो चुके थे। कांग्रेस ने देश की सेना के कर्नल पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय और भगवाधारी साध्वी प्रज्ञा का इस्तेमाल ये फैलाने के लिए किया कि उनकी हिंदू आतंकवाद की थ्योरी एकदम सही है।

आज कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उससे न तो वो लोग खुश हैं, जिनका मकसद हिंदुत्व को बदनाम करने का रहता है और न ही वो लोग, जिन्हें कुछ भी करके हिंदुत्व को आतंकवाद का पर्याय बताना था। 2008 के उस दौर में इस मालेगांव ब्लास्ट के बाद एक तरफ मुस्लिमों को रैलियों के दौरान ये बताकर खुश किया जा रहा था कि इसे इस्लामी आतंकियों ने अंजाम नहीं दिया है, बल्कि हिंदू आतंकवादियों ने दिया है। वहीं दूसरी तरफ हिंदू नेताओं को पूरे मामले में फंसाने की साजिश चल रही थी। खुद गवाहों ने इस बात को स्वीकारा था कि उन पर योगी आदित्यनाथ समेत अन्य हिंदू नेताओं का नाम लेने का दबाव था। इसके अलावा जो प्रताड़नाएं मेजर और कर्नल को दी गयी थीं उसका मकसद भी यही था कि ये अपने बयानों में हिंदू नेताओं का नाम लें, लेकिन ये सब होता कैसे? कुछ दिन यूपीए शासन में ये नैरेटिव गढ़ा-बढ़ा। मगर फिर हकीकत सामने आने लगी। केस एनआइए के पास गया, चार्जशीट दाखिल हुई, गवाहों की पेशी हुई और हकीकत खुलती गयी। ये भी सामने आया कि ये पूरा नैरेटिव सिर्फ जनता का ध्यान घोटालों से हटाने के लिए किया था। इसी बीच नौकरशाह आरवीएस मणि की किताब जनता के बीच आयी, जिनसे कांग्रेस के हिंदूविरोधी चेहरे को शीशे जैसा साफ कर दिया।

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