आजाद भारत के इतिहास की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी के इस दौर में, जब हर दिन साढ़े तीन लाख लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हों, हर दिन तीन हजार के करीब लोग इस महामारी के शिकार हो रहे हों और पूरा सिस्टम ध्वस्त हो गया हो, तो परेशान लोगों का धैर्य खोना स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। संकट इतना गंभीर हो गया है कि इस पर नियंत्रण के तमाम उपाय बेकार नहीं, तो कम से कम निष्प्रभावी जरूर साबित हो रहे हैं। नाइट कर्फ्यू, वीकेंड लॉकडाउन, सप्ताह या महीने भर का लॉकडाउन, टीकाकरण जैसे तमाम उपाय आजमा लिये गये हैं। इनमें से कोई भी उपाय काम नहीं कर रहा है। खतरनाक महामारी की दूसरी लहर इतनी मारक चाहे किसी भी कारण से हुई है, अब इस बात पर गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है कि क्या देश में मेडिकल इमरजेंसी के हालात पैदा हो गये हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से आ रही खबरें, सोशल मीडिया पर फ्लैश होती सूचनाएं और विभिन्न संचार माध्यमों से प्रसारित हो रही तस्वीरें अब डराने लगी हैं। ध्वस्त हो चुके सिस्टम, भरे हुए अस्पतालों और शवों से पटे श्मशान की खबरें सामान्य लोगों को भी दहशतजदा कर रही हैं। ऐसे में अब जरूरी हो गया है कि महामारी पर नियंत्रण की पूरी व्यवस्था अब केंद्रीकृत हो और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इस कठिन दौर से बाहर निकल सके। मेडिकल इमरजेंसी की जरूरतों के औचित्य पर रोशनी डालती आजाद सिपाही के टीकाकार राहुल सिंह की विशेष रिपोर्ट।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से कलिमपोंग तक कोरोना की दूसरी लहर ने तबाही मचा रखी है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी आजादी के बाद से यह सबसे बड़ी त्रासदी झेल रहा है, जिसने पूरे देश को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है। करीब डेढ़ साल पहले चीन के वुहान नामक स्थान से शुरू हुई इस महामारी की दूसरी लहर ने भारत को इतनी बुरी तरह प्रभावित किया है कि यहां का पूरा सिस्टम ध्वस्त हो गया है। हर दिन साढ़े तीन लाख के करीब लोग इस खतरनाक वायरस से संक्रमित हो रहे हैं और तीन हजार के करीब मौत के मुंह में समा रहे हैं, जिससे इस संकट की भयावहता साफ हो जाती है। यह आंकड़ा आधिकारिक है और माना जा रहा है कि वास्तविक आंकड़ा इससे कई गुना अधिक है। महामारी का प्रकोप इतना भयानक है कि अब संक्रमित अस्पताल भी नहीं पहुंच पा रहे हैं, क्योंकि सारे अस्पताल मरीजों से भर चुके हैं। जिन मरीजों को अस्पताल में जगह मिल गयी है, उन्हें समय पर न तो जरूरी दवाएं मिल रही हैं और न आॅक्सीजन का सहारा ही मिल रहा है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि मरीजों के मरने का सिलसिला तेज होता जा रहा है। डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों के तमाम प्रयासों के बावजूद मरीजों को बचाना संभव नहीं हो पा रहा है। स्वाभाविक है कि मरीजों की मौत का दोष हमेशा डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों पर ही मढ़ा जाता है और लोग अत्यधिक उत्तेजना में आकर उनके साथ मारपीट करने लगते हैं।
यह स्वाभाविक मानवीय प्रतिक्रिया है और इसे पूरी तरह रोका नहीं जा सकता है। लेकिन इसका सबसे खतरनाक पहलू यह है कि इससे डॉक्टर और मरीज के बीच सदियों से स्थापित रिश्ते टूट रहे हैं। दोनों का एक-दूसरे पर से भरोसा खत्म हो रहा है, जिससे महामारी का असर काफी दूर तक हो रहा है। एक तरफ लोग डॉक्टर के पास जाने से हिचकने लगे हैं, तो दूसरी तरफ डॉक्टर भी इलाज करने से डरने लगे हैं। महामारी का यह सामाजिक असर भविष्य में कितना खतरनाक हो जायेगा, इसका आकलन करना भी रोंगटे खड़े कर देता है।
इस पर तत्काल रोक लगाने की जरूरत है। लेकिन सवाल यह है कि यह होगा कैसे। टीकाकरण, वीकेंड कर्फ्यू, नाइट कर्फ्यू और सप्ताह या महीने भर का लॉकडाउन भी महामारी पर नियंत्रण पाने में विफल साबित हो रहा है। सिस्टम में सुधार के लिए तमान उपाय किये जाने के बावजूद इतनी बड़ी आबादी के लिए चिकित्सा सुविधा मुहैया कराना असंभव हो रहा है। अस्पतालों में बेड की कमी, आॅक्सीजन की किल्लत, दवाओं की अनुपलब्धता और सबसे अधिक तीमारदारी के लिए उपलब्ध मानव संसाधन की कमी के कारण स्थिति अक्सर अप्रिय हो जा रही है। संकट में रही-सही कसर कालाबाजारी और मुनाफाखोरी करनेवाले तत्व पूरा कर दे रहे हैं।
भारत के लिए यह करो या मरो की स्थिति है। उसे इस स्थिति पर नियंत्रण करना अब जरूरी ही नहीं, अपरिहार्य हो गया है। भारत जैसे देश में, जहां 130 करोड़ लोग रहते हैं और हर पांच किलोमीटर पर भाषा-बोली बदल जाती है, ऐसा करना आसान नहीं है, लेकिन यदि इच्छाशक्ति हो, तो कोई भी काम बड़ा नहीं होता। इस महामारी पर नियंत्रण का अब एक ही रास्ता बचा है और वह है मेडिकल इमरजेंसी का, जिसमें पूरी व्यवस्था केंद्रीकृत हो। तमाम सरकारी प्रक्रियाएं अस्थायी रूप से स्थगित कर दी जायें, तमाम प्रोटोकॉल को हाशिये पर डाल दिया जाये और पूरा देश एकजुट होकर इस महामारी से लड़े। व्यवस्था की पूरी मशीनरी, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में काम कर रही हो, फिलहाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में उतार दी जाये। इस काम में सेना की मदद भी ली जा सकती है, क्योंकि अब तक भारत की यही एक संस्था है, जिसे लोगों का पूरा भरोसा हासिल है। तकनीक का सहारा लेकर आज के इस ग्लोबल विलेज में हर समय सुविधाएं उपलब्ध हैं, तो फिर इसका लाभ उठाने से भारत को वंचित रखना कहीं से भी उचित नहीं है। अब यह मानने में भी कोई बुराई नहीं है कि केंद्रीकृत व्यवस्था के बिना इस महामारी पर नियंत्रण संभव नहीं है। इसलिए जितनी जल्दी हो, यह व्यवस्था देश में लागू कर देनी चाहिए, ताकि भारत दुनिया के दूसरे देशों की तरह कोरोना पर विजय का जयघोष कर सके। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो यकीन के साथ कहा जा सकता है कि भारत किसी अफ्रीकी देश की तरह जर्जर और कमजोर हो जायेगा, जिसका खामियाजा हमारी आनेवाली पीढ़ी को भुगतना होगा। इसलिए अब फैसला करने का वक्त आ गया है और इसमें देरी नहीं होनी चाहिए।

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