पश्चिम बंगाल के माटीगरा-नक्सलबाड़ी विधानसभा क्षेत्र के अटल एस्टेट इलाक़े में सड़क किनारे 55 साल की सबिता राय चाय की पत्तियां टोकरी में लेकर लाइन में खड़ी हैं. वे अपनी बारी का इंतज़ार कर रही हैं.

शंकर तांती इन महिला मज़दूरों की हाज़िरी बना रहे हैं. सबिता राय आठ घंटे चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं और उन्हें 202 रुपए की मज़दूरी मिलती है. अगर इन्हें पश्चिम बंगाल सरकार की न्यूनतम मज़दूरी भी मिलती तो यह रक़म 260 रुपए होती. ऐसा न तो 34 साल सत्ता में रही वाम मोर्चे की सरकार में हो पाया और न ही 10 साल से ममता बनर्जी की सरकार में.

सबिता राय कहती हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा है. सबिता कहती हैं, ”वही हम लोग की मज़दूरी बढ़ाएगा. हम तो अबकी बार मोदी को वोट देगा. ममता बनर्जी से कुछ भी नहीं मिला है.”

नक्सलबाड़ी वो इलाक़ा है, जहाँ बीजेपी की लोकप्रियता के बारे में कुछ दशक पहले तक कल्पना भी करना मुश्किल था लेकिन अब इन इलाक़ों में आइए तो लगभग हर घर में बीजेपी के झंडे दिखते हैं. लोग खुलकर बीजेपी के बारे में बात कर रहे हैं. कई लोग कह रहे हैं कि 34 साल तक सीपीएम रही, 10 साल तक ममता बनर्जी, तो अब बीजेपी को भी एक मौक़ा देकर देख लेते हैं.

सीपीएम और कांग्रेस के नेताओं से बात कीजिए तो ऐसा लगता है कि इनके लिए ममता बनर्जी सबसे बड़ी दुश्मन हैं और टीएमसी की हार इनका मक़सद है. सीपीएम नेता रबिन देब कहते हैं, “ममता ने लेफ्ट पार्टियों को ख़त्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और उसी का ख़मियाज़ा उन्हें ख़ुद भुगतना पड़ रहा है”.

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता अधीर रंजन चौधरी ने बीबीसी से कहा कि अब ममता को समझ में आ रहा है कि उन्होंने क्या ग़लतियां की हैं. अधीर कहते हैं, ”हमारे 44 विधायक थे और टीएमसी ने 23 विधायकों को तोड़ लिया. अब जब सत्ता हाथ से फिसलती दिख रही है तो सोनिया गाँधी को पत्र लिख रही हैं.”

सिद्दीक़ी कहते हैं कि इस तरह के फ़ैसलों पर प्रतिक्रिया हुई, बीजेपी को पाँव पसारने का मौक़ा मिला. बीजेपी ने बंगाल को हिन्दुओं को बताया कि देखो तुम्हारी मुख्यमंत्री इस क़दर मुस्लिम-परस्त है कि दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन तक रोक दे रही है. भला हिन्दू इस तर्क से क्यों सहमत नहीं होते?”

अब्बास सिद्दीक़ी कहते हैं, ”हम उस पश्चिम बंगाल में रहते थे जहाँ दुर्गा पूजा की ख़ुशी और मुहर्रम के मातम को अलग नहीं करना पड़ता था. लेकिन ममता को मुसलमानों को बेवकूफ़ बनाकर वोट लेना था. वो कभी हिजाब पहनकर बेवकूफ़ बनाती हैं तो कभी इमाम भत्ता देकर.”

प्रोफ़ेसर हिमाद्री चटर्जी भी अब्बास सिद्दीक़ी की बातों से सहमत हैं. वे कहते हैं, ”ममता का यह आकलन बिल्कुल ग़लत साबित हुआ. जब आप एक समुदाय की राजनीति करते हैं तो आपको याद रखना चाहिए कि इसमें बैकफायर की आशंका प्रबल रहती है.”

तीन अप्रैल को ममता बनर्जी ने हुगली के तारकेश्वर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों को अपना वोट बँटने नहीं देना चाहिए. इसे लेकर चुनाव आयोग ने उन्हें आचार संहिता का उल्लंघन बताकर नोटिस थमाया है.

कई लोग मानते हैं कि बीजेपी के लिए पश्चिम बंगाल फलने-फूलने के लिए उर्वर ज़मीन थी और नरेंद्र मोदी-अमित शाह की बीजेपी ने इस मौक़े को हाथ से नहीं जाने दिया. बांग्लादेशी घुसपैठिए, सीएए,एनआरसी, ममता बनर्जी के कथित मुस्लिम तुष्टीकरण और विपक्ष के लिए ख़ाली जगह से बीजेपी को भरपूर मौक़ा मिला.

पश्चिम बंगाल में बड़ी तादाद में प्रवासी आबादी है और बीजेपी ने नागरिकता देने की बात की तो इनमें उम्मीद जगी. सीएए और एनआरसी से धार्मिक ध्रुवीकरण भी देखने को मिला.

पश्चिम बंगालके रायगंज लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की तादाद क़रीब 49 फ़ीसदी है. 2019 में यहाँ से सीपीएम के मोहम्मद सलीम और टीएमसी के कन्हैया लाल अग्रवाल उम्मीदवार थे. मुसलमानों के वोट बँट गए, जिससे बीजेपी के देबाश्री चौधरी को जीत मिल गई.

पश्चिम बंगाल में हिन्दी भाषी भी बीजेपी को लेकर लामबंद दिख रहे हैं. कोलकाता में टैक्सी चलाने वाले ज़्यादातर यूपी-बिहार के लोग हैं और इनसे बात कीजिए तो साफ़ बताते हैं कि दीदी का दौर अब गया. इसी को देखते हुए अब ममता बनर्जी बांग्ला प्राइड की भी बात कररही हैं. ममता ने अपने कई भाषणों में बीजेपी को लेकर कहा कि बंगाल पर कोई बाहरी राज नहीं कर सकता.

ओमप्रकाश साव मूल रूप से यूपी के देवरिया के हैं. अभी ये पश्चिम बंगाल में भाटपाड़ा के वोटर हैं. इन्होंने 20 साल अहमदाबाद में सोनपापड़ी बनाने का काम किया और अच्छे पैसे भी कमाए. लेकिन बीमारी और पत्नी की मौत के कारण इन्हें वापस लौटना पड़ा. अब ओमप्रकाश साव तंबाकू वाला मंजन बेचने का काम करते हैं.

इनका कहना है अब मोदी से ही पश्चिम बंगाल का कुछ भला हो सकता है.भाटपाड़ा से बीजेपी ने बैरकपुर से अपने सांसद अर्जुन सिंह के बेटे पवन सिंह को उम्मीदवार बनाया है. अर्जुन सिंह भी टीएमसी से ही बीजेपी में आए हैं. ओमप्रकाश साव के पास गुजरात की कई कहानियाँ हैं और वे लोगों को सुनाते भी हैं.

उनका कहना है कि अगर क़ानून व्यवस्था कहीं ठीक है तो वो गुजरात में है और बंगाल को भी वैसे ही दुरुस्त करने की ज़रूरत है.

बीजेपी ने ममता बनर्जी के कथित मुस्लिम तुष्टीकरण को भी मुद्दा बनाया. इस चुनाव में बीजेपी ने ममता को ‘ममता बेगम’ तक कहा. नंदीग्राम में इसका साफ़ असर दिखा. नंदीग्राम के बूथ नंबर 76 पर एक अप्रैल को रणिता अगस्ती जब वोट देने आईं तो उनसे पूछा कि ममता को बीजेपी वाले बेगम कह रहे हैं क्या उन्हें ये ठीक लगा? इस पर रणिता ने कहा कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है क्योंकि ममता मु्स्लिम परस्त हैं.

नंदीग्राम में मतदान केंद्रों पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच मतदान के मामले में साफ़ विभाजन दिखा. मुसलमानों में डर दिखा कि बीजेपी आएगी इसलिए टीएमसी को वोट करो. लेकिन इस लाइन पर हिन्दुओं में भी ध्रुवीकरण हुआ होगा तो ममता के लिए नंदीग्राम सीट जीतना आसान नहीं होगा.

बीजेपी नेता स्वपन दासगुप्ता कहते हैं कि टीएमसी और सीपीएम ने हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया था लेकिन अब हिन्दू बिना डर के बीजेपी के कारण जय श्रीराम का नारा लगा पा रहे हैं.

टीएमसी के वरिष्ठ नेता और दमदम से लोकसभा सांसद प्रोफ़ेसर सौगत रॉय मानते हैं कि बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के चुनाव को बदल दिया है. वे कहते हैं कि अब तक पश्चिम बंगाल में पहचान की राजनीति हाशिए पर थी लेकिन बीजेपी ने इसे रणनीति के तहत उभारा. प्रोफ़ेसर सौगत रॉय कहते हैं कि बंगाल की राजनीति में मुख्यरूप से तीन सवर्ण जातियों- ब्राह्मण, कायस्थ और वैद्य का वर्चस्व रहा.

बीजेपी इसी आधार पर साबित करने में लगी है कि दलितों, आदिवासियों और पिछड़ी जातियों की उपेक्षा की गई. प्रोफ़ेसर रॉय कहते हैं कि अब तक बंगाल की राजनीति को जातीय खांचे में नहीं देखा जाता था.

स्वपन दासगुप्ता कहते हैं कि टीएमसी, कांग्रेस और सीपीएम ने जैसी राजनीति की उससे बंगाल के बाहर लगता था कि यहाँ बनर्जी, चटर्जी और रॉय के अलावा कोई है ही नहीं. स्वपन दासगुप्ता कहते हैं, ”यहां जिन जातियों की आबादी सबसे ज़्यादा है, उन्हें वामपंथियों, कांग्रेस और ममता ने उपेक्षित कर रखा. बीजेपी बंगाली अपर कास्ट भद्रलोक की राजनीति को तोड़ने जा रही है. हमने 2019 में दलितों और आदिवासियों को टिकट दिए. वहाँ भी टिकट दिए जो सीटें उनके लिए रिज़र्व नहीं हैं.”

पश्चिम बंगाल में 10 लोकसभा सीटें अनुसूचित जातियों के लिए रिज़र्व हैं और 2010 में इनमें से पाँच पर बीजेपी को जीत मिली. 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति कुल आबादी के 23.51 फ़ीसदी हैं. पश्चिम बंगाल दलितों की आबादी के आकार के मामले में तीसरे नंबर पर है. कहा जा रहा है कि अगर बीजेपी बंगाल में चुनाव जीतती है तो मुख्यमंत्री का पद किसी ग़ैर-सवर्ण को दे सकती है.

ज्योति प्रसाद चटर्जी और सुप्रियो बासु ने अपनी किताब ‘लेफ़्ट फ्रंटएंड आफ़्टर’ में लिखा है, ”जातियों की तादाद के आधार पर प्रतनिधित्व की बहस बंगाल में दूसरे राज्यों की तुलना में ग़ायब रही. बंगाल की राजनीति में जातीय महत्वाकांक्षा को दबाकर रखा गया था.”

कई हिन्दी भाषी राज्यों में अगड़ी जाति के लोगों के मुख्यमंत्री बनने की परंपरा दशकों पहले ख़त्म हो चुकी है लेकिन बंगाल में अब तक ऐसा नहीं हो पाया है.

अभिजीत मजूमदार भी इस बात से सहमत हैं कि बीजेपी को पहचान की राजनीति का फ़ायदा मिलेगा.

बीजेपी ने यह साबित करने की कोशिश की कि ममता बनर्जी न केवल मुस्लिम परस्त हैं बल्कि हिन्दू विरोधी भी हैं. ममता बनर्जी सरकार के कुछ प्रशासनिक फ़ैसलों से बीजेपी के इस नैरेटिव को बल मिला.

बीजेपी ने इस नैरेटिव को साबित करने के लिए कहना शुरू किया कि ममता राज में मुसलमानों को ख़ुश करने के लिए दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा और मूर्ति विसर्जन करने से रोका जा रहा है. हावड़ा ज़िले के एक स्कूल में सरस्वती पूजा रोकने का मामला सामने आया और फिर 2017 में मुहर्रम को लेकर दुर्गा मूर्ति विसर्जन को एक दिन आगे बढ़ाने का फ़ैसला भी काफ़ी विवादित रहा.

सीएसडीएस के निदेशक और चुनाव विश्लेषक संजय कुमार कहते हैं कि ममता के ख़िलाफ़ बीजेपी को इस नैरेटिव में कामयाबी मिली है. ममता क्या, किसी भी ग़ैर-बीजेपी पार्टी के लिए यह चुनौती है कि बीजेपी के इस हथियार से कैसे लड़े. वे कहते हैं, ”ममता ने इससे लड़ने के लिए ख़ुद को हिन्दू साबित करने की कोशिश की तो मुसलमानों को लेकर भी सतर्क रहीं. दरअसल, यह कोई सिर दर्द जैसा नहीं है कि दर्द कम करने के लिए पेन किलर ले लो. यह बहुत ही जटिल मसला है और इससे लड़ना बहुत मुश्किल काम है.”

ममता बनर्जी हर साल छह दिसंबर को शांति दिवस रैली का आयोजन करती थीं. 2017 में इस रैली को संबोधित करते हुए ममता ने कहा था, ”पश्चिम बंगाल में 31 फ़ीसदी मुस्लिम भाई-बहन हैं. सुरक्षा देना मेरी ज़िम्मेदारी है. अगर आप इसे तुष्टीकरण कहते हैं तो मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.” लेकिन अगले साल तृणमूल कांग्रेस ने इस रैली का आयोजन नहीं किया. मुस्लिम मौलवी भी ममता के साथ मंच पर कम दिखने लगे.

प्रोफ़ेसर हिमाद्री चटर्जी कहते हैं कि अगर मुसलमानों का तुष्टीकरण हुआ होता तो बंगाल के मुसलमान शिक्षा और नौकरी के मामले में बहुत आगे होते लेकिन सच तो यह है कि यहाँ के मुसलमान बहुत पिछड़े हुए हैं.

प्रोफ़ेसर हिमाद्री कहते हैं अगर ये सांस्कृतिक तुष्टीकरण है तब भी मुसलमानों को शिक्षा के मामले में आगे होना चाहिए था.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति

बीजेपी का प्रयोग त्रिपुरा में सफल रहा था और उसने 25 साल पुरानी सीपीएम सरकार को 2018 में सत्ता से बेदख़ल कर दिया था. बीजेपी ने त्रिपुरा में अपने कुनबे को बड़ा करते हुए आईपीएफ़टी से गठबंधन किया था.

त्रिपुरा में कांग्रेस से टीएमसी के नेता बने सुदीप रॉय बर्मन को अमित शाह ने चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल किया था. संबित पाल नेअपनी किताब ‘द बंगाल द राइज ऑफ द बीजेपी’ में लिखा है कि त्रिपुरा में बीजेपी के गेमप्लान को कामयाब बनाने में सुदीप रॉय बर्मन की अहम भूमिका रही.

बीजेपी ऐसा प्रयोग गुजरात में कर चुकी थी. नरहरि अमीन को 2012 में और 2018 में विट्ठलभाई रडाडिया को बीजेपी में शामिल किया गया था. 2016 में असम में तरुण गोगोई के वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा को भी अमित शाह बीजेपी में लाए थे और वहां सरकार बनाने में उनकी अहम भूमिका रही. बीजेपी ने इसी प्रयोग को पश्चिम बंगाल में भी दोहाराया और यह प्रयोग संगठन को मज़बूत करने में काफ़ी महत्वपूर्ण साबित हुआ.

अमित शाह और मोदी ने ममता को कमज़ोर करने के लिए उनकी पार्टी के नेताओं को तोड़ना शुरू किया जो सिलसिला अब तक नहीं थम रहा है. मुकुल रॉय का टीएमसी छोड़ना असम में हिमंत बिस्वा के कांग्रेस छोड़ने की तरह देखा जा रहा है. संबित पाल के मुताबिक़, बंगाल में टीएमसी को सांगठनिक रूप से मज़बूत बनाने में मुकुल रॉय की अहम भूमिका रही थी.

मुकुल रॉय और हिमंता बिस्वा शर्मा दोनों पर घोटाले के गंभीर आरोप थे. संबित पाल कहते हैं कि बीजेपी ने इन आरोपों का हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया और दोनों नेताओं को आसानी से बीजेपी में शामिल कर लिया.

एक वक़्त तब था जब 1998 में टीएमसी अस्तित्व में आई तो बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व गठबंधन के लिए बेक़रार रहता था. 1998 में बीजेपी का टीएमसी के साथ गठबंधन हुआ तो एक सीट पर जीत भी मिली.

दमदम से तपन सिकदर को जीत मिली. यह गठबंधन 1999 के लोकसभा चुनाव में भी रहा और बीजेपी को दो लोकसभा सीटों पर जीत मिली. तपन सिकदर दमदम से फिर चुने गए और सत्यव्रत मुखर्जी कृष्णानगर से सांसद बने. अब हालात बदल चुके हैं और टीएमसी में बीजेपी ने भगदड़-सी मचा दी है. वहाँ के बड़े से बड़े नेता बीजेपी जॉइन कर रहे हैं.

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) केअध्यक्ष और हैदराबाद के लोकसभा सांसद असदउद्दीन ओवैसी कहते हैं कि बीजेपी के हिन्दुत्व की राजनीति से लड़ने का हथियार सॉफ्ट हिन्दुत्व नहीं हो सकता.

ओवैसी कहते हैं, ”बीजेपी को हम बाबासाहेब आंबेडकर के बनाए संविधान के ज़रिए ही हरा सकते हैं. ममता जैसी राजनीति कर रही हैं, उससे बीजेपी कभी नहीं हारेगी बल्कि और मज़बूत होगी. बीजेपी के जय श्रीराम की राजनीति को हम चंडी पाठ से कभी नहीं हरा सकते.”

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