सुमन श्रीवास्तव
रांची। छवि रंजन शुरू से ही विवादों में घिरे रहे हैं। पहली बार उनका कारनामा तब सामने आया, जब उन्होंने कोडरमा में डीसी रहते हुए उपायुक्त परिसर में अवस्थित कीमती पेड़ों को नियम विरुद्ध जाकर काट दिया। इस मामले में विधानसभा से लेकर बाहर तक खूब हंगामा हुआ। एफआइआर हुआ, जांच हुई, यह रिपोर्ट सामने आयी कि उन्होंने गलत तरीके से पेड़ कटवा दिये। रांची के उपायुक्त के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान छवि रंजन अकसर तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त नितिन मदन कुलकर्णी से भिड़ जाते थे। जमीन रजिस्ट्री के कई मामलों में कुलकर्णी ने आपत्ति की थी, लेकिन छवि रंजन ने इन सभी आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया था। बता दें कि झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में छवि रंजन से जुड़े 22 स्थानों पर गुरुवार को इडी के छापे मुख्य रूप से संदिग्ध तरीकों से रांची में विभिन्न जमीन सौदों के सिलसिले में ही मारे गये हैं।
क्या है सेना की जमीन का मामला
सूत्रों के मुताबिक नितिन मदन कुलकर्णी ने रांची में भारतीय सेना के कब्जे वाली 4.55 एकड़ जमीन के फर्जी हस्तांतरण का मामला सबसे पहले पकड़ा था। उन्होंने नवंबर 2021 में अखिल भारतीय अनुसूचित जाति महासभा के राष्ट्रीय महासचिव उपेंद्र कुमार द्वारा दर्ज शिकायत की जांच का आदेश दिया था। उप निदेशक (कल्याण) द्वारा की गयी जांच में कहा गया है कि विक्रेता प्रदीप बागची के पक्ष में उक्त भूमि के स्वामित्व का एक फर्जी दस्तावेज (पंजीकरण संख्या 4369/19932) बनाया गया था। उस फर्जी दस्तावेज में साल 1932 का जिक्र किया गया है। प्रदीप बागची ने दावा किया कि उनके पिता ने 1932 में उक्त जमीन रैयतों से खरीदी थी और उसकी रजिस्ट्री कोलकाता में हुई थी। उस नकली दस्तावेज की प्रति को कोलकाता रजिस्ट्री कार्यालय के भूमि अभिलेखों में शामिल करने के लिए भी कहा गया था, लेकिन जमीन भारतीय सेना के कब्जे में रही। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि जब जयंत कर्नाड ने 2019 में 13 अलग-अलग लोगों को जमीन बेची थी, तब सीओ ने खरीदार को जमीन के स्वामित्व के हस्तांतरण को इस आधार पर निष्पादित करने से इनकार कर दिया था कि जमीन पर उसका कब्जा है। खरीदार की दलील थी कि भारतीय सेना मालिक होकर भी विक्रेता नहीं है। इडी की जांच ने बाद में यह भी उजागर किया था कि छवि रंजन ने कैसे नकली दस्तावेजों के साथ रांची में सेना की 4.55 एकड़ जमीन दर्ज करने के लिए राजस्व अधिकारियों पर दबाव डाला। इसका पता तब चला, जब इडी ने कोलकाता के कारोबारी अमित अग्रवाल और उनके सहयोगी विष्णु अग्रवाल के खिलाफ छापेमारी की थी।
छवि रंजन के खिलाफ एक और आरोप
नितिन मदन कुलकर्णी ने छवि रंजन को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर 7.16 एकड़ जमीन का बंदोबस्त करने का भी दोषी पाया। उस समय छवि रंजन रांची के डीसी थे। राज्य के एक प्रसिद्ध एथलीट नारायण साहू के परिवार के सदस्यों और चान्हो थाना क्षेत्र के सिलागाईं निवासी विनोद कुमार सिंह से जुड़े भूमि संबंधी मामलों में छवि रंजन द्वारा दिये गये आदेश की खामियों को उजागर किया था। छवि रंजन ने हेहल सर्किल में 7.16 एकड़ जमीन के म्यूटेशन के लिए हेहल के सीओ द्वारा खारिज विनोद कुमार सिंह के आवेदन को मंजूर कर लिया था, जबकि सीओ के 2016 के आदेश को चुनौती देनेवाली पुनरीक्षण याचिका को डीसीएलआर ने भी खारिज कर दिया था।
कुलकर्णी ने अपनी रिपोर्ट मुख्य सचिव और भूमि और राजस्व विभाग को भेजी, जिसमें कहा गया है कि 2011 बैच के आइएएस छवि रंजन ने इस साल जनवरी में एक नकली एग्रीमेंट और ग्राम सभा के कार्यवृत्त के आधार पर विनोद कुमार सिंह के पक्ष में हेहल में 7.16 एकड़ जमीन की जमाबंदी खोलने का आदेश दिया था। कुलकर्णी ने देखा कि सीओ द्वारा म्यूटेशन के आवेदन को खारिज करने के दो साल बाद एग्रीमेंट तैयार किया गया था। आदेश में यह स्पष्ट नहीं है कि सीओ द्वारा नामांतरण के आवेदन को खारिज करने के बाद किसने एग्रीमेंट तैयार करने का आदेश दिया और शहरी क्षेत्र में ग्राम सभा कैसे सक्रिय है। आयुक्त ने कहा कि हालांकि पुनरीक्षण के दौरान नया तथ्य पेश करना गलत है, लेकिन उपायुक्त ने फर्जी दस्तावेज से आये नये तथ्य को न केवल स्वीकार किया, बल्कि उस आधार पर आदेश भी पारित कर दिया।
रिपोर्ट बताती है कि छवि रंजन ने ऐसा करके इस साल मार्च में जमशेदपुर के दो निवासी रवि कुमार भाटिया और श्याम सिंह को 15.10 करोड़ रुपये में जमीन की बिक्री का मार्ग प्रशस्त किया, जिसकी कीमत सरकार के अनुसार 29.88 करोड़ रुपये है। रिपोर्ट बताती है कि जब इस मामले की सुनवाई छवि रंजन के पूर्ववर्ती और 2011 बैच के आइएएस राय महिमापत राय कर रहे थे, तो जुलाई 2019 में उन्होंने आदेश पत्र में उल्लेख किया था कि विपरीत पक्षों की ओर से भी बिनोद कुमार सिंह के खिलाफ फर्जी डीड बनाने के लिए प्राथमिकी दर्ज की गयी है और वह जमीन हड़पने का प्रयास कर रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि छवि रंजन ने फर्जी एग्रीमेंट की मदद से न केवल कम कीमत पर जमीन की बिक्री का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि पूरी प्रशासनिक सुरक्षा में क्रेता को चहारदीवारी बनाने में भी मदद की। कुलकर्णी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि मामले की जांच के दौरान डीसी ने उचित मदद नहीं की और सवालों का जवाब नहीं दिया।
विवादों से रहा है नाता
जमशेदपुर में पैदा हुए और अपने गृह राज्य की सेवा करने का अवसर प्राप्त करने वाले छवि रंजन अपने 12 वर्षों के कार्यकाल के अधिकांश समय विवादों में रहे हैं। 2015 में जब वह कोडरमा के डीसी थे, तब उनके सरकारी आवास पर कथित रूप से छह पेड़ों को काटने के लिए उन्हें जांच का सामना करना पड़ा। मरकच्चो थाने में प्राथमिकी (18/2015) दर्ज की गयी और मामले को निगरानी ब्यूरो को स्थानांतरित कर दिया गया। उनके करियर में इस कलंक के बावजूद उन्हें उपायुक्त के रूप में रांची स्थानांतरित कर दिया गया। वह सबसे पहले मुख्यमंत्री के नाम पर पत्थर की खदानों को लीज पर देने को लेकर विवादों में आये थे।
हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस ने की थी आपत्ति
बता दें कि पत्थर की खदानों को पट्टे पर देने से जुड़ी जनहित याचिका में दायर उनके हलफनामे पर झारखंड उच्च न्यायालय ने कड़ी आपत्ति जतायी थी। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने सरकार से कहा था कि आपने राज्य की ओर से शपथ लेने के लिए उस अभियुक्त को चुना है, जिसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) के तहत एक आपराधिक मामले में चार्जशीट किया गया है और जिसका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया था। उन्होंने कहा था कि छवि रंजन राज्य के लिए सक्षम हो सकते हैं, लेकिन अदालत के लिए नहीं। आप उन्हें सचिव बना सकते हैं। आप उन्हें भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का सचिव बना दीजिए। आप यह सब कर सकते हैं। लेकिन कोई आरोपी राज्य की ओर से हलफनामा कैसे दाखिल कर सकता है?
बाबूलाल मरांडी ने लगाया आरोप
इस बीच भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि झारखंड में हाल के दिनों में पहले पूजा सिंघल और अब 2011 बैच के अधिकारी छवि रंजन के खिलाफ इडी की कार्रवाई यह उजागर करेगी कि कैसे उन्होंने संपत्ति बनाने के लिए नियमों को तोड़ दिया।
मरांडी ने कहा कि 10 हजार करोड़ रुपये के जमीन घोटाले को लेकर रांची में जिनके घर की तलाशी भी ली जा रही है, उनमें वीरेंद्र साहू भी हैं। उन्होंने साहू पर छवि रंजन और कुछ अन्य अधिकारियों के साथ-साथ जबरन वसूली और गबन का आरोप लगाया।